Ranchi- झारखंड में इंडिया गठबंधन की चुनौतियां कम होती नहीं दिख रही, एक तरफ जहां भाजपा -आजसू गठबंधन सभी 14 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान कर जीत का ताल ठोक रही है, वहीं इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस ने अपने हिस्से की कुल तीन, राजद -वामदल एक और झामुमो की ओर से कुल चार सीटों का एलान किया है. इस प्रकार अभी भी झामुमो को एक और कांग्रेस को अपने हिस्से की तीन सीटों पर उम्मीदवारों का एलान करना है. कुल मिलाकर इंडिया गठबंधन को अभी भी रांची, चतरा, जमशेदपुर,गोड्डा और धनबाद पर अपने उम्मीदवारों का एलान करना है. लेकिन मुश्किल यह है कि हर एलान के साथ इंडिया गठबंधन की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है. इसमें सबसे अधिक मुश्किल का सामना लोहरदगा और राजमहल की सीट होता नजर आ रहा है. लोहरदगा में सुखदेव भगत की उम्मीदवारी का एलान होते ही चमरा लिंडा की नाराजगी की खबर सुर्खियां बनाने लगी, इस बात का दावा किया जा रहा है कि चमरा लिंडा इस बार भी लोहरदगा से ताल ठोकनें की तैयारी में हैं, हालांकि झामुमो के द्वारा मान-मनौबल की कोशिश जारी है, लेकिन चमरा लिंडा अपनी दावेदारी को वापस लेने को तैयार नहीं है. उनका दावा है कि इस अखाड़े के वह पुराने खिलाड़ी रहे हैं.
चमरा की इंट्री से बिगड़ सकता है कांग्रेस का खेल
यहां बता दें कि चमरा लिंडा इसके पहले भी वर्ष 2009 में निर्लदीय और 2014 में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर अपनी किस्मत आजमा चुके हैं और दोनों ही बार उनका प्रदर्शन काफी उम्दा रहा था. वर्ष 2009 में निर्दलीय रहते हुए भी चमरा लिंडा ने दूसरा स्थान प्राप्त किया था और महज आठ हजार से मात खानी पड़ी थी. यदि उस वक्त रामेश्वर उरांव कांग्रेस की ओर मैदान में उतर कर 1,29,622 वोट नहीं काटे होते तो चमरा लिंडा वर्ष 2009 में ही संसद पहुंच चुके होते. जबकि वर्ष 2014 में चमरा लिंडा ने तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर 1,18,355 मत पाया था, दूसरे स्थान पर 2,20,177 मत के साथ कांग्रेस के रामेश्वर उरांव थें, जबकि 2,26,666 के साथ भाजपा के सुर्दशन भगत बाजी मार गये थें. चमरा लिंडा के करीबियों का दावा है कि जब चमरा लिंडा निर्दलीय और तृणमूल कांग्रेस जैसी अनजान-सी पार्टी के बैनर पर भी अपना दम-खम दिखला सकते हैं तो इंडिया गठबंधन ने बार-बार मात खाते रहे सुखदेव भगत पर दांव क्यों लगाया? आखिर कांग्रेस को चमरा लिंडा के चेहरे से आपत्ति क्यों है?
इस सीट को अपने हिस्से में रखना चाहती थी झामुमो
हालांकि झामुमो चमरा लिंडा के अंदर हिलारें लेती इस सियासी ख्वाहीश से अनजान नहीं था, उसकी कोशिश इस सीट को अपने पाले में लाने की थी, लेकिन कांग्रेस इस सीट की बलि देने को तैयार नहीं था और अंततः उसने एकतरफा तरीके से लोहरदगा से सुखदेव भगत के नाम का एलान कर दिया. अब स्थिति यह है कि चमरा लिंडा किसी भी मान मनौबल के सामने झुकने को तैयार नहीं है, और ताल ठोंकने की तैयारी में है, और यदि ऐसा होता है तो सुखदेव भगत की राह मुश्किल हो सकती है.
राजमहल में भी लोबिन भी खेल बिगाड़ने की तैयारी में
अब यही स्थिति राजमहल सीट पर बनती नजर आ रही है, कल जैसे ही झामुमो ने राजमहल सीट से विजय हांसदा की उम्मीदवारी का एलान किया, बोरियाो विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने निर्दलीय रुप से मैदान में कूदने का एलान कर दिया. हालांकि लोबिन हेम्ब्रम के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता, वह कई बार अपने घोषित स्टैंड से पीछे भी हटते नजर आते हैं, लेकिन यदि वह वाकई ताल ठोक देते हैं, तो राजमहल सीट पर भी इंडिया गठबंधन की राह मुश्किल हो सकती है. यहां बता दें कि विजय हांसदा की उम्मीदवारी का एलान के पहले ही लोबिन हेम्ब्रम ने राजमहल सीट से चुनाव लड़ने की ख्वाहीश जाहीर की थी, उन्होंने अपनी इस सियासी चाहत से सीएम चंपाई के साथ ही झामुमो को भी अवगत कर दिया था, उनका दावा है कि इस बार विजय हांसदा को लेकर इलाके में नाराजगी है, और यदि विजय हांसदा के कारण झामुमो यह सीट गंवा देती है, तो इसके कारण पार्टी की छवि को गहरा आघात लग सकता है. क्योंकि संथाल को झामुमो का गढ़ माना जाता है, यदि वह अपने गढ़ में ही अपनी जीती हुई सीट गंवा बैठती है, तो इसका बड़ा सियासी संदेश जायेगा, और वह पार्टी को इस फजीहत का सामना करते नहीं देख सकतें. बावजूद इसके पार्टी ने लोबिन के बजाय विजय हांसदा पर भरोसा जताया और उम्मीदवारी का एलान कर दिया. जैसे ही लोबिन को इसकी खबर मिली, बिना देरी किये मैदान में उतरने का एलान कर दिया.
बेहद पुरानी है ताला मरांडी और लोबिन की सियासी भिड़ंत
यहां याद रहे कि लोबिन उसी राजमहल संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले बोरियो विधान सभा से विधायक है. राजमहल लोकसभा से भाजपा के उम्मीदवार बनाये गये ताला मरांडी के साथ सियासी भिड़त का लम्बा इतिहास रहा है, इसी ताला मरांडी के हाथों उन्हे वर्ष 2005 और 2014 में पराजय का सामना भी करना पड़ा है. जहां तक राजमहल लोकसभा की बात है तो इसके अंतर्गत विधान सभा की कुल छह सीटें आती है, इसमें अभी राजमहल पर भाजपा(अनंत ओझा), बोरियो-झामुमो (लोबिन हेम्ब्रम), बरहेट झामुमो ( हेमंत सोरेन), लिटिपार-झामुमो (दिनेश विलियम मरांडी), पाकुड़- कांग्रेस ( आलमगीर आलम) और महेशपुर- झामुमो (स्टीफन मरांडी) का कब्जा है, यानि कुल छह विधान सभा में से पांच पर कांग्रेस और झामुमो का कब्जा है, निश्चित रुप से इस आंकड़े के साथ महागठबंधन की पकड़ मजबूत नजर आती है, लेकिन सवाल यह है कि यदि बगावत की आवाज घर से उठने लगे तो विरोधी खेमा में जश्न पर आपत्ति क्यों होगी?
क्या लोबिन की इंट्री से बिगड़ जायेगा झामुमो का खेल
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि क्या लोबिन की इंट्री से झामुमो का खेल बिगड़ सकता है. तो इसके लिए राजमहल सीट पर अब तक हुए सियासी भिडंत के नतीजों पर विचार करना होगा, वर्ष 2019 में इस सीट से विजय हांसद के विजय रथ को रोकने की जिम्मेवारी झामुमो से कमल की सवारी करने वाले हेमलाल मूर्मू पर थी, तब विजय हांसदा हेमलाल मुर्मू को करीबन एक लाख मतों से मात दी थी. जबकि 2014 में विजय हांसदा ने हेमलाल मुर्मीको करीबन 40 हजार मतों से शिकस्त दिया था, और इन नतीजों के बाद हेमलाल मुर्मू ने घर वापसी में ही अपना सियासी भविष्य देखा. और हेमलाल की इस घर वापसी के बाद भाजपा ने इस बार तालामरांडी को मैदान में उतारा है. इस हालत में लोबिन हेम्ब्रम कोई बड़ा संकट खड़ा कर पायेंगे, ऐसा संभव नहीं दिखता, बहुत संभव है कि इस बगावत के बाद लोबिन को इसकी कीमत भी चुकानी पड़े.
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