Ranchi-इंडिया गठबंधन के अंदर सीटों की दावेदारी को लेकर फंसा पेंच सुलझाने की हर कोशिश के साथ और भी उलझती नजर आ रही है, इसकी ताजा मिसाल चतरा लोकसभा की सीट है, जहां भाजपा ने दो बार के सांसद सुनील सिंह को बेटिकट कर राजपूत समाज की नाराजगी मोल लेते हुए काली चरण सिंह को अखाड़े में उतार दिया है, वहीं इंडिया गठबंधन के अंदर अभी इस पर ही माथापच्ची जारी है कि यह सीट किस घटक दल के हिस्से आयेगी. एक तरफ राजद दो सीटों पर अपनी दावेदारी ठोकते हुए पलामू और चतरा को अपने हिस्से की सीट मान रहा है, वहीं कांग्रेस सात से कम पर राजी होने को तैयार नहीं है, और कांग्रेस और राजद के इस खींचातान में बड़ी हसरतों के साथ घर वापसी करने वाले गिरिनाथ सिंह फंसते नजर आ रहे हैं.
चतरा में प्रत्याशी का एलान के पहले कांग्रेस को विश्वास में लेना चाहती है राजद
एक तरफ राजद ने ममता भुइंया को टिकट देकर पलामू के अखाड़े से उतारने का एलान कर दिया है, वहीं वह चतरा को लेकर यह रिस्क लेना नहीं चाहती. चतरा के मामले में उसकी कोशिश पहले कांग्रेस को विश्वास में लेकर प्रत्याशी का एलान की है, और राजद की यही रणनीति गिरिनाथ सिंह की धकधकी बढ़ाये हुए है, शंका इस बात की है कि कहीं कांग्रेस के दवाब में अंतिम समय में राजद सुप्रीमो अपना इरादा बदल नहीं दें. और यदि ऐसा होता है तो गिरिनाथ सिंह के लिए यह बड़ा झटक होगा, हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि कांग्रेस के पास भी चतरा में कोई मजबूत उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा, जबकि लालू यादव गिरिनाथ सिंह के चेहरे को आगे कर राजपूत जाति के बीच पसरती नाराजगी को सियासी अवसर में तब्दील करने का पासा फेंकना चाहते हैं. और इस सब के बीच गिरिनाथ सिंह का कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर से मुलाकात की तस्वीरें भी सामने आ रही है. जिसके बाद सियासी गलियारों में यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि राजद की ओर से गिरिनाथ को कांग्रेसी नेताओं से मेलजोल बढ़ाने का संदेशा भेजा गया है ताकि कांग्रेस इसे अहम की लड़ाई बनाने के बजाय चतरा की सियासी सामाजिक हकीकत को समझे, क्योंकि चतरा राजद की परंपरागत सीट रही है, इस सीट पर राजद का एक अपना जनाधार रहा है. जनता पार्टी के उपेन्द्र नाथ वर्मा से लेकर नागमणी और कमल छोड़ लालटेन का सफर करने वाले धीरेन्द्र अग्रवाल को वह यहां से दिल्ली भेज चुकी है, जबकि दूसरी ओर 1980 में अंतिम बार योगेश प्रसाद योगेश ने चतरा में कांग्रेस की जीत दिलवायी थी, 1980 के बाद आज करीबन 44 वर्ष गुजर गयें, लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस इस सीट पर अपना दांवा ठोकने में पीछे नहीं है.
क्या गुलाम अहमद मीर को जीत का विश्वास दिलाने में कामयाब होंगे गिरिनाथ सिंह
लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या गिरिनाथ सिंह कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर को इस सियासी हकीकत को समझने में कामयाब होंगे, क्या गिरिनाथ सिंह इस बात को लेकर गुलाम अहमद मीर को मुतमईन कर पायेंगे कि वह राजद के चुनाव चिह्न पर इस सीट को इंडिया गठबंधन के खाते में डालने में कामयाब होंगे. और खासकर तब जब कि चतरा में कांग्रेस के पास कोई मजबूत चेहरा दिखलायी नहीं पड़ता. फिलहाल इस सवाल को कोई पुख्ता जवाब नहीं है, लेकिन इतना साफ है कि हर गुजरते दिन के साथ इंडिया गठबंधन यहां अपनी लड़ाई कमजोर करता दिख रहा है
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