Ranchi-विधान सभा में हार और अपने ही पूर्व मंत्री सरयू राय के हाथों सीएम रघुवर दास की शिकस्त के बाद, जब भाजपा आलाकमान ने अपने पुराने सिपहसलार पूर्व सीएम बाबूलाल को पार्टी में वापसी करवाने का फैसला किया, तो इसके पीछे एक खास सियासत थी, एक मकसद था. और वह मकसद था. किसी भी तरीके से झामुमो का सबसे मजबूत किला संताल और कोल्हान पर फतह पाना. बाबूलाल भी बेहद खामोशी के इस टास्क को अंजाम देने में जुट गये. झामुमो के इस किले को ध्वस्त करने का एक ही रास्ता था. झामुमो के उस सामाजिक समीकरण को ध्वस्त करना, जिसके बूते कोल्हान की सभी 13 सीटों पर महागठंबधन का झंडा फहरता था. बाबूलाल की पहली कोशिश कोल्हान के किले में गीता कोड़ा को अपने साथ खड़ा करने की थी. भले ही गीता कोड़ा की औपचारिक रुप से भाजपा में इंट्री अब हुई हो. लेकिन इसी प्लानिंग काफी अर्से पहले तैयार की गयी थी. बाबूलाल की दूसरी रणनीति किसी जमाने में कोल्हान की सियासत की सबसे मजबूत कुर्मी चेहरा शैलेन्द्र महतो को एक बार फिर अखाड़े में उतारने की थी. बाबूलाल की सियासी रणनीति आदिवासी मतदाताओं के साथ कुर्मी मतदाताओं की जुगलबंदी तैयार करने की थी. यहां याद रहे कि भले ही कोल्हान के तीनों प्रमंडलों पूर्वी सिंहभूम, सराइकेला खरसावाँ और पश्चिमी सिंहभूम में भले ही आदिवासी मतदाताओं की बहुलता तो लेकिन एक बड़ी संख्या में कुर्मी महतो आबादी भी निवास करती है. और यह कुर्मी मतदाता ही हार जीत का फैसला करते रहे हैं.
मधु कोड़ा और शैलेन्द्र महतो के जुगलबंदी के सहारे कोल्हान फतह का सपना
बाबूलाल की रणनीति एक ऐसा सामाजिक समीकरण तैयार करने की थी, जिसके बूते झामुमो के इस किले में एक बार फिर से कमल को खिलाया जा सकें और इसी मकसद से प्रदेश अध्यक्ष के रुप में ताजपोशी के साथ ही सियासी बियावान में भटक रहे, शैलेन्द्र महतो को एक बार फिर से कोल्हान की सियासत में सक्रिय करने का फैसला किया. हालांकि उस वक्त भी शैलेन्द्र महतो की पत्नी आभा महतो की भाजपा में सक्रियता थी. लेकिन शैलेन्द्र महतो की सक्रियता सीमित हो चुकी थी. कहा जा सकता है कि बाबूलाल ने एक प्रकार से शैलेन्द्र महतो का भाजपा में पुनर्वापसी करवायी. लेकिन कोल्हान की सियासत में बाबूलाल का यह सपना पूरा होता नहीं दिख रहा. जिस शैलेन्द्र महतो के सहारे जीत का दांव लगाया जा रहा था, अब उसी शैलेन्द्र महतो ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख कर हेमंत सोरेन को झूठे मुकदमें में फंसाने का आरोप लगाया है. शैलेन्द्र महतो का दावा है कि भूंईहरी जमीन तो बहाना, भाजपा के असली मकसद हेमंत को निपटाना है, और इसी मकसद को पूरा करने के लिए यह पूरा षडयंत्र रचा गया, हेमंत सोरेन को जेल के अंदर बन्द किया गया. इसके साथ ही शैलेन्द्र महतो केन्द्रीय आलाकमान भी को निशाने पर लिया है, उनका कहना है कि झारखंड भाजपा के सभी नेता इस बात को भली भांति जानते हैं कि हेमंत सोरेन निर्दोष है, लेकिन उनकी मुश्किल है कि वह अपने आलाकमान के खिलाफ आवाज उठाने की हैसियत में नहीं है, जबकि दिल्ली भाजपा किसी भी कीमत पर झारखंड के जल जंगल और जमीन पर कब्जा करना चाहती है, चाहे हेमंत को गैर कानूनी और असंवैधानिक रुप से भी जेल में ही क्यों नहीं रखना पड़े.
इस बीच सियासी जानकारों का दावा कि दरअसल शैलेन्द्र महतो के इस बदले रुख का कारण कुछ और ही है, उनकी मंशा जमशेदपुर से चुनाव लड़ने की थी, शुरु में उन्हे इस बात का विश्वास था कि इस बार उन्हे या उनकी पत्नी को जमशेदपुर संसदीय सीट से मैदान में उतारा जा सकता है, वह बाबूलाल के साथ खड़े नजर आयें, लेकिन जैसे ही टिकट का वितरण हुआ , और एक बार फिर से विद्यूत वरण महतो को जमशेदपुर से उतार दिया गया, इनके पास भाजपा के साथ रहने का कोई कारण नहीं था, और यही कारण है कि वह अब पीएम मोदी को पत्र लिख कर पूर्व सीएम हेमंत की रिहाई की मांग कर रहे हैं, दरअसल यह हेमंत की रिहाई की मांग कम और झाममो से टिकट की आस कुछ ज्यादा है. खबर यह भी है शैलेन्द्र महतो के नेतृत्व में कई कुर्मी नेता जल्द ही बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारा में हेमंत सोरेन से मुलाकात करने वाले हैं, और जैसे ही कोल्हान में कल्पना सोरेन का दौरा होता है, झामुमो में शामिल होने की औपचारिक घोषणा की जायेगी, यानि फिलहाल बाबूलाल और भाजपा के कोल्हान फतह करने के सपने पर विराम लगता दिख रहा है.
हरियाणा से खुला रास्ता, कल्पना सोरेन का सीएम बनने का रास्ता साफ! अब कौन सी दलील पेश करेंगे निशिकांत