Ranchi-सीएम हेमंत सोरेन के सामने खड़ा सियासी संकट में सिर्फ भाजपा ही अपना राजनीतिक भविष्य नहीं खोज रही है, बल्कि नव नियुक्त प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर को भी इस सियासी संकट कांग्रेस के लिए सुनहरा अवसर दिखने लगा है, पिछले लोकसभा चुनाव में सात सीटों से किस्मत आजमा कर एक सीट फतह करने वाली कांग्रेस इस बार 14 में से 9 सीटों की दावेदारी तेज करती नजर आ रही है. और यदि कांग्रेस की इस मांग को स्वीकार कर लिया गया तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 4 में से एक सीट पर विजय पताका फहराने वाली जेएमएम के हिस्से कितनी सीटें शेष रह जायेगी, एक बड़ा सवाल बन चुका है, क्योंकि पिछली बार एक सीट से संतोष करने वाली राजद की ओर से भी अब चार सीट की दावेदारी करने की खबर है, इस हालत में यदि कांग्रेस को 9 और राजद का चार मिला दिया जाय तो कुल सीटों की संख्या 13 होती है, यानी इस फार्मूले के अनुसार जेएमएम के हिस्से महज एक सीट आती दिखती है, और इसी एक सीट में से उसे जदयू के लिए सीट प्रदान करना है, कुल मिलाकर कहीं से भी कांग्रेस की यह मांग पूरी होती नजर नहीं आती.
सीएम हेमंत के चेहरे के क्या कुछ कर पायेगी कांग्रेस
इधर जानकारों का दावा है कि जिस सियासी संकट का आज मुकाबला हेमंत कर रहे हैं, नव नियुक्त प्रभारी गुलाम अहमद को उस संकट में कांग्रेस के लिए सुनहरा भविष्य नजर आ रहा है, लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि क्या हेमंत के चेहरे के बिना कांग्रेस झारखंड में खाता खोलने की स्थिति में भी है, उसका का पूरा का पूरा सांगठनिक ढांचा ही चरमराया हुआ है, ले देकर उसकी नजर राहुल गांधी की न्याय यात्रा पर है, उसका मानना है कि राहुल की न्याय यात्रा जैसी ही झारखंड की सरजमीन के गुजरेगी, एक बारगी सब कुछ कांग्रेस के पक्ष में खड़ा हो जायेगा, वह कांग्रेस जो आज के दिन कहीं भी जमीन पर दिखलायी नहीं पड़ती, इस मरणासन्न अवस्था से उठ कर अचानक से दहाड़ लगाने लगेगा.
पूर्व की सात सीटों पर अपनी दावेदारी मजबूत करने का प्रयास
माना जाता है कि यह दावेदारी कम 2019 के फार्मूले के तहत मिली सात सीटों को बचान की कवायद ज्यादा है, क्योंकि यह कांग्रेस को भी पता है कि इस बार राजद अपनी सीटों को बढ़ाने की मांग पर अड़ा है, उधर झारखंड की सियासत में अचानक से सीएम नीतीश की सक्रियता बढ़ी है, और वह निर्विवाद रुप से झारखंड की 16 फीसदी कुर्मी मतदाताओं को इंडिया गठबंधन के साथ खड़ा करने में बड़ी भूमिका निर्वाह कर सकते हैं, इस हालत में जदयू को भी करीबन दो सीटे जानी है, साफ है कि इन सारी सीटों की क्षतिपूर्ति कांग्रेस के हिस्से से ही होनी है, वैसे ही पिछली बार सात सीटों से मुकाबला करने के बावजूद उसके हिस्से में महज एक सीट आयी. इस हालत में किसी भी हालत मे उसके हिस्से 4 सीट से ज्यादा जाती नहीं दिखती.
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