Ranchi-चुनावी संघर्षो में नारों का अपना महत्व होता है, कई बार तो सिर्फ एक नारे के बदौलत पूरी तस्वीर बदलती नजर आती है. सियासी झंझवात से गुजरते हुए कभी इंदरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देकर एक ही झटके में पूरी सियासी बिछात बदल थी, या फिर ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है, के नारे के साथ वीपी सिंह का सत्तारोहण और मिस्टर क्लीन रुप में ख्यात रहे राजीव गांधी का भ्रष्टाचार के छाये में सत्ता से विदाई का खेल, या फिर ‘सबका साथ सबका विकास’, जिसके बाद पूरे देश में पीएम मोदी के प्रति जनसमर्थन का एक उबाल सामने आया था.
झारखंड में स्थानीय नारों की समृद्ध परंपरा
खैर ये सारे नारे तो राष्ट्रीय राजनीति के नारे थें, लेकिन झारखंड की सियासत में भी स्थानीय नारों का भी एक समृद्ध इतिहास रहा है. इन्ही नारों में एक नारा था ‘लोटा सोटा वापस जाओ” या फिर जब पूर्व सीएम हेमंत पर सियासी संकट गहराता नजर आया तो जेएमएम की ओर से उछाला गया नारा ‘हेमंत नहीं तो कौन’? या फिर 2019 का विधान सभा चुनाव जब ‘हेमंत ही हिम्मत है’ के नारे के साथ झामुमो की सत्ता में वापसी हुई, या ‘हमने गढ़ा है, हम ही सवारेंगे’ का भाजपा का नारा. लेकिन इन नारों के साथ एक नारा या मधु कोड़ा के भ्रष्टाचार को लेकर भी गढ़ा जाता रहा है. इसके पहले तक मधु कोड़ा झारखंड की सियासत में एक इतिहास गढ़ते हुए निर्दलीय विधायक के रुप में सीएम की कुर्सी तक भी पहुंच चुके थें.
आजसू होते हुए आरएसएस तक की यात्रा
यहां ध्यान रहे कि मधु कोड़ा के सियासी जीवन की शुरुआत आजसू के बनैर तले हुई थी. लेकिन बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य बनें, 2000 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने जगन्नाथपुर विधान सभा से अपना उम्मीदवार भी बनाया और चुनावी अखाड़े में परचम फहराते हुए बाबूलाल मरांडी के सरकार में पंचायती राज्य मंत्री बनें, लेकिन जब डोमिसाईल की आग में बाबूलाल की सरकार की विदाई की पटकथा लिखी गयी, और अर्जुन मुंडा को आगे कर सरकार बनायी गयी, तब भी मधुकोड़ा के पास पंचायती राज मंत्रालय की कुर्सी बरकरार रही. लेकिन 2005 के विधान सभा चुनाव में जब भाजपा ने टिकट देने से इंकार किया तो मधु कोड़ा ने निर्दलीय मैदान में उतरने का एलान कर दिया, चुनाव जीत कर वापस भी आये. लेकिन 2005 के विधान सभा का नतीजा किसी भी पार्टी के पक्ष में नहीं था, एक खंडित जनादेश सामने था, उस हालत में मधु कोड़ा ने एक बार फिर से भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया. एक बार फिर से अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में सरकार बनी और मधु कोड़ा को खान एवं भूवैज्ञानिक मामलों का मंत्री बनाया गया. लेकिन सितम्बर 2006 आते-आते मधु कोड़ा और तीन निर्दलीय विधायकों ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, बाद में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की ओर से उन्हे मुख्यमंत्री बनाया गया. तब इन्हे झामुमो, राजद, युनाइटेड गोअन्स डेमोक्रैटिक पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, फारवर्ड ब्लाक सहित तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन था.जबकि कांग्रेस ने बाहर से समर्थन देने का फैसला किया था.
मधु कोड़ा पर भर्ष्टाचार के आरोप
इसी सरकार में मधु कोड़ा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे, मधु कोड़ा पर कोलकता स्थित एक कंपनी को झारखंड में कोयला ब्लॉक का अवैध तरीके से आवंटन का दोषी भी पाया गया. केंद्रीय जांच ब्यूरो दावा किया था कि मधु कोड़ा, एके बसु और दो अन्य ने कंपनी को फायदा पहुंचाने की साजिश रची थी. और यहीं से भाजपा की ओर से मधु कोड़ा को झारखंड में भ्रष्टाचार का प्रतीक पुरुष के रुप में स्थापित करने की कोशिश की जाने लगी. और इसके साथ ही मधु कोड़ा की सियासत का अंत होता नजर आया, हालांकि इस बीच वर्ष 2009 में वह स्वतंत्र रुप से लोकसभा पहुंचने में सफल रहे थें, लेकिन सजा सुनाये जाने के बाद मधु कोड़ा ने अपनी सियासी बिरासत को मधु कोड़ा को सौंपना का फैसला लिया. 2014 में गीता कोड़ा ने जेबीएसपी के बनैर तले भाजपा के लक्ष्मण गिलुआ को चुनौती पेश की, लेकिन करीबन एक लाख मतों से हार का सामना करना पड़ा. लेकिन वर्ष 2019 में गीता कोड़ा ने कांग्रेस की सवारी करने का फैसला किया, और करीबन एक 70 हजार से जीत हासिल की.
पीएम मोदी की गर्जना में इस बार गायब रहा मधु कोड़ा का जिक्र
एक रोचक तथ्य यह है कि चाहे 2014 का मुकाबला हो या फिर 2019 का, दोनों ही बार पीएम मोदी ने चाईबासा के टाटा मैदान से मधु कोड़ा के बहाने गीता कोड़ा को भी उसी भ्रष्टाचार की गंगोत्री का हिस्सा बताया था. मधु कोड़ा को झारखंड का सबसे भ्रष्ट व्यक्ति के तौर पर चिन्हित करने की कोशिश की थी. झारखंड की जनता को इस बात का विश्वास दिलाया कि उनके रहते भ्रष्टाचार के इन कीड़ों को कभी पनपने का मौका नहीं दिया जायेगा. जिसने ने भी लूट की है, उससे एक एक पाई वसूली जायेगी. शायद ही कभी ऐसा होता हो कि प्रधानमंत्री मोदी का झारखंड के दौरा पर हो और मधु कोड़ा अखबारों की सुर्खियों में नहीं हो. लेकिन 2024 आते-आते एक अलग इतिहास भी लिखा गया. गीता कोड़ा से सामने भाजपा की ओर से मोर्चा संभालने वाले लक्ष्मण गिलुआ की मौत हो चुकी थी, भाजपा के अंदर चेहरे का संकट था. हो बहुल चाईबास में एक हो चेहरे की खोज थी, और आखिरकार भाजपा ने उसी मधु कोड़ा का साथ लेने का फैसला किया, जिसको निशाने पर लेकर झारखंड में भ्रष्टाचार से संघर्ष की हुंकार लगायी जाती थी. आज गीता कोड़ा उसी चाईबासा में कमल खिलाने का ताल ठोंक रही है, मधु कोड़ा भी कमल की सवारी कर चुके हैं, और यह पहली बार हो रहा है कि चाईबासा के सियासी संग्राम में मधुकोड़ा का जिक्र नहीं है. पीएम मोदी के मंच से मधु कोड़ा का जिक्र नहीं है. हार जीत को अपनी जगह लेकिन इतना निश्चि है कि पहली बार पीएम मोदी की सभा में मधु कोडा अपने को बेहद सौभाग्यशाली मान रहे होंगे, जब उन पर तोहमतों की बारिश नहीं हुई.
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