रांची(RANCHI): झारखंड में आईएएस अधिकारियों का अभी बुरा दौर चल रहा है. पहले मनरेगा घोटाले में राज्य की खान सचिव आईएएस पूजा सिंघल ईडी की रडार पर आई, जिसके बाद वो जेल में बंद है. अब राज्य के कुछ और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी पर भी कानूनी शिकंजा कसने वाला है. इस बार ये शिकंजा ईडी नहीं बल्कि सीबीआई कसने वाली है.
सीबीआई ने आईएएस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांगी अनुमति
दरअसल, स्टील वायर निर्माता कंपनी उषा मार्टिन से जुड़े एक अवैध लौह अयस्क निर्यात मामले में बहुत जल्द सीबीआई सूबे के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और राज्य के जाने-माने उद्योगपति के खिलाफ कार्रवाई करने वाली है. सीबीआई ने वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अरुण कुमार सिंह के साथ-साथ तत्कालीन खान निदेशक इंद्रदेव पासवान के अलावा राज्य के जाने माने उद्योगपति राजीव झावर सहित कई अन्य पर कार्रवाई करने की राज्य और केंद्र सरकार से अनुमति मांगी है. सीबीआई ने इनके खिलाफ अभियोजन चलाने के लिए केंद के कार्मिक विभाग dopt और राज्य सरकार से अनुमति मांगी है. वर्तमान में राज्य सरकार में विकास आयुक्त और स्वास्थ्य सचिव अरुण कुमार सिंह पर आरोप है कि उन्होंने और तत्कालीन खान निदेशक इंद्रदेव पासवान ने जान बूझ कर खान आवंटन में उषा मार्टिन को गलत तरीके से फायदा पहुचाया था. इन दोनों अधिकारियों के अलावा सीबीआई उषा मार्टिन के तीन शीर्ष अधिकारियों पर भी मुकदमा चलाना चाहती है.
क्या है मामला?
दरअसल मामला है कि उषा मार्टिन कंपनी को 2005 में पश्चिमी सिंहभूम जिले के घाटकुरी में पांच अन्य आवेदनों पर लौह अयस्क खदान देने में गलत तरीके से मदद की गई है. आरोप है कि घाटकुरी खदान से तय सीमा से 190 करोड़ रुपये मूल्य के अधिक लौह अयस्क का खनन किया गया है. अरुण कुमार सिंह तब खान विभाग के सचिव थे. सितंबर 2016 में सीबीआई की दिल्ली इकाई में उषा मार्टिन के प्रबंधकों, निदेशक खान, झारखंड सरकार, इंदरदेव पासवान और अन्य के खिलाफ कथित आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों से संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था. राज्य सरकार ने कथित तौर पर लौह अयस्क खदानों के आवंटन के लिए केंद्र को अपनी सिफारिश में उषा मार्टिन का समर्थन किया था क्योंकि कंपनी ने कथित रूप से वादा किया था कि वह आदित्यपुर में अपने इस्पात संयंत्र में अयस्क का उपयोग करेगी. लेकिन आरोप है कि तब लीज शर्तो में कुछ का उल्लेख जानबूझ कर नहीं किया गया था, जिसकी आड़ में कंपनी मनमाने तरीके से आयरन ओर की बिक्री खुले बाजार में करती रही, जिससे राज्य और केंद्र के राजस्व को बड़ा नुकसान हुआ था.
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