जयराम: एक बुझी हुई क्रांति या बाकी है बदलाव की भूख! आखिर क्यों विवादों में घिरता नजर आने लगा यह टाइगर

सवाल यह है कि जयराम की छवि को आखिर एक रॉबिनहुड की छवि प्रदान करने की कोशिश क्यों की जा रही है. क्या जयराम के पीछे किसी कॉरपोरेट की फंडिग है?   क्या जयराम की पूरी कवायद महज किसी सियासी दल की साजिशों का नतीजा है? क्या जयराम आदिवासी-मूलवासियों की सामूहिक चेतना की आवाज नहीं होकर महज एक कठपुतली हैं. जो भाषा तो आदिवासी मूलवासी समाज की बोलता है, मुद्दे तो हाशिये की उठाता है, बात तो प्रतिरोध और बगावत की करता है, लेकिन जिसकी मंशा निहायत व्यक्तिगत है,

जयराम: एक बुझी हुई क्रांति या  बाकी है बदलाव की भूख! आखिर क्यों विवादों में घिरता नजर आने लगा यह टाइगर