Patna-कभी इंडिया गठबंधन के सूत्रधार के रुप में जो “2019 में आयें है, 2024 में विदाई होने वाली है” का हुंकार लगाने वाले नीतीश कुमार की पांचवीं पलटी का करीबन एक महीना पूरा होने को है, इस एक माह में अभूतपूर्व रुप से नौवीं बार शपथ ग्रहण का कार्यक्रम भी पूरा हो चुका है. लेकिन बहुमत साबित करने के बावजूद नीतीश कुमार इस बार अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं. इस बीच राज्य सभा का चुनाव भी सम्पन्न हो गया और कथित रुप से उन्हे महागठबंधन के भ्रमजाल से बाहर निकाल कर लाने वालों में से एक संजय झा राज्य सभा निकल चुके हैं, जबकि दूसरे सियासी रणनीतिकार अशोक चौधरी की गतिविधियां अचानक से ठहर सी गयी है. जबकि दूसरी ओर ललन सिंह, जिन पर राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए राजद के साथ गलबहिंया लगाने का आरोप था, सियासी गलियारों में इस बात का तंज कसा जाता था कि ललन सिंह की प्रतिबद्धता नीतीश की बजाय लालू परिवार के प्रति कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है, उनके मन किसी कोने में तेजस्वी को सीएम का ताज पहनाने की चाहत हिलोरे मार रही है, और कथित रुप से राजद के प्रति उनका यही प्रेम राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से उनकी छुट्टी की मुख्य वजह भी बतायी जा रही थी, एक बार फिर से मोर्चा संभालते दिख रहे हैं. और इसके साथ ही एक बार फिर से बिहार के सियासी गलियारों में मौसम परिवर्तन की चर्चा गहनाने लगी है, और यह सवाल दागा जाने लगा है कि आखिर इस मंत्रिमंडल विस्तार में देरी की वजह क्या है? आखिरकार सीएम नीतीश कुमार किस सियासी उलझन का शिकार हैं, आखिर वह इतनी भाग दौड़ करने के बाद बहुमत साबित करने में तो सफल रहे, लेकिन अब वह मंत्रिमंडल विस्तार से कन्नी काटते नजर क्यों आ रहे हैं.
किस ख्वाहीश के लिए मारी गयी थी पांचवी पलटी
दरअसल खबर यह है कि जिस सियासी मकसद के लिए सीएम नीतीश ने इस पांचवीं पलटी को अंजाम दिया था, भाजपा अब उससे कन्नी काटती दिख रही है, और वह मकसद है बिहार विधान सभा को भंग करने की सीएम नीतीश की चाहत का, दावा किया जाता है कि पीएम मोदी ने इंडिया गठबंधन की रफ्तार को पलीता लगाने के लिए नीतीश कुमार की इस शर्त को स्वीकार तो जरुर कर लिया था, और इस बात का आश्वासन भी दिया था कि राज्य सभा का चुनाव संपन्न होते ही विधान सभा भंग करने की मांग को पूरा कर दिया जायेगा, लेकिन अब बिहार भाजपा नीतीश कुमार की इस चाहत के साथ खड़ा होने को तैयार नहीं है, डर इस बात की है जैसे ही विधान सभा को भंग करने की मांग स्वीकार की जायेगी, बिहार भाजपा एक टूट की ओर बढ़ता नजर आयेगा, उसके कम से कम 15 विधायक राजद का दामन थामने का एलान कर सकते हैं. ठीक यही हालत जदयू की भी है, वहां से विधान सभा भंग करने की हालत में बगावत की खबर है.
तेजस्वी की रैली में उमड़ती भीड़ से छुट्ट रहे सुशासन बाबू के पसीने
इधर भतीजा तेजस्वी बेहद ही सियासी परिपक्वता का परिचय देते हुए अपनी रैलियों में इस बात को उछाल रहा है कि बिहार में सिर्फ लोकसभा का ही चुनाव ही नहीं होना है, बल्कि विधान सभा की डुगडुगी भी बजने वाली है, यहां याद रहे कि इस वक्त तेजस्वी अपनी जन विश्वास यात्रा के साथ बिहार के दौरे हैं और उनकी रैलियों में जनसैलाब उमड़ रहा है, इस जनसैलाब को देख कर सीएम नीतीश के होश भी खास्ता है. उधर भाजपा नेताओं को भी यह बात समझ में आने लगी है कि तेजस्वी की इस आंधी का मुकाबला करना इतना आसान नहीं है, जिस नीतीश को तोड़ कर तेजस्वी को कमजोर करने का सपना संजोया गया था, अब उसी कमजोरी को तेजस्वी अपनी सबसे बड़ी सियासी ताकत बना चुके हैं, शहर दर शहर दौड़ता उनका काफिला, और उसमें लोगों की उमड़ती भीड़ इस बात की तस्दीक करती नजर आ रही है कि बिहार की आम अवाम ने तेजस्वी के रुप में अपना नया कर्णधार खोज लिया है. अब वह उम्र के आखरी पड़ाव पर खड़े नीतीश कुमार को सियासी आराम देना चाहता है. और यही वह डर है, जिसके कारण भाजपा से लेकर जदयू के विधायक भी विधान सभा चुनाव में जाने की हिम्मत नहीं दिखला पा रहे हैं.
पाला बदल के पहले नीतीश तेजस्वी के बीच हुई थी गुप्त मुलाकात
दावा किया जाता है कि इस बार महागठबंधन छोड़ने के पीछे सिर्फ एक वजह नीतीश का विधान सभा को भंग करने की जिद्द थी. नहीं तो सरकार चलाने में उन्हे किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा था, खबर यह भी है कि पाला बदलने के ठीक पांच दिन पहले लालू यादव और तेजस्वी के साथ सीएम नीतीश की एक गुप्त मुलाकात भी हुई थी, उस मुलाकात में भी नीतीश ने विधान सभा भंग करने की अपनी ख्वाहीश को जाहिर किया था, लेकिन तब तेजस्वी और लालू ने इस फैसले के साथ जाने से इंकार कर दिया था, और ठीक इसके बाद नीतीश ने भाजपा के साथ संपर्क साधा, सीधे-सीधे पीएम मोदी को संवाद भेजा गया, यहां तक इस ऑपेरशन बिहार की भनक भाजपा के कथित चाणक्य अमित शाह को भी नहीं थी. बाद में उनके हिस्से सिर्फ इस फैसले को अमलीजामा पहनाने की जिम्मेवारी सौंपी गयी. जिसे अमित शाह ने काफी मशक्कत के साथ पूरा भी किया, यदि अमित शाह पीछे हो जाते तो नीतीश कुमार की यह सरकरा तो विधान सभा में ही दम तोड़ जाती. दावा तो यह किया जाता है कि जिस दिन बहुमत साबित किया जाना था, उस पूरी रात अमित शाह सोये नहीं थें, उनकी नजर हर उस विधायक पर लगी हुई थी, जो सीएम नीतीश की इस नौवीं ताजपोशी के खिलाफ थें. हालत इतनी बूरी थी कि अमित शाह को जदयू भाजपा के विधायकों की ही निगाहबानी करनी पड़ रही थी, जदयू विधायकों पर तो मामला भी दर्ज करवाना पड़ा, इसके बावजूद भाजपा के पांच विधायक अध्यक्ष के फैसले के समय गायब रहें.
अपने विधायकों की नाराजगी की कीमत पर भाजपा विधान सभा को भंग करने का फैसला लेना नहीं चाहती
यही वह मुसीबत है कि भाजपा अपने विधायकों की नाराजगी की कीमत पर विधान सभा को भंग करने का जोखिम नहीं लेना चाहती, क्योंकि उसके पास आज भी राजद के बाद सबसे बड़ी संख्या है, जबकि नीतीश किसी भी कीमत पर अपनी पुरानी हैसियत को पाने को बेकरार है, कभी बिहार की नम्बर वन पार्टी से तीसरी पार्टी के रुप में विधान सभा में खड़ा होना उन्हे कचोटता रहता है, उनके सियासी ताकत को याद दिलाता रहता है, उधर खबर यह है भी कि तेजस्वी अपने विधायको को लोकसभा चुनाव लड़ाने के बजाय भाजपा के विधायकों को अपने पाले में लाकर लोकसभा का लड़वाने की तैयारी कर रहे हैं. और यदि यह हथियार काम करता है तो विधान सभा के अंदर एकबारगी भाजपा जदयू की संयुक्त ताकत भी राजद का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं होगी, और तो और खुद जदयू के कई विधायक भी लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में है, भले ही चुनाव चिह्न राजद का ही क्यों नहीं हो.
नीतीश तुमसे बैर नहीं, भाजपा तेरी खैर नहीं
इस हालत में जैसे ही नीतीश कुमार अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हैं, मांझी से लेकर खुद उनकी ही पार्टी से उनको झटका मिल सकता है, मांझी पहले ही दो दो मंत्री की डिमांड कर चुके हैं. इस सियासी हलचल के बीच खबर यह है कि नीतीश कुमार एक बार फिर से चिंतन की मुद्रा में चले गये हैं. जदयू के नेताओं के बीच इस बात की चर्चा तेज है कि जिस सियासी मकसद के लिए भाजपा का साथ लिया गया था, यदि विधान सभा भंग करने का वह मकसद नहीं पूरा होता है, तो भाजपा के साथ इस सियासी गलबहिंया का मतलब क्या है? इसके अच्छा तो राजद का साथ है, जहां कम से कम सरकार चलाने में कोई परेशानी तो नहीं थी, इधर भतीजा तेजस्वी बड़ी होशियारी के साथ "नीतीश तुमसे बैर नहीं, भाजपा तेरी खैर नहीं "का जयकारा लगा रहा है. इस हालत में यदि किसी दिन यह खबर सुनने को मिले की सीएम नीतीश ने अपने मंत्रिमंडल से भाजपा के तीन मंत्रियों की छुट्टी कर तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री का ताज एक बार फिर पहना दिया है, तो हैरत नहीं होनी चाहिए, हालांकि इस बार फैसला नीतीश को नहीं तेजस्वी को लेना होगा, क्योंकि नीतीश से मुक्ति के बाद तेजस्वी के सियासी औरा में जो विस्तार होता दिख रहा है, नीतीश को साथ लगाने पर उसका विस्तार सिमट भी सकता है, और इसका खामियाजा राजद को उठाना पड़ सकता है, यह वही खामियाजा हो जो आज के दिन भाजपा उठाने को अभिशप्त है.
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