Ranchi-31जनवरी की वह सर्द रात, समय करीबन 9.30 बजे, तात्कालीन सीएम हेमंत महामहिम से मुलाकात के बाद अपना इस्तीफा सौंप देते हैं, उसके बाद 3 जनवरी को करीबन 12.15 पर झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रुप में चंपई सोरेन की शपथ ग्रहण होती है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इन 70 घंटों में झारखंड का मुख्यमंत्री कौन था, सरकार के अहम फैसले लेने की जिम्मेवारी किसके कंधे पर थी और यदि इस बीच कोई बड़ा संकट खड़ा हो जाता तो अधिकारियों को समूचित कार्रवाई का आदेश देता? और जिस तरह हेमंत की गिरफ्तारी की आशंका मात्र से राजधानी की सड़कों पर समर्थकों का हुजूम उमड़ रहा था? यदि समर्थकों की वही भीड़ उग्र हो जाती, तो उस हालत में अधिकारियों को कार्रवाई का हुक्म कौन देता? या इसकी जिम्मेवारी किसके कंधों पर होती? क्या इस बीच अधिकारियों के बीच यह सवाल नहीं उमड़ रहा होगा कि उनके सूबे का मुखिया कौन है?
राष्ट्रपति के शासन के बाद ही राज्यपाल के पास आती है राज्य की सत्ता
निश्चित रुप से आपके जेहन में यह जवाब सामने आ सकता है कि मुख्यमंत्री का ही तो इस्तीफा तो हुआ था, राज्यपाल तो अपने पद मौजूद थें, इस हालत में राज्य सारे फैसले उनकी ओर से लिए जा रहे होंगे? लेकिन इस जवाब तक आने के पहले आपको यह जानना बेहद जरुरी है कि राज्य में राष्ट्रपति लागू नहीं हुआ था. और किसी भी हालत में राष्ट्रपति शासन की औपचारिक घोषणा के बाद ही राज्यपाल के हाथ में संवैधानिक रुप से राज्य की सत्ता आती है, तब यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर इन 70 घटों में राज्य की सत्ता किसके हाथ में थी? राज्य का मुखिया कौन था? क्या तात्कालीन सीएम हेमंत के इस्तीफे के बाद राजभवन की ओर से इस संवैधानिक संकट के बारे में विचार नहीं किया गया था? क्या हेमंत को सत्ताहीन करने की जल्दबाजी में बगैर कार्यवाहक मुख्यमंत्री की व्यवस्था किये ही उन्हे कालकोठरी के लिए रवाना कर दिया गया. और क्या अपनी गिरफ्तारी के बाद भी सीएम कार्यवाहक मुख्यमंत्री रुप में राज्य की बागडोर को अपने हाथ में नहीं रख सकते थें? दिल्ली में तो मनीष सिसोदिया तो अपनी गिरफ्तारी के बाद भी सारे सरकारी फायलों को जेल से निपटा रहे थें, तो फिर झारखंड में सीएम हेमंत को कार्यवाहक मुख्यमंत्री बनाकर इस संकट को क्यों नहीं टाला जा सकता था.
झामुमो के सवाल से उलझती सूबे की सियासत
दरअसल यह सारे सवाल जेएमएम की ओर से उठाये जा रहे हैं. और यह पूछा जा रहा है कि हेमंत को सत्ताविहीन करने की इतनी जल्दबाजी क्यों थी? आखिर झारखंड को इस संवैधानिक संकट की ओर किस षडयंत्र के तहत धकेला जा रहा था. झामुमो का दावा कि चूंकि भाजपा ऐन-केन-प्रकारेण किसी भी हालत में सत्ता हड़पना चाहती थी, और उसे इस बात की आशंका थी कि यदि हेमंत सोरेन कार्यावाहक मुख्यमंत्री बने रहे तो उसके सपनों पर पानी फिर सकता है, बस इसी सत्ता की चाहत में सीएम हेमंत को कार्यवाहक मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया गया. हालांकि इसके बावजूद हम विधान सभा में अपना बहुमत साबित करने में सफल रहें.