Ranchi:-भले ही धनबाद को लेकर कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हों, उसके अंदर अभी भी धनबाद के सियासी अखाड़े के लिए पहलवानों के चयन पर माथापच्ची जारी हो, लेकिन भाषा आन्दोलन से झारखंड की सियासत में इंट्री करने वाले टाईगर जयराम की पार्टी झारखंड क्रांतिकारी लोकतांत्रिक मोर्चा ने इकलाख अंसारी के नाम का एलान कर कोयलांचल का सियासी तपीश जरुर बढ़ा दिया है. यहां सवाल इकलाख अंसारी की जीत या हार का नहीं है, इसका फैसला तो चुनावी नतीजों से तय होगा, लेकिन इकलाख के नाम को आगे कर टाईगर जयराम ने धनबाद के जिस समाजिक समीकरण को साधने की कोशिश की है, उसका संदेश दूरगामी होने वाला है.
झारखंड में 15 फीसदी है मुस्लिम समाज की आबादी
यहां याद रहे कि झारखंड में मुस्लिम समाज की आबादी करीबन 15 फीसदी है. लेकिन इस 15 फीसदी मुस्लिम समुदाय को ना तो भाजपा की ओर से एक भी सीट मिली और ना ही गाहे बेगारे धर्मनिरपेक्षता का राग अलापने वाली आजसू के खाते से. लेकिन इसके साथ ही इंडिया गठबंधन की ओर से भी किसी अल्पसंख्यक चेहरे को उम्मीदवार नहीं बनाया गया है. बीच-बीच में गोड्डा से किसी अल्पसंख्यक चेहरे पर दांव लगाने की खबर जरुर आती है, लेकिन उसके साथ ही प्रदीप यादव लेकर दीपिका पांडेय सिंह का नाम भी उछलता है. हालांकि अभी भी कांग्रेस की ओर से चार प्रत्याशियों का एलान किया जाना है, देखना होगा कि उस चार में किसी अल्पसंख्यक चेहरे को जगह मिलती है या नहीं. लेकिन इस बीच जयराम ने धनबाद से एक अल्पसंख्यक चेहरा को उतार कर इतना जरुर साफ कर दिया है कि झारखंड क्रांतिकारी लोकतांत्रिक मोर्चा की सियासत किस दिशा में आगे बढ़नी वाली है.
ढुल्लू महतो का रास्ता साफ करने की कोशिश तो नहीं
लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा होने लगा है कि आखिर इकलाख अंसारी को आगे कर जयराम कौन सी सियासत साधना चाहते है? क्या यह ढुल्लू महतो का रास्ता साफ करने की कोशिश है? इस आरोप के पीछे सियासी जानकारों का तर्क है कि यह टाईगर जयराम की पहली सियासी इंट्री है, यह टाईगर जयराम को भी पत्ता है कि धनबाद का चुनावी परिणाम क्या आने वाला है. बहुत हद तक इस प्रयोग के जरिये वह विधान सभा चुनाव के लिए अपने सियासी जमीन की ही तलाश कर रहे हैं, लेकिन यदि इस सियासी प्रयोग में अल्पसंख्यक समाज इकलाख अंसारी के साथ खड़ा हो जाता है, तो उसका सीधा लाभ ढुल्लू महतो को मिलेगा और इस आशंका के पीछे मजबूत तर्क भी है, आखिर अल्पसंख्यक समाज बगैर किसी समूचित हिस्सेदारी के अपने आप को इंडिया गठबंधन के साथ खड़ा क्यों करेगा? क्यों नहीं वह उस चेहरे के साथ लामबंद होना पसंद करेगा, जहां उसे सामाजिक-सियासी प्रतिनिधित्व प्रदान किया जा रहा है, और यदि इसका नुकसान कांग्रेस या इंडिया गठबंधन को होता है, तो यह इसकी जिम्मेवारी अल्पसंख्यक समाज पर तो नहीं डाली जा सकती.
क्या है धनबाद का सामाजिक समीकरण
यहां ध्यान रहे कि एक आकलन के अनुसार धनबाद संसदीय क्षेत्र में कुर्मी-17 फीसदी, मुस्लिम- 15 फीसदी और इसके साथ ही 15 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी है. यानि यदि महतो और मुस्लिम एक साथ खड़ा हो जाय तो यह आंकड़ा 32 फीसदी के पास पहुंच जाता है, और यदि इनकी लामबंदी होती है, तो दूसरी पिछड़ी जातियां भी इनके साथ खड़ा हो सकती है, यानि धनबाद के सियासी अखाड़े में जयराम की ताकत दिख सकती है, यहां सवाल फिर से वही है. यह लड़ाई हार जीत से ज्यादा शक्ति प्रर्दशन की होगी, इस बात की होगी कि जयराम अपने चेहरे के बूते कुर्मी जाति के मतदाताओं को इकलाख के साथ कितनी मजबूती के साथ ख़ड़ा कर पाते हैं, और यदि यह जोर आजमाईश रफ्तार पकड़ती है तो क्या मुस्लिम समाज एक बार अपने फैसले पर पुनर्विचार करते हुए इकलाख के साथ खड़ा होना पसंद नहीं करेगा? और क्या इस सियासी प्रयोग में ढुल्लू महतो का राह खुलने की संभावना नहीं दिख रही? क्योंकि इस हालत में सेंधमारी तो इंडिया गठबंधन के वोटों ही होना है.
धनबाद के इस पैतरे का गिरिडीह में क्या होगा असर?
लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो रहा है क्या धनबाद में इकलाख के नाम को आगे कर जयराम गिरिडीह में एक नया समीकरण खड़ा करने की जुगत में हैं. क्या यह टाईगर जयराम की यह सोची समझी रणनीति है. क्या कुर्मी बहुल गिरिडीह में 16 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाताओं को यह संदेश देने की कोशिश है कि यह टाईगर जयराम ही है जो हर झारखंडी समूहों को समूचित प्रतिनिधित्व देने की राह पर है. हजारीबाग से संजय मेहता-कुशवाहा, कोडरमा से मनोज यादव-यादव, दुमका से आदिवासी, रांची से देवेन्द्र नाथ महतो- कुर्मी तो अब धनबाद में एक अल्पसंख्यक चेहरे पर दांव के बाद तो यह दावेदारी तो पूरा जोर तरीके से की ही जा सकती है. यदि गिरिडीह में अल्पसंख्यक समाज के बीच यह दावा काम कर गया तो क्या एक ही झटके में 16 फीसदी वोटों को जुगाड़ नहीं हो सकता है? तो क्या टाईगर ने धनबाद के अखाड़े से इकलाख पर दांव लगा कर गिरिडीह में अपनी राह को आसान बनाने की कोशिश की है? फिलहाल इसके लिए कुछ और दिनों का इंतजार करना होगा,देखना होगा कि धनबाद का यह दांव गिरिडीह में अपना असर कब शुरु करता है, या फिर शुरु करता भी है या नहीं. क्योंकि तमाम प्रयोगों के बाद भी अल्पसंख्यक समाज टाईगर जयराम के चेहरे पर कितना विश्वास करेगा, यह एक बड़ा सवाल है, लेकिन टाईगर जयराम ने अपने सियासी इंट्री के साथ ही एक मजबूत दांव जरुर खेल दिया है, जिसकी काट कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के दूसरे घटक दलों को भी खोजनी होगी, और यदि जरा सी भी चूक हुई तो इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है.
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