Ranchi-वैसे तो दुमका लोकसभा की सीट को परंपरागत रुप से झारखंड का सबसे हॉट सीट माना जाता है और उसका कारण है दुमका से दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सियासी-सामाजिक जुड़ाव. दिशोम गुरु की जन्म स्थली भले ही रामगढ़ जिले का नेमरा हो, लेकिन कर्मभूमि संताल ही रही है. संघर्ष के दिनों में जैसे ही दुमका में कदम पड़ा, वह संताल का ही होकर रह गयें. संघर्ष से लेकर सियासत, सब कुछ इसी दुमका से चलता रहा. इसी दुमका से गुरुजी पहली बार 1980 में दिल्ली पहुंचे और उसके बाद की कहानी अपने आप में एक इतिहास है. 1989,1991,1996,2002, 2004, 2009 और 2014 यानि कुल आठ बार वह दुमका से दिल्ली पहुंचे.यही कारण है कि दुमका को झामुमो का गढ़ माना जाता है. आज भी संताल की बहुसंख्यक सीटों पर झामुमो का ही कब्जा है. लेकिन इस बार जैसे ही लोकसभा सभा की डुगडुगी बजी, सोरेन परिवार की इस बड़ी बहू ने बगावत का झंडा बुलंद किया और उसके बाद भाजपा ने उसी दुमका से सीता सोरेन को सियासी अखाड़े में उतार दिया, जिस सीट से वह पहले अपने निवर्तमान सांसद सुनील सोरेन को जंगे में मैदान में उतार चुकी थी.
पारिवारिक अदावत की गहरी जड़ें या किसी दवाब में हैं सीता
और इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो गया कि क्या दिशोम गुरु के इस किले को, उनके संघर्ष, सियासी जद्दोजहद और खून-पसीने से सिंची गयी इस जमीन को उनकी बड़ी बहू ही ध्वस्त करेगी? क्या पारिवारिक अदावत की जड़ें इतनी गहरी हो गयी है कि अब सोरेन परिवार की इस बड़ी बहू ने उस भाजपा के साथ मिलाने का फैसला कर लिया, जिस भाजपा पर गुरुजी से लेकर पूर्व सीएम हेमंत तक झारखंड की जल जंगल और जमीन लूटने का आरोप लगाते रहे थें, जिस भाजपा को झारखंडी अस्मिता का दुश्मन नम्बर-1 बताया जा रहा था, इस बात का दांवा ठोका जा रहा था कि भाजपा भले ही आदिवासीयत की बात करें, लेकिन उसका असली चेहरा कुछ और है, उसकी नजरें झारखंड की जल जंगल और जमीन पर लगी हुई है, और वह येन-केन-प्रकारेण झारखंड की सत्ता को अपने हाथ में लेना चाहती है, ताकि झारखंड में कॉरपोरेट घरानों को लूट की खूली छुट्ट दी जा सके और झारखंड के संसधानों के सहारे दिल्ली की सत्ता में चमक पैदा की जा सके.
क्या है सीता की इस पलटी की वजह?
हालांकि कई सियासी जानकारों को मानना है कि सीता की इस पलटी की वजह कुछ और है, इसकी पटकथा सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद ही लिख दी गई थी जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एएस बोपन्ना, एमएम सुंदरेश, पीएस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा की सात न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने सर्वसम्मति से पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य के मामले में पांच न्यायधीशों के पीठ के फैसले को उलट दिया था. जिसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों को पैसा लेकर वोट देने के मामले में छुट्ट प्रदान कर दी गयी थी. क्योंकि इस फैसले के बाद सीता सोरेन के खिलाफ जांच की तलवार लटक चुकी थी, इसी फैसले के बाद भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने यहा दावा किया था कि अब सीता के खिलाफ भी जांच की फाइल खुलने वाली है, और इनका भी जेल जाना तय है.ध्यान रहे कि 2012 के राज्यसभा चुनाव के दौरान सीता सोरेन पर वोट के बदले नोट लेने का आरोप है. लेकिन पीवी नरसिम्हा राव बनाम राज्य सरकार में मामले में कोर्ट के फैसले कारण इसकी जांच आगे नहीं बढ रही थी, लेकिन जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटा सीता सोरेन के उपर तलवार लटक गयी. अब इस पलटी की सच्चाई चाहे जो भी हो, लेकिन अब सीता दुमका के उसी अखाड़े में जीत की ताल ठोक रही हैं, जिसकी जमीन तैयार करने में दिशोम गुरु ने अपनी पूरी जवानी खपा दी.
क्या पार होगी सीता की नैया?
यहां याद रहे कि सीता सोरेन की इंट्री के पहले तक इस सीट से पूर्व सीएम हेमंत सोरेन का चुनाव लड़ने की चर्चा तेज थी. कुछ सियासी हलकों में तो उनकी पत्नी कल्पना सोरेन का मोर्चा संभालने की खबर थी. लेकिन जैसे ही सीता की इंट्री हुई, सोरेन परिवार के किसी भी सदस्य ने इस सीट से चुनाव लड़ना मुनासिब नहीं समझा और शिकारीपाड़ा विधान सभा से लगातार सात बार विधायक रहे नलिन सोरेन को मोर्चे पर लगा दिया. कल्पना सोरेन भी दुमका से दूरी बनाती दिख रही है, और ना ही सीता सोरेन पर सीधा हमला कर रही है. सियासी जानकारों का दावा है कि कल्पना सोरेन हर गुजरते दिन साथ सियासत की माहिर खिलाड़ी के रुप में तब्दील होती नजर आ रही है, सीता प्रति कल्पना की यह चुप्पी भी उसी सियासत का एक अहम हिस्सा है, दरअसल कल्पना सोरेन सीता से टक्करा कर अपनी उर्जा और इमेज को बर्बाद नहीं करना चाहती, वह तो एक ऐसी लकीर खिंचना चाहती है, जिसके सामने सब कुछ छोटा नजर आने लगे, और वैसे ही सीता सोरेन ने परिवार से बगावत कर कल्पना सोरेन की सियासी राह का आसान कर दिया है, सीता की विदाई के साथ ही कल्पना सोरेन पार्टी का निर्विवाद चेहरा बन चुकी है, आज नहीं तो कल उनके सामने सीएम की कुर्सी खड़ी है, जबकि भाजपा में सीता का क्या हस्श्र होगा, वह अभी से ही सवालों के घेरे में हैं.
दिल्ली दरबार को सूंघ गया है सांप
लेकिन इस सबके बीच दुमका में झामुमो की जीत का ताल ठोकते हुए बंसत सोरेन ने कहा है कि नलिन सोरेन की उम्मीदवारी को घोषणा होते ही दिल्ली दरबार को सांप सुंधता गया है, जिस शख्स ने शिकारीपाड़ा जैसे विधान सभा से लगातार सात बार जीत का परचम फहराया हो, भाजपा के पास उसका कोई तोड़ नहीं है, घर तोड़ कर दुमका में कमल खिलाने का सपना पाल रही, भाजपा को नलिन सोरेन की इंट्री के साथ ही सब कुछ बिखरता नजर आने लगा है और यही कारण है कि भाजपा के द्वारा अनाप-शनाप दावे किये जा रहे हैं. साफ है कि भले ही दुमका से कल्पना सोरेन ने एक दूरी बना ली हो, लेकिन सीता की राहा काटने के लिए बसंत मोर्चे पर कूद चुके हैं. बसंत सोरेन ने दुमका की जनता के बीच बेहद भावनात्मक दांव चलते हुए दावा किया है कि भाजपा की कोशिश किसी भी हालत में झारखंड की सत्ता को हथियाने की है. पहले भाई हेमंत की गिरफ्तारी करवा कर पार्टी को तोड़ने की कोशिश की गयी और अब परिवार तोड़ कर घिनौना खेल खेला जा रहा है. लेकिन दुमका की जनता जानती है कि दुमका झारखंड की नाक है और वह किसी भी कीमत पर इस नाक को कटने नहीं देगी. यानि बसंत सोरेन ने बेहद चालाकी के साथ इस लड़ाई को दुमका की जनता का नाक का सवाल बना दिया है, अब देखना होगा कि सीता सोरेन और भाजपा इसकी क्या काट खोजती है.यही सीता की अग्नि परीक्षा और भाजपा का सियासी इम्तिहान है.
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