Ranchi-झामुमो का सबसे सुरक्षित किला में से एक माना जाना वाला कोल्हान से जैसे ही निर्वतमान सांसद गीता कोड़ा ने पलटी मार कमल की सवारी का फैसला किया, इंडिया गठबंधन के अंदर कई सियासतदानों की किस्मत खुलती नजर आयी, टिकट की दावेदारी में कई नाम एक साथ सामने आते दिखें, दीपक बरुआ से लेकर सुखराम उरांव का नाम उछलने लगा, और इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा होता दिखा कि गीता कोड़ा की पलटी के बाद इस सीट पर कांग्रेस की दावेदारी बरकरार रहेगी या फिर बदली परिस्थितियों में यह सीट झामुमो के खाते में जायेगी और आखिरकार यह सीट झामुमे के हिस्से आयी और अब झामुमो की ओर से जोबा मांझी को मैदान में उतारने का फैसला कर लिया गया है.
जोर पकड़ रहा है जनजाति से चेहरा देने की मांग
हालांकि राजमहल और लोहरदगा की तरह ही यहां भी जोबा मांझी के नाम का एलान के बाद कुछ हलकों से विरोध की खबर भी आई है, इस बात का दावा किया जा रहा है कि यदि इस 'हो' बहुल सीट से किसी 'हो' जनजाति से आने वाले चेहरे को मैदान में उतारा जाता, तो बेहतर होता. याद रहे कि कोल्हान में 'हो' जनजाति की बहुलता है, गीता कोड़ा और मधु कोड़ा भी इसी हो जनजाति से आते हैं और यही उनकी सियासी ताकत मानी जाती है. यही कारण है कि गीता कोड़ा की पलटी के बाद सियासी गलियारों में चाईबासा से जेएमएम विधायक दीपक बिरुआ का नाम तेजी से उछल रहा था, दीपक बिरुआ भी इसी हो जनजाति से आते हैं.
क्या है सामाजिक-सियासी समीकरण
यहां बता दें कि पश्चिमी सिंहभूम की कुल छह विधान सभा क्षेत्रों में से सरायकेला से चंपई सोरन, चाईबासा से दीपक बिरुआ, मझगांव से निरल पूर्ति, मनोहरपुर से जोबा मांझी और चक्रधरपुर से सुखराम उरांव झामुमो का झंडा बुलंद किये हुए हैं. कोल्हान की इकलौती सीट जगन्नाथपुर कांग्रेस के पास है. दावा किया जाता है कि जगन्नाथपुर विधान सभा में मधु कोड़ा का मजबूत जनाधार है, और कोल्हान के इस किले में पंजा की सवारी सोना राम सिंकु को विधान सभा पहुंचाने में मधु कोड़ा की अहम भूमिका रही है.
पिछले 23 वर्षों से जगन्नाथपुर विधान सभा पर मधु कोड़ा का जलबा
वर्ष 2000 में इसी सीट से जीत हासिल करने के बाद मधु कोड़ा ने झारखंड की सियासत में अपना परचम गाड़ा था, और उसके बाद यह सीट मधु कोड़ा परिवार के हाथ में ही रही, दो-दो बार खुद मधु कोड़ा और दो बार उनकी पत्नी गीता कोड़ा जगन्नाथपुर विधान सभा से विधान सभा तक पहुंचने में कामयाब रही. जब गीता कोड़ा को कांग्रेस के टिकट पर सांसद बना कर दिल्ली भेज दिया गया, तो कांग्रेस ने इस सीट से सोना राम सिंकु पर दांव लगाया और वह कांग्रेस का पंजा लहराने में कामयाब रहें. माना जा है कि सोना राम सिंकू की इस जीत के पीछे भी मधु कोड़ा की लोकप्रियता रही थी. कुल मिलाकर पिछले 23 वर्षों से इस सीट पर मधु कोड़ा का राजनीतिक वर्चस्व कायम है.
क्या जगन्नाथपुर से बाहर भी चल पायेगा मधु कोड़ा का जलबा?
स्थानीय जानकारों का दावा है कि जगन्नाथपुर विधान सभा में निश्चित रुप से मधु कोड़ा की पकड़ मजबूत है, लेकिन जब बात लोकसभा चुनाव की होगी, तो उसका फैसला सिर्फ जगन्नाथपुर से नहीं होगा, उनके सामने इस संभावित लीड को सरायकेला, चाईबासा, मझगांव, मनोहरपुर और चक्रधरपुर विधान सभा में बनाये रखने की चुनौती होगी. यहां याद रहे कि जिस तरीके से जगन्नाथपुर विधान सभा में मधु कोड़ा के जादू की चर्चा होती है, ठीक उसी प्रकार कोल्हान में देवेन्द्र मांझी की कुर्बानी और संघर्ष की कहानियां भी याद की जाती है. इस सियासी जमीन पर फतह हासिल करने के बाद ही गीता कोड़ा दिल्ली के सफर पर निकल सकती है. जोबा मांझी कोल्हान में आदिवासी समाज की आवाज माने जाने वाले उसी देवेन्द्र मांझी की पत्नी है. 14 अक्टूबर 1994 गोईलकेरा बाजार में अपराधियों ने बम धमाके के साथ देवेन्द्र मांझी की हत्या कर दी थी. तब देवेन्द्र मांझी की गिनती शिबू सोरेन के बेहद करीबियों में होती थी, एक तरफ जहां देवेन्द्र मांझी कोल्हान में जंगल बचाओ की लड़ाई लड़ रहे थें, तो दूसरी ओर शिबू सोरेन संताल में महाजनी प्रथा के खिलाफ आवाज बुंलद कर रहे थें, दोनें की मुलाकात हजारीबाग जेल में हुई , जिसके बाद देवेन्द्र मांझी की गतिविधियां और भी तेज हो गयी, इसी दौरान 8 सितम्बर 1980 को बिहार पुलिस ने दर्जन भर आदिवासी युवकों को गोली से भून दिया. और इसके बाद देवेन्द्र मांझी ने पूरे कोल्हान में जन-आन्दोलन की मजबूत इबारत लिख दिया, जिसकी गूंज तात्कलीन राजधानी पटना तक सुनाई देने लगी, लेकिन14 अक्टूबर 1994 को आखिरकार उन्हे अपनी शहादत देनी पड़ी. यहां यह भी बता दें कि जोबा मांझी के पहले देवेन्द्र मांझी भी1985 में मनोहर पुर से विधायक रहे हैं. इसके पहले वह 1980 में वह चक्रधऱपुर से विधान सभा पहुंचे थें. जबकि जोबा मांझी खुद पांच बार मनोहर पुर से विधायक रही है. इस हालत में यदि जोबा मांझी का सियासी सफर और मधु कोड़ा का सामाजिक पकड़ की बात करें, यह मुकाबला बेहद दिलचस्प हो सकता है.
क्यों मजबूत नजर आ रहा है जोबा का पलड़ा
हालांकि इन दोनों की इस सियासी-सामाजिक पकड़ के साथ यदि हम झामुमो की जमीन को उसके साथ जोड़ कर देखने-समझने की कोशिश करें तो भाजपा की स्थिति कुछ कमजोर पड़ती सी नजर आती है, और इसका कारण है चाईबासा के सभी छह विधान सभाओं पर झामुमो-कांग्रेस का एकतरफा कब्जा. जबकि आज के दिन भाजपा किसी भी विधान सभा पर कब्जा नहीं है, दूसरी ओर से जिस गीता कोड़ा को उम्मीदवारी के सहारे इस बार वहां कमल खिलाने का ख्बाव पाला जा रहा है, उस गीता कोड़ा की जीत में झामुमो की सियासी जमीन कितना बड़ा योगदान था, यह भी एक बड़ा सवाल है. इस हालत में देखना दिलचस्प होगा कि झामुमो की इस ताकत के बगैर गीता कोड़ा कितना दम-खम दिखला पाती है. हालांकि विधान सभा चुनाव और लोकसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न अलग होता है, लेकिन यह इतना भी अलग नहीं होता है कि शुन्य से शिखर तक का सफर तय हो, और वह भी उस परिस्थिति में जब पूर्व सीएम हेमंत की गिरप्तारी के बाद आदिवासी समाज के बीच एक आक्रोश की लहर होने की बात कही जा रही है, यदि वास्तव में आदिवासी समाज के बीच पूर्व सीएम हेमंत की गिरप्तारी के बाद आक्रोश की लहर है तो इसका लाभ भी जोबा को मिल सकता है, हालांकि अभी तक लोकसभा चुनाव अपने पूरे रंग पर नहीं आया है, भाजपा के स्टार प्रचाकर के रुप में स्थापित हो चुके पीएम मोदी की रैली नहीं हुई है, देखना होगा कि उनकी इंट्री के बाद कोल्हान के इस सियासी जमीन में कितना बदलाव होता है, या एक बार फिर से कोल्हान के इस किले को ध्वस्त करने का सपना टूटता नजर आता है.
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