Patna-आज जैसे जैसे राजस्थान के चुनावी दंगल में मतदाता पेटियों में प्रत्याशियों की किस्मत बंद होता जा रहा है, वैसे वैसे यह सवाल भी गहराने लगा है कि तीन दिसम्बर को जब यह मतपेटियां खुलेगी, किसके हिस्से में क्या आने वाला है, खास कर यह सवाल भाजपा के लिए सबसे गंभीर होने वाला है. क्योंकि छत्तीसगढ़ हो या मध्यप्रदेश या फिर राजस्थान भाजपा की ओर से चेहरा सिर्फ एक प्रधानमंत्री मोदी थें. बाकी सभी चेहरों को नेपथ्य जाने के लिए मजबूर कर दिया गया था, हालांकि पीएम मोदी के इस एलान के बावजूद शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे सिंधिया ने मैदान नहीं छोड़ा, और संकेतों में ही सही यह संदेश देने में कामयाब रहे कि यदि भाजपा को सत्ता में वापसी करनी है, तो उनकी अनदेखी पार्टी को मंहगी पड़ने वाली है. और दोनों के इस तल्ख तेवर के बाद एक हद तक शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे सिंधिया को एडजस्ट करने की कोशिश की गयी है, लेकिन बावजूद इसके यह एक सच्चाई है कि पूरे चुनावी कैंपेन का चेहरा खुद पीएम मोदी ही बने रहें.
इस हार का जिम्मेवार कौन? केन्दीय नेतृत्व के खिलाफ भाजपा में छिड़ आंतरिक जंग
अब सवाल यहीं से शुरु होता है, यदि छत्तीसगढ़ में भाजपा मैदान से बाहर होती है, तो इसका जिम्मेवारी किसके कंधों पर आयेगी, क्योंकि रमन सिंह तो कहीं चेहरा ही नहीं थें, और ठीक यही हाल मध्यप्रदेश का है, यहां भी भले ही सांसदों से लेकर केन्द्रीय मंत्रियों को मैदान में उतार कर फतह की रणनीति तैयार की गयी हो, लेकिन चेहरा तो खुद मोदी थें, 18 वर्षों के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सियासी ताकत तो इतनी गिर चुकी थी कि उन्हे अपने ही टिकट के लिए चौथी सूचि का लम्बा इंतजार करना पड़ा, एक समय तो यह चर्चा भी तेज होने लगी थी कि शायद पार्टी आलाकमान उन्हे टिकट देने की भी इच्छुक नहीं है. खैर शिवराज सिंह ने अपनी पैंतरेबाजी जारी रखा और प्रकारांतर से सही अपनी चुनावी रैलियों में पीएम मोदी पर भी सवाल खड़ा करना शुरु कर दिया, और उनकी यह रणनीति काम आयी और आखिरकार चौथी सूची में उनका नाम पार्टी प्रत्याशियों की सूची में शामिल था. करीबन यही स्थिति राजस्थान की है. पहली सूची से ही वसुंधरा का पर कतरने की शुरुआत कर दी गयी. लेकिन महज चंद दिनों में ही साफ हो गया कि बगैर बसुंधरा को आगे किये चुनाव एकतरफा कांग्रेस के पक्ष में खड़ा हो सकता है और यह सिग्नल मिलते ही एक हद तक उन्हे एडजस्ट करने की कोशिश की गयी.लेकिन बावजूद इसके वसुंधरा को चेहरा नहीं बनाया गया. इस प्रकार छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में जीत और हार सिर्फ और सिर्फ पीएम मोदी के चेहरे पर निर्भर करता है, यदि पार्टी इन तीनों राज्यों में विजयश्री हासिल करती है तो निश्चित रुप से पीएम मोदी इस युद्ध के महानायक बन कर सामने आयेंगे लेकिन यदि हार मिलती है तो उनके नेतृत्व पर सवाल गहराने लगेगा, और उस हालत में शिवराज सिंह चौहान से लेकर वसुंधरा राजे सिंधिया का रुख क्या होगा, देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि इस युद्ध में महानायक तो खुद पीएम मोदी थें, रमन सिंह से लेकर शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा तो मोदी की इस आंधी में अपना-अपना सम्मान बचाने की लड़ाई लड़ रहे थें.
नीतीश का तीर और राहुल के ब्रह्मास्त्र का काट खोजना भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती
लेकिन सवाल इससे एक कदम आगे बढ़कर भी है, यह तो भाजपा के अंदरखाने की लड़ाई होगी. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस जातीय जनगणना और पिछड़ों का आरक्षण विस्तार का तीर इन तमाम राज्यों में राहुल गांधी चला रहे थें, और जिसके सहारे राहुल गांधी पिछड़ों की सियासी सामाजिक अस्मिता के सवाल को चुनावी विमर्श के केन्द्र में खड़ा करने की कोशिश कर रहे थें और इस तीर का मास्टर चीफ नीतीश कुमार जिस तेजी के साथ बिहार के सियासी सामाजिक समीकरण को बदल कर जातीय जनगणना के सवाल को राष्ट्रीय राजनीति का सबसे बड़ा सवाल के रुप खड़ा करने में बहुत हद तक कामयाब रहें, क्या इन राज्यों के चुनाव परिणाम सामने आने के बाद पीएम मोदी के लिए अब इस मुद्दें से आंख चुराना इतना आसान होने वाला है.
नतीजा उलट आने के बाद भाजपा के स्थानीय क्षत्रप उठा सकते हैं सिर
यदि इन तीन राज्यों का चुनाव भाजपा के पक्ष में जाता है तब तो यह माना जायेगा कि जातीय जनगणना का मुद्दा बेअसर रहा, लेकिन यदि नतीजा इसके उलट आता है तो यह सवाल राष्ट्रीय राजनीति का सबसे बड़ा सवाल बन कर खड़ा हो जायेगा. हालांकि तब भी भाजपा के हिन्दूत्व की तीर होगा, अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन भी उसके तरकश में शामिल है, लेकिन मूल सवाल यही है कि क्या हिन्दूत्व और राम मंदिर का उद्घाटन के सहारे भाजपा 2024 का चुनावी बैतरणी पार करने की स्थिति में होगी. और यदि नहीं तो भाजपा के पास विकल्प क्या होगा.
राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में खड़ा होता जा रहा है जातीय जनगणना का सवाल
और यहीं जाकर पूरी लड़ाई जातीय जनगणना के इर्द गिर्द घूमती नजर आने लगती है, इसके साथ ही सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा गरम है कि तीन दिसम्बर के परिणामों का आकलन करने के बाद पीएम मोदी जातीय जनगणना को लेकर कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं. यहां याद रहे कि पीएम मोदी अपने अप्रत्याशित फैसलों के लिए जाने जाते हैं. इस हालत में यदि वह एकबारगी जातीय जनगणना की घोषणा कर विपक्ष को निहत्था करने का ब्रह्मास्त्र छोड़ दें तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
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