Ranchi- गोड्डा-राजमहल के बाद अब लोहरदगा सीट पर भी इंडिया गठंबधन की नाव फंसती नजर आ रही है. जहां टिकट वितरण के बाद अंसतोष और बगावत की खबरें आने के बाद कांग्रेसी रणनीतिकारों ने धोषित प्रत्याशी दीपिका पांडेय के अखाड़े से बाहर करते हुए प्रदीप यादव युद्ध का कमान सौंपा. वहीं राजमहल में झामुमो के घोषित प्रत्याशी विजय हांसदा के खिलाफ लोबिन हेम्ब्रम ने ताल ठोंकने का खुलेआम एलान कर दिया है और इधर लोहरदगा में विशुनपुर से झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने नामांकन दाखिल कर प्रदेश कांग्रेस नींद उड़ा दी है.
चेतावनी या समर्थन का गेम प्लान
और यह स्थिति तब है जब कि नामांकन पत्र खरीदने के साथ ही चमरा लिंडा को पार्टी की ओर चेतावनी जारी की गयी थी. मुकाबले से दूर रखने या अंजाम भुगतने की चेतावनी दी गयी थी. लेकिन चमरा लिंडा पर इसका कोई असर पड़ता नहीं दिखा और इसके साथ ही यह सवाल गहराने लगा कि यह चमरा लिंडा की बगावत है या फिर इसके पीछे कोई गेम प्लान है और यह गेम प्लान सिर्फ झामुमो का है या फिर इस षडयंत्र में कांग्रेस के एक खेमे का भी समर्थन प्राप्त है, इस आशंका तब और भी बल मिलता दिखा, जब सुखदेव भगत के नामांकन के दौरान प्रदेश कांग्रेस प्रभारी गुलाम अहमद मीर को भीड़ की कमी के कारण सार्वजनिक रुप से पार्टी विधायको को क्लास लगानी पड़ी, जो भीड़ और समर्थन चमरा लिंडा के नामांकन के दौरान देखने को मिला, उसकी झलक सुखदेव भगत के नामाकंन के वक्त देखने को नहीं मिली. मजे की बात यह थी कि यह उदासीनता सिर्फ झाममो की ओर से ही नहीं थी, खुद कांग्रेसी विधायकों के द्वारा भी इस अवसर पर शक्ति प्रर्दशन बचने की कोशिश की गयी.
मांडर विधायक शिल्पी नेहा तिर्की की भूमिका
शक की सुई मांडर विधायक शिल्पी नेहा तिर्की की भूमिका पर भी है, दावा किया जाता है कि सुखदेव भगत के नामांकन के दौरान मांडर विधान सभा से शिल्पी नेहा तिर्की, पूर्व विधायक और कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की से सिवा महज चंद लोग ही थें. जबकि बंधु तिर्की को एक मजबूत जनाधार का नेता माना जाता है, उनके एक इशारे पर आदिवासी समाज हजारों की भीड़ खड़ा कर देता है, बावजूद इसके गिनती के चंद लोग की सुखदेव भगत के नामांकन में उपस्थित होना सवाल तो जरुर खड़ा करता है, और शायद इसी कारण प्रदेश प्रभारी मीर को अपने विधायकों की क्लास लगानी पड़ी
बंधु तिर्की का यह उदासीन रवैया.
इस हालत में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि आखिर लोहरदगा में चल क्या रहा है? एक तरफ पार्टी चेतावनी दरचेतावनी जारी कर चमरा लिंडा को अखाड़े से दूर रहने की औपचारिकता पूरी करती दिख रही है, वहीं दूसरी तरफ बंधु तिर्की का यह उदासीन रवैया कुछ संकेत तो जरुर कर रहा है. हालांकि पार्टी के सूर-ताल के साथ अपना स्वर मिलाते हुए बंधु तिर्की सार्वजनिक मंचों पर यह दावा जरुर कर रहे हैं कि लोहरदगा में चमरा कोई फैक्टर नहीं है. लेकिन हर कोई जानता है कि सियासत की डगर इतनी आसान नहीं होती. ध्यान रहे कि बंधु तिर्की भी लोहरदगा से अपनी बेटी शिल्पी नेहा तिर्की को अखाड़े में उतारने को इच्छुक थें. लेकिन उनकी मांग और सलाह को दरकिनार करते हुए पार्टी ने सुखदेव भगत को अपना प्रत्याशी बनाया. इसके पहले जलेश्वर महतो के साथ मिलकर बंधु तिर्की ने रांची सीट के लिए रामटहल चौधरी की बैटिंग भी की थी, लेकिन पार्टी आलाकमान ने तब भी उस सलाह को दरकिनार करते हुए सुबोधकांत सहाय की बेटी यशस्विनी सहाय पर दांव लगाने का फैसला किया था. तो क्या यह उसी नाराजगी का परिणाम है? और इस नाराजगी में वह सिर्फ चमरा लिंडा के खिलाफ सार्वजनिक बयान जारी कर औपचारिकता पूरी करते नजर आ रहे हैं.
क्या कांग्रेस को सबक सिखाने की राह पर आगे बढ़ रही झामुमो
य़हां यह भी ध्यान रहे कि शिल्पी नेहा तिर्की आज भले ही कांग्रेस के टिकट पर विधायक हो, लेकिन जब से पूर्व सीएम हेमंत की गिरफ्तारी हुई है, बंधु तिर्की की नजदीकियां झामुमो से कुछ ज्यादा ही प्रगाढ़ होती नजर आयी है और इसकी एक झलक तब भी मिली थी, जब बंधु तिर्की ने अपनी आदिवासी सेना का कांग्रेस के बजाय झामुमो में विलय करवाया था. तो क्या यह सब कुछ झामुमो के इशारे पर हो रहा है, क्या झामुमो कांग्रेस को सबक सिखाने के मूड में है, या वह स्थिति को इस हद तक ले जाना चाहता है कि कांग्रेस खुद भी लोहरदगा से अपना हाथ खिंचने पर मजबूर होता नजर आये.
दरअसल इस आंशका के पीछे कई मजबूत तर्क है, दरअसल 2009 के मुकाबले में चमरा लिंडा ने निर्दलीय मैदान में उतर कांग्रेस के धोषित प्रत्याशी रामेश्वर उरांव को तीसरे स्थान पर ढकेल दिया था, जबकि 2014 में तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर वह तीसरे स्थान पर थें, हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि 2019 में सुखदेव भगत ने कांग्रेस के टिकट पर 3,61,232 लाख वोट पाया था, लेकिन इसके साथ यह भी याद रहे कि तब चमरा लिंडा मैदान में नहीं थें.
चमरा लिंडा का दावा
चमरा लिंडा का दावा है कि वह उनका शुरुआती दौर था, तब उनकी पहचान सिर्फ विशुनपुर तक रही सिमटी थी, बिगत 10 वर्षों में उनकी सियासी जमीन का विस्तार हुआ है, आज पूरे लोहरदगा में उनकी एक आवाज पर हजारों की भीड़ जुटती है और इस सियासी जनाधार के बूते वह निर्दलीय मैदान में कूद कर भी भाजपा को शिकस्त देने का सामर्थ्य रखते हैं. इसके साथ ही उनका यह दावा भी है कि वह इस जीत के साथ ही झामुमो का हिस्सा बने रहेंगे, क्योंकि उनकी लड़ाई भाजपा की आदिवासी विरोधी नीतियों से है, सरना धर्म कोड की है, आदिवासी अस्मिता की पहचान की है. तो क्या यह माना जाय झामुमो के साथ ही कांग्रेस का एक घड़ा भी चमरा लिंडा के साथ खड़ा है, और वह इसी बूते जीत की हुंकार लगा रहे हैं. देखना होगा कि आने वाले दिनों में लोरहदगा की सियासत में कौन सा रंग देखने को मिलता है, बड़ा सवाल तो यही है कि क्या झामुमो पार्टी से बाहर का रास्ता दिखलाती है या फिर अदृश्य समर्थन प्रदान कर राह आसान बनाती है.
आप इसे भी पढ़ सकते हैं
जमशेदपुर में JMM का नया प्रयोग: सवर्ण चेहरे के सहारे अगड़ी जातियों में सेंधमारी का मास्टर प्लान
रामटहल के दरबार में यशस्विनी, आशीर्वाद या अरमानों पर पानी फेरने की तैयारी में 'कुर्मियों का चौधरी'
LS 2024 Chaibasa “आदिवासी सिर्फ आदिवासी” दीपक बिरुवा का दावा, हो-संताल विवाद भाजपा की साजिश
“धनबाद से पहली बार एक अल्पसंख्यक चेहरा’ टाईगर जयराम की पार्टी का दावा इतिहास गढ़ने का मौका
“कालीचरण के साथ भगवान बिरसा का आशीर्वाद” खूंटी से सीएम चंपाई की हुंकार, आदिवासी विरोधी है भाजपा
4+