Ranchi-आखिरकार झारखंड हाईकोर्ट से पूर्व सीएम हेमंत को अपने चाचा रामराज सोरेन के श्राद्ध कार्यकर्म में शामिल होने की अनुमति मिल गयी. हालांकि हेमंत सोरेन की ओर से पूरे कार्यक्रम में शामिल होने के लिए 13 दिनों की अग्रिम जमानत की मांग की गयी थी. लेकिन कोर्ट ने इस मांग को खारिज करते हुए बारहवीं में शामिल होने की अनुमति प्रदान की. इस दौरान भी हेमंत सोरेन पुलिस कर्मियों की निगरानी में रहेंगे और कार्यक्रम समाप्त होते ही एक बार फिर से होटवार जेल प्रस्थान कर जायेंगे, कुल मिलाकर उनके पास चंद घंटों का वक्त होगा.
महागठंबधन के रणनीतिकारों का सियासी मंथन
लेकिन इसके साथ यह भी तय हो गया कि छह मई को रामगढ़ के नेमरा में पारिवारिक सदस्यों के साथ ही महागठबंधन के नेताओं का महाजूटान होगा. अपने नेता को एक नजर देखने की चाहत तो होगी ही, उनकी गैरमौजूदगी में लोकसभा चुनाव के लिए जीत की जो बिसात बिछाई गयी है, उसकी बारीकियां समझाने और उस पर मुहर लगाने की कोशिश भी होगी. और इसके साथ ही आगे की रणनीति में क्या सुधार किया जाय, इसका दिशा निर्देश प्राप्त करने की बेचैनी भी होगी. उनकी अनुपस्थिति में पार्टी और महागठबंधन के अंदर जो चुनौतियां खड़ी होती दिख रही है, चमरा लिंडा से लेकर जयप्रकाश वर्मा और लोबिन के द्वारा बगावत के जो बिगूल फूंके जा रहे हैं, उसका समाधान की चाहत भी होगी.
कार्यकर्ताओं के हौसले और जोश पर कोर्ट का पहरा नहीं
और इस सबके अलग झामुमो कार्यकर्ताओं की फौज होगी. हेमंत के जयकारे होंगे, ‘जेल का ताला टूटेगा, हेमंत सोरेन छुटेगा’ की गूंज भी होगी. कोर्ट की सारी बंदिशें हेमंत के लिए हैं, कार्यकर्ताओं के हौसले और जोश पर कोर्ट का पहरा नहीं होगा. कार्यकर्ता किसी भी नारे के लिए स्वतंत्र होंगे. निश्चित रुप से लोकसभा चुनाव के बीच यह श्राद्ध कार्यक्रम झामुमो और महागठबंधन की रणनीति को धार देने का एक सियासी अवसर भी होगा. लेकिन इससे अलग एक सवाल यह भी है कि क्या इस अवसर पर हेमंत की गैरमौजूदगी में पार्टी को अलविदा करते हुए तोहमतों की बारिश करने वाली भाभी सीता सोरेन की उपस्थिति भी होगी? क्योंकि सियासत अपनी जगह, लेकिन सीता सोरेन से सोरेन परिवार की बड़ी बहू होने का दर्जा नहीं छीना जा सकता. यह एक पारिवारिक कार्यक्रम भी होगा. जहां सब अपने दुख-सुख को बांटते नजर आयेंगे. एक परिवार में सबकी अपनी-अपनी नाराजगी और जख्म होते हैं. अपनी-अपनी महत्वकांक्षा और चाहत होती है, और इसी चाहत में रिश्तों में दरार आती है, लेकिन दूसरा सत्य यह भी है कि इन्ही पारिवारिक कार्यक्रमों में जख्मों पर मरहम भी लगता है, गिले-शिकवे के दीवार भी गिरती है, संवादहीनता टूटती है. कई बार बरसों की जमी रिश्तों पर बर्फ की परत पिघलती है.
क्या इस अवसर को गंवाना चाहेगी सीता सोरेन?
तो क्या सीता सोरेन इस अवसर को गंवाना चाहेगी? क्या जिस चाचा के हाथों उन्हे वह प्यार और सम्मान मिला है, दिशोम गुरुजी के बड़े भाई राम राम सोरेन के इस अंतिम कार्यक्रम से सीता सोरेन लिए दूरी बनाना इतना आसान होगा.और क्या यदि वह ऐसा करती है, तो क्या वह अपने आप को अंतिम रुप से इस परिवार से दूर होने पर मुहर लगाती नहीं दिखलायी देंगी या फिर रिश्तों में एक कसक अभी बाकी है, जहां सिर्फ और सिर्फ खून का संबंध है, इस बात का कर्ज चुकानी की बारी है कि जिन कंधों पर कभी उछल-उछल कर दुर्गा सोरेन ने अपना बचपन बिताया था, उस चाचा राजाराम के कार्यक्रम में शामिल होकर रिश्तों की मर्यादा को बचा लिया जाय. यहां सवाल सिर्फ राजाराम सोरेन का नहीं है, यदि कल सीता सोरेन के साथ भी यदि कोई दुखद पल आ खड़ा होता है, क्या सोरेन परिवार सिर्फ इस बिना पर दूरी बनाये खड़ा रहेगा कि उसने परिवार के साथ बगावत की थी. जब देवर हेमंत अपने जीवन के सबसे संकट के दौर से गुजर रहे थें, मुश्किल हालात का सामना कर रहे थें, तब उनके साथ दगावाजी की गयी थी? अमूमन ऐसा नहीं होता.
सीता सोरेन और हेमंत के बीच मुलाकात की कैसी होगी तस्वीर
लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि सीता सोरेन और हेमंत के बीच इस मुलाकात के दौरान तस्वीर क्या होगी? सीता के जेहन में बेचैनी का आलम होगा या फिर प्रायश्चित का भाव, क्या सीता सोरेन अपने देवर की सूनी आंखों का सामना कर पायेगी? हेमंत सोरेन के चेहरे पर जो भाव उमड़ रहा होगा, क्या वह उसका मुकाबला कर पायेगी. जिस देवर के लिए कभी सीता ने तारीफों के पूल बांधे थें, हेमंत है तो हिम्मत का जयकारा लगाया था. क्या वह सीता पुलिस की कस्टडी में अपने सामने खडे हेमंत को देख पायेगी, या फिर सीता की आंखें में भी गमों का समंदर होगा.
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