Ranchi-इंडिया गठबंधन की तमाम कोशिश के बावजूद झारखंड की करीबन आधा दर्जन सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसान बनते नजर आने लगे हैं. इंडिया गठबंधन और भाजपा के इस सियासी भिड़त के बीच कोडरमा से जयप्रकाश वर्मा, राममहल से लोबिन हेम्ब्रम, लोहरदगा से चमरा लिंडा, चतरा से पूर्व मंत्री नागमणि, पलामू से पूर्व नक्सली और सांसद कामेश्वर बैठा और हजारीबाग से संजय मेहता की उम्मीदवारी पक्की मानी जा रही है. आने वाले दिनों में यह सूची और भी लम्बी होती है या इसमें कुछ चेहरे मान-मनौबल के बाद अखाड़े से बाहर होने का एलान करते हैं, देखने वाली बात होगी. लेकिन फिलहाल इन चेहरों के द्वारा पूरे दम खम के साथ अखाड़े में टिके रहने का दंभ भरा जा रहा है.
कुछ बागी चेहरे तो कुछ का पहले से तय थी इंट्री
यहां ध्यान रहे कि इसमें कुछ चेहरे बागी है, तो कुछ की इंट्री पहले से ही तय मानी जा रही थी, या फिर कहें कि काफी पहले से ही प्रचार-प्रसार अभियान की शुरुआत हो चुकी थी, इसी में एक चेहरा है संजय मेहता का. इनके द्वारा करीबन तीन माह पहले से ही जनसम्पर्क अभियान की शुरुआत हो चुकी थी, और अब संजय मेहता नामांकन की तैयारी में है. जब टाईगर जयराम ने हजारीबाग के अखाड़े से संजय मेहता की इंट्री का एलान किया था, या इसका संकेत दिय़ा था. उस वक्त तक हजारीबाग की तस्वीर साफ नहीं थी. भाजपा के जयंत सिन्हा पर संशय के बादल मंडरा रहे थें तो इंडिया गठबंधन से भी तस्वीर साफ नहीं थी. हालांकि बीच-बीच में योगेन्द्र साव की चर्चा जरुर होती नजर आती थी, बाद अचानक से अम्बा प्रसाद का नाम सामने आया, लेकिन ठीक चुनावी रणभेरी बजने के पहले अम्बा के ठिकानों पर ईडी की छापेमारी तेज हुई और आखिरकार वह अखाड़े से बाहर हो गयी. इस बीच में एक बड़े सियासी उलटफेर में कांग्रेस ने भाजपा का मुख्य सचेतक रहे जेपी पेटल को अपने साथ खड़ा करने में कामयाबी हासिल किया और हजारीबाग के अखाड़े में उतराने का एलान कर दिया और इसके साथ ही जिस समीकरण को सामने रख टाईगर जयराम ने संजय मेहता को अखाड़े में उतारने का मन बनाया था, अब उस समीकरण में बिखराव की स्थिति बनती नजर आने लगी है.
करीबन चार लाख कुड़मी-कुशवाहा किधर
और अब जैसे-जैसे चुनावी प्रचार जोर पकड़ता दिख रहा है. जेपी पटेल हो या संजय मेहता दोनों के सामने यह संकट गहराने लगा है कि जिन चार लाख कुड़मी-कुर्मी और कुशवाहा मतों से आसरे सियासी तकदीर तय होनी है, उनके मन में क्या चल रहा है? यदि आप इन दोनों प्रत्याशियों के दावों पर विश्वास करें तो दोनों को ही 70 फीसदी से अधिक कुड़मी कुशवाहा वोट अपने खाते में आता दिख रहा है. इसका मतलब साफ है कि अभी तक कुड़मी-कुशवाहा जाति ने अपना मन नहीं बनाया है, और वह भी सियासी बयार का थाह लेने की कोशिश में है. वैसे हजारीबाग की सियासत पर पैनी नजर रखने वाले सियासी जानकार और स्थानीय पत्रकारों का दावा है कि कुड़मी-कुशवाहा जाति अभी हवा को भांपने की कोशिश में है, कई दौर की मीटिंग हो चुकी है, लेकिन अब तक किसी भी फैसले पर नहीं पहुंचा गया है. आने वाले दिनों में सियासी रुख को भांपते हुए ही अंतिम फैसला लिया जायेगा.
क्या किसी एक पार्टी के साथ ही खड़े होंगे कुड़मी-कोयरी मतदाता
संशय इस बात पर भी कायम है कि क्या इस बार कुड़मी-कुशवाहा किसी एक चेहरे के साथ खड़ा होंगे. क्योंकि पिछला अनुभव इस बात की तस्दीक नहीं करता और कुड़मी मतों में इसी बिखराव के कारण करीबन चार लाख की आबादी वाला कुर्मी-कुशवाहा कभी भी हजारीबाग में निर्णायक स्थिति में नहीं रहा. हालांकिवर्ष 1991 भुवनेश्वर मेहता को सफलता जरुर मिली, लेकिन भुवनेश्वर मेहता की इंट्री कांग्रेस और भाजपा के बजाय भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के बैनर तले हुई थी. वर्ष 1996 में पिछड़ी जाति से आने वाले महावीर विश्वकर्मा भी कमल की सवारी कर संसद पहुंचने में जरुर कामयाब रहें कि 1998 में महावीर विश्वकर्मा का पत्ता काटते हुए भाजपा ने यशवंत सिंन्हा पर बाजी लगाना बेहतर समक्षा, जिसके बाद एक बार फिर से वर्ष 2004 में भुवनेश्वर मेहता ने लाल झंडे के साथ परचम लहराया. देखना होगा कि इस बार चुनावी परिणाम क्या होता है?
क्या है सामाजिक समीकरण
यहां याद रहे कि एक आकलन के अनुसार हजारीबाग संसदीय सीट पर करीबन 1.5-2लाख कोयरी, 2-2.5 कुड़मी,80 हजार से एक लाख राजपूत, 50 से 80 हजार-ब्राह्मण,30-60हजार बनिया,1-1.5लाख-मुस्लिम और करीबन 2-3 लाख आदिवासी मतदाता है. इस हालत में यदि कुड़मी-कोयरी, मुस्लिम और आदिवासी मतदाताओं की लामबंदी होती है, तो लम्बे अंतराल के बाद कांग्रेस का खाता खोलने की स्थिति में आ सकता है. लेकिन कुड़मी-कोयरी मतों का विभाजन होता है तो एक बार फिर से भाजपा का कमल खिल सकता है.
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