Ranchi-लम्बे अर्से से बांग्लादेश की सीमा से सटे झारखंड के संताल और दूसरे सीमावर्ती इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की बड़ी आवत का दावा किया जाता रहा है, खास कर भाजपा इसे हर चुनाव में सियासी मुद्दा बनाती रही है, उसका दावा है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों की इस बढ़ती संख्या से संताल और इसके सीमावर्ती इलाके की डेमोग्राफी में बदलाव आ रहा है और इसके कारण सदियों से इस इलाके में रहने वाले आदिवासी अल्पसंख्यक होने के कगार पर खड़े हो गये हैं.
कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों का नहीं है कोई वास्तिक या अनुमानित आंकड़ा
दावा यह भी है कि इन बांग्लादेशी घुसपैठियों के द्वारा यहां की आदिवासी महिलाओं के साथ शादी कर उनका धर्मांतरण करवाया जाता है, और इसके साथ ही उन्हे यहां की नागरिकता मिल जाती है. स्थानीय स्तर पर मौजूद उनके मददगारों के द्वारा उन्हें फर्जी दस्तावेज और अन्य जरुरी दस्तावेज मुहैया करवाया जाता है. हालांकि इन दावों के समर्थन में कभी कोई वास्तविक और वैज्ञानिक आंकड़ा पेश नहीं किया जाता, कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों के द्वारा कितनी संख्या में स्थानीय आदिवासी महिलाओं के साथ शादी विवाह हुआ, इसकी भी कोई वास्तिवक संख्या सामने नहीं है, हालांकि इस विवाद को बढ़ता देख कर राज्य सरकार ने सभी थानों को विशेष हिदायत रखने का निर्देश दिया है, इस तरह की यदि कोई शादी होती है तो तत्काल उसकी प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है.
कौन है घुसपैठिया, कैसे होगी पहचान
इस बीच इस मामले को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर सुनवाई का आग्रह किया गया था. अब इसी मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति आन्न्द सेन की खंडपीठ ने राज्य सरकार और केन्द्र सरकार से शपथ पत्र दायर कर इस बात का जवाब मांगा है कि उनके पास बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान का क्या मानक और मापदंड हैं. और वह कौन से तरीके हैं जिससे उनकी पहचान हो सकती है. खंडपीठ ने दोनों ही सरकारों से इस मामले में विस्तृत जानकारी और एक्शन प्लान शपथ पत्र के माध्यम से दाखिल करने का आदेश दिया है, अब इस मामले की अगली सुनवाई 13 दिसम्बर को होगी.
भाजपा के आरोपों पर पलटवार करती रही है झामुमो
यहां यह याद रहे कि जब भी भाजपा के द्वारा बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठाया जाता है, राज्य सरकार इस मामले में केन्द्र की सराकर को ही कटघरे में खड़ा कर देती है, उसका सवाल है कि यदि अंतरराष्ट्रीय सीमा को धता बता कर बांग्लादेशी घुसपैठियों की प्रवेश हो रहा है, तो इसका जिम्मेवार कौन है, क्या सीमाओं की रक्षा करना भी राज्य सरकार की जिम्मवारी है, जो सवाल भाजपा हमसे पूछ रही है, वही सवाल गृह विभाग से क्यों नहीं करती, जिसके जिम्मे यह पूरा मामला है, लेकिन एक तरफ वह झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा उठा कर सियासी लाभ लेना चाहती है, दूसरी तरह वह केन्द्र सरकार से उनकी नाकामी पर कोई सवाल नहीं पूछती. झामुमो यह सवाल भी पूछती रही कि झारखंड गठन के बाद अधिकांश समय तो यहां भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों की ही सरकार रही, अर्जुन मुंडा से लेकर रघुवर दास यहां के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन तब इस मामले को क्यों नहीं उठाया गया, इस मुद्दे को लेकर सिर्फ हेमंत सरकार को कटघरे में खड़ा करना तो एक महज सियासी ड्रामा है.
केन्द्र और राज्य सरकार से मांगा गया जवाब
लेकिन अब जबकि झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य और केन्द्र सरकार दोनों से सवाल पूछा है कि कथित घुसपैठियों की पहचान के लिए उनके पास क्या प्लानिंग और तंत्र है, वह कौन सा मानक और मापदंड है जिसके आधार पर घुसपैठियों की पहचान की जायेगी, यह सवाल दोनों ही सरकारों के लिए मुसीबत बनता नजर आने लगा है. अब देखना होगा कि 13 दिसम्बर के पहले राज्य सरकार और केन्द्र सराकर इसका क्या जवाब देती है, क्योंकि कोर्ट में शपथ पत्र के साथ जवाब देना अलग बात है और बगैर आंकड़ों और सर्वेक्षण के सियासी बयानबाजी करना दूसरी बात.
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