Ranchi-हर गुजरते दिन के साथ पलामू का मुकाबला कांटे के संघर्ष में तब्दील होता नजर आ रहा है. शुरुआती दौर में जिस मुकाबले को भाजपा के पक्ष में बताया जा रहा था, अब वह दिलचस्प मोड़ पर खड़ा दिखलायी देने लगा है, हालांकि जीत की वरमाला किसके हिस्से आयेगी और किसे सियासी शिकस्त का सामना करना पड़ेगा फिलहाल यह कहना मुश्किल है, क्योंकि इस कांटे के संघर्ष में बाजी किसी के हाथ भी जा सकती है.
नौ उम्मीदवारों की किस्मत का होना है फैसला
यहां ध्यान रहे कि पलामू में 13 मई को मतदान होना है. नामांकन वापसी के आखिरी दिन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया के अभय कुमार और भागीदारी पार्टी (पी) के. सतेंद्र कुमार पासवान के द्वारा अपना नाम वापस लिए जाने के बाद अब कुल 9 उम्मीदवार इस सियासी अखाड़े में है. राजद-ममता भुइंया, भाजपा-बीडी राम, बहुजन समाज पार्टी-कामेश्वर बैठा, राष्ट्रीय समानता दल-ब्रजेशकुमार तुरी, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ़ इंडिया (कम्युनिस्ट) महेन्द्र बैठा, बहुजन मुक्ति पार्टी- राम वचन राम, पीपुल्स पार्टी ऑफ़ इंडिया(डेमोक्रेटिक)- वृन्दा राम, लोकहित अधिकार पार्टी- सदन राम, और निर्दलीय-गणेश रवि, जिनकी किस्मत का फैसला पलामू के 22,43,034 मतदाताओं के हाथ में है.
मुख्य मुकाबला राजद के ममता भुईंया और भाजपा के बीडी राम के बीच
लेकिन मुख्य मुकाबला राजद के ममता भुइंया और भाजपा के बीडी राम के बीच ही माना जा रहा है. राजद ने यहां से पूरी ताकत छोक दी है, राजद प्रदेश अध्यक्ष संजय यादव से पूर्व विधायक संजय यादव कैम्प डाले हुए है. प्रचार-प्रसार का अंतिम दौर है, लेकिन दूसरी ओर भाजपा की ओर से भी मजबूत तैयारी है, प्रधानमंत्री की सभा के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह है और अपनी जीत को महज एक औपचारिकता मानने का आत्मविश्वास है. दरअसल भाजपा के इस हौसले की पीछे वर्ष 2014 और 2019 का परिणाम है. वर्ष 2019 में विष्णुराम ने करीबन चार लाख मतों से जीत हासिल की थी, तब विष्णु राम को 62.46 फीसदी वोट मिले थें, जबकि उनके सामने मुकाबले में खड़े धुरन राम को महज 22.98 फीसदी मतों से संतोष करना पड़ा था, इसके पहले के मुकाबले में वर्ष 2014 में भी विष्णु राम ने करीबन ढाई लाख मतों से जीत हासिल की थी. उनके हिस्से में 48.76 वोट आये थें, जबकि मनोज कुमार को महज 21.75 मतों के साथ ही संतोष करना पड़ा था.
फिर राजद क्यों रहा है अपनी जीत की दावेदारी
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि आखिर वह आधार क्या है, जिसके बूते राजद जीत की हुंकार लगा रहा है. जबकि वर्ष 2014 हो या 2019 जीत-हार का अंतर ढाई लाख से चार लाख मतों का रहा है. क्या बीडी राम के खिलाफ एटीं इंकबैंसी की लहर है? क्या मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा अब पीएम मोदी से विमुख होकर तेजस्वी में अपना भविष्य देखने लगा है? सियासी जानकारों का दावा है कि पलामू की धरती पर राजद का एक मजबूत जनाधार रहा है, सामाजिक समीकरण भी राजद के अनुकूल है. यह ठीक है कि वर्ष 2014 में जब राष्ट्रीय क्षितिज पर पीएम मोदी की इंट्री हुई, तो पीएम मोदी के अति पिछड़ा में अति पिछड़ी जातियों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ खड़ा हो गया, और वर्ष 2019 में स्थानीय मुद्दों से अधिक जोर फूलवामा अटैक था. फूलवामा अटैक के बाद राष्ट्रवाद की उस आंधी में सारे स्थानीय मुद्दे गायब हो गयें. एंटी इनकंबेंसी दफन हो गया, बढ़ती मंहगाई, बेरोजगारी, दलित-पिछड़ों की सामाजिक- सियासी हिस्सेदारी का सवाल राष्ट्रवाद की आंधी में उड़ गया. लेकिन इस बार ना तो 2019 की सियासी फिजा है, और ना ही 2019 का राष्ट्रवाद की आंधी. 2024 का यह चुनाव पूरी तरह जमीनी मुद्दों पर ल़ड़ा जाता नजर आ रहा है.
क्या है पलामू के स्थानीय मुद्दे
लेकिन इस बात पूरी लडाई स्थानीय मुददों पर सिमटती नजर आ रही है, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने जरुर स्थानीय मुद्दों के बजाय हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर सामाजिक धुर्वीकरण की कोशिश की, लेकिन वह कोशिश रंग लाती नहीं दिख रही है, हिन्दू मुस्लिम, मंगलसूत्र, पिछडी जातियों का आरक्षण मुस्लिमों को देने का आरोप जमीन पर उतरती दिखलाई नहीं पड़ रही. इसके विपरीत बेरोजगारी, पलायन, सिंचाई, मंडल डैम, चियाकी हवाई अड्डा, जपला सीमेंट के साथ ही बीडी राम के प्रति नाराजगी मुख्य मुद्दा बनता नजर आ रहा है. बावजूद इसके भाजपा समर्थकों को इस बात का आत्मविश्वास है कि मतदान के लाइन में लगते ही यह सारे मुद्दे गायब हो जायेंगे, और काम सिर्फ पीएम मोदी का चेहरा आयेगा.
क्या है पलामू का सामाजिक समीकरण
यहां याद रहे कि अनुमान के मुताबिक पलामू में भुइंया जाति-2.5-3 लाख, दास-1.5-2.5, पासवान- 1.5 से 2 लाख, मुस्लिम-2-3 लाख, यादव-1-2 लाख और राजपूत-50 हजार के आसपास है. इस हालत में राजद का पूरा जोर भूइंया जाति का 2.5 लाख, मुस्लिम-3 लाख, यादव 2 लाख को अपने पाले में खड़ा कर मजबूत सियासी बिसात बिछाने की होगी. जबकि भाजपा की रणनीति करीबन अपर कास्ट मतदाताओं के साथ ही करीबन 1.5 से 2-लाख पासवान जाति को अपने पाले में खड़ा करने की है. इस हालत में देखना होगा कि चार मई को अंतिम परिणाम क्या आता है, लेकिन इतना तय है कि मुकाबला बेहद दिलचस्प है, जहां से अब बाजी किसी ओर भी पलट सकती है.
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