TNP DESK-दिसम्बर के इस दूसरे सप्ताह में जब ठंड की आहत तेज हो रही है, झारखंड में सियासी पारा आसमान चढ़ता नजर आने लगा है, यदि बात हम इंडिया गठबंधन की करें तो लोकसभा की कुल चौदह सीटों को लेकर घटक दलों के अंदर अपनी-अपनी दावेदारी है. कोई बुंलद जुबान में, तो कोई बेहद शालीन आवाज में अपनी पुरानी सियासी जमीन का हवाला देते हुए दावेदारी को सामने ला रहा है. हालांकि जितनी दमदार आवाज जदयू और राजद की है, उसकी तुलना में कांग्रेस इस शुरुआती ठंड में किकुड़ती नजर आ रही है. और इसकी एक बड़ी वजह तीन राज्यों में भाजपा के साथ वन टू वन मुकाबले में उसकी करारी हार है. निश्चित रुप से यदि इन तीनों राज्यों का चुनाव परिणाम कांग्रेस की झोली में गया होता, तो शायद आज राजद जदयू की आवाज बदली नजर आती. लेकिन अब कांग्रेस की इन कमजोर हड्डियों वार करने में राजद जदयू एक दूसरे से पीछे छुट्टे को तैयार नहीं है. और इसके साथ ही झामुमो की महत्वकांक्षा भी इस बार अपना विस्तार करने की है.
पस्त कांग्रेस का पर कतरने की कोशिश
हालांकि आज भी घटक दलों के नेताओं और प्रवक्ताओं के द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि कौन सा घटक दल किस सीट पर चुनाव लड़ेगा इसका फैसला इंडिया गठबंधन की बैठक में होगा, लेकिन यह सबको पता है कि इस तीन राज्यों में चुनावी शिकस्त के बाद कांग्रेस की बारगेनिंग पावर खत्म हो चुकी है, इंडिया गठबंधन के निर्माण के समय कांग्रेस की जो साख और बारगेनिंग पावर थी, एक ही झटके में वह निचले पायदान पहुंच गया है. और शायद यही वजह है कि राजद-जदयू नेताओं के द्वारा अपने-अपने आलाकमान को उन सीटों की सूची थमा दी गयी है, जिन सीटों पर उनकी अपनी दावेदारी है.
चतरा, कोडरमा, पलामू और गोड्डा राजद की नजर
एक तरफ जहां राजद चतरा, कोडरमा, पलामू और गोड्डा की लोकसभा सीटों पर अपनी दावेदारी कर रहा है, वहीं जदयू की नजर कुर्मी-महतो बहुत लोकसभा सीटों पर है, सूत्रों का दावा कि जदयू रांची संसदीय सीट से पूर्व भाजपा सांसद और कुर्मी जाति का एक मजबूत चेहरा रामटहल चौधरी के बेटे को अपने चुनाव चिह्न पर उतारना चाहती है, इसके साथ ही उसकी नजर हजारीबाग और गिरिडीह सीट पर भी बनी हुई है. इस प्रकार राजद चार और जदयू तीन सीटों पर अपनी दावेदारी कर रहा है, कुल मिलाकर यह आंकड़ा सात का हो जाता है, अब यदि झामुमो कांग्रेस बात करें तो झामुमो किसी भी हालत में इस बार पांच सीटों से कम पर राजी होने को तैयार नजर नहीं आता. दुमका, राजमहल के साथ ही उसकी नजर लोकसभा की और तीन सीटों पर है. इस प्रकार कांग्रेस के हिस्से दो से ज्यादा सीट जाता नजर नहीं आता.
दो सीटों पर चुनाव जीत कर भी कांग्रेस पलट सकती है पासा
अब देखना होगा कि क्या कांग्रेस अपनी दावेदारी तेज करती है, या लालू नीतीश की जोड़ी के आगे सरेंडर करती है, क्योंकि रामगढ़ से ‘जोहार नीतीश’ के साथ ही जदयू ने यह साफ कर दिया है कि इस बार झारखंड में खेल बड़ा होना है, हालांकि यदि झारखंड के इस सियासी जंग में लालू-नीतीश की जोड़ी का जादू चल जाता है. सीएम हेमंत का आदिवासी चेहरा, लालू-नीतीश का पिछड़ा कार्ड अपना रंग दिखला देता है, तो निश्चित रुप से इसका लाभ कांग्रेस को भी मिलना तय है. वैसे भी 7 सीटों से पहलवान उतर कर फजीहत होने से ज्यादा बेहतर यह है कि दो सीट पर चुनाव लड़ कर जीत का परचम फहराया जाय.
वैसे सियासी जानकारों का दावा है कि कांग्रेस किसी भी हालत में चार सीटों से पीछे हटने को तैयार नहीं होगी, लेकिन सियासत में समझौता आम बात है, और कई बार बड़ी लड़ाई के लिए छोटी-छोटी कुर्बानियां देनी होती है. झारखंड में लालू नीतीश की इंट्री के बाद पिछड़ी जातियों के बीच धुव्रीकरण तेज हो सकता है, और इस धुव्रीकरण का लाभ झाममो के साथ ही कांग्रेस को भी मिलना तय है. बावजूद इसके कांग्रेस से इस समझदारी की आशा करना थोड़ा मुश्किल तो जरुर नजर आती है. लेकिन अपनी शायद पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए कांग्रेस इस बार लालू बालू कहने का जोखिम नहीं ले.
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