Ranchi- दो फरवरी को झारखंड के 12 वें मुख्यमंत्री के रुप में अपनी ताजपोशी और 16 फरवरी को मंत्रिमंडल विस्तार के बाद भी सीएम चंपाई सोरेन की सियासी मुसीबत कम होती नजर नहीं आ रही. एक तरफ उनकी ही पार्टी में असंतोष के स्वर फूट रहे हैं, मंत्रीपद की सूची से अंतिम वक्त पर अपनी विदाई से आहत बैधनाथ राम इस आदिवासी बहुल राज्य में दलितों की अस्मिता और उसकी हिस्सेदारी-भागीदारी का एक नया विमर्श खड़ा कर रहे हैं, तो दूसरी ओर दिशोम गुरु के संघर्ष का हिस्सा रहे बोरियो विधायक लोबिन हेम्ब्रम संकट की इस खड़ी में झामुमो को बॉय-बॉय कर एक नया सियासी दल खड़ा करने की हुंकार भर रहे हैं. जबकि दूसरी ओर कांग्रेस के अंदर की आग भी अभी बूझती नजर नहीं आती, करीबन 11 की संख्या में नाराज विधायक रांची से दिल्ली तक हिचकोले खा रहे हैं, जिन विधायकों के उपर अपने-अपने इलाके की जन समस्यायें और अपने आवाम का दुख-दर्द विधान सभा में उठाने की जिम्मेवारी थी, आज वे आवाम के दर्द का इलाज खोजने के बजाय अपने अपने दर्द के उपचार खोजते हुए दिल्ली में कैम्प कर रहे हैं. कभी कांग्रेस कोटे से बनाये गये मंत्रियों से अपनी अनदेखी करने की शिकायत की जाती है, इस बात का दावा किया जाता है कि पार्टी कोटे से बनाये गये मंत्री उनका फोन नहीं उठाते हैं. कांग्रेस कोटे से बनाये गये मंत्रियों की हालत यह है कि वे कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के बजाय झामुमो कार्यकर्ताओं के हुक्म-फरमान को विशेष तवज्जो देते नजर आते हैं.
चार कुर्सी-12 दीवाने, कैसे पूरी होगी मंशा?
हालांकि दबे स्वर ही चर्चा इस बात की भी है कि मंत्रियों के द्वारा अनदेखी का आरोप तो महज बहाना है, दरअसल हर विधायक की महत्वाकांक्षा मंत्री बनने की है, लेकिन नाराज विधायकों की मुश्किल यह है कि इसमें कोई भी किसी और के लिए राह छोड़ने को तैयार नहीं है. दावा तो यह भी किया जाता है कि एक बार आलाकमान ने इनकी जिद के झुकते हुए पुराने मंत्रियों को रुखस्त करना भी स्वीकार कर लिया था, लेकिन उनकी विदाई के बाद वह चार चेहरे कौन होंगे? जिनको मंत्रीपद से नवाजा जायेगा, इसका फैसला इन्ही नाराज विधायकों के कंधों पर डाल दिया, लेकिन काफी मशक्कत के बाद भी ये 11 विधायक अपने बीच से 4 चेहरे को सामने नहीं ला सके और इस प्रकार इन सब की सियासी महत्वाकांक्षा पर एक साथ विराम लग गया और अब खबर यह है कि कांग्रेस महासचिव वेणुगोपाल ने इन नाराज विधायकों को उनकी सारी शिकायतों को दूर करने का आश्वासन थमा दिया है, और अब उसी आश्वासन की पोटली थाम ये सारे विधायक एक बार फिर से रांची लौट रहे हैं. खबर है कि आज शाम ये सारे विधायक रांची लैंड कर सकते हैं.
क्या खत्म हो गई है कि मंत्री पद की चाहत?
खबर यह भी है कि विधान सभा सत्र से पहले 22 फरवरी को सत्तारुढ़ गठबंधन की बैठक में इन विधायकों के साथ ही वेणुगोपाल भी हिस्सा लें, इसके साथ ही सरकार और संगठन में समन्वय को और भी कैसे धारदार बनाया जाय, इसकी भी समीझा करेंगे. लेकिन मुख्य सवाल यह है कि इन नाराज विधायकों को कांग्रेस महासचिव वेणुगोपाल ने जिस अनुशासन और जनसरोकारता की घुट्टी पिलायी है, उसका असर इन विधायकों पर कितने समय के लिए होगा? या फिर यह सारा “उपदेश” राजधानी रांची लैंड करते ही हवा हवाई साबित होगा और बजट सत्र के दौरान एक और सियासी भूचाल की झलक देखने को मिलेगी. क्योंकि वेणुगोपाल अनुशासन और जनसरोकारता की चाहे जितनी भी घुट्टी पिला दें, सरकार और संगठन के बीच का समन्वय चाहे जितना भी मधुर और पारदर्शी करने की कोशिश कर लें.
यह उनकी बीमारी का इलाज नहीं, शिकायतों पर मरहम है
नाराज विधायकों की बीमारी का इलाज यहां से निकलने वाला नहीं है, क्योंकि यह उनकी बीमारी की दवा ही नहीं है, यह तो उनकी औपचारिक शिकायतों पर लगाया गया मरहम है. इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि आखिर बजट सत्र में क्या होने वाला है? तो इस सवाल का जवाब तलाश करने के पहले हमें यह भी याद रखना चाहिए कि पूर्व सीएम हेमंत के द्वारा बजट सत्र के दौरान विधान सभा की कार्यवाई में भाग लेने की अनुमति की मांग की गयी है, बहुत संभव है कि उन्हे पीएमएलआई कोर्ट से इसकी अनुमति भी प्रदान कर दी जाय, क्योंकि हेमंत सोरेन कोई मुजिरम तो हैं नहीं, तत्काल वह महज एक आरोपी है, इस हालत में उनका बजट सत्र के दौरान विधान सभा में उपस्थित रहना तय माना जा रहा है और यह भी एक सच्चाई है कि इसमें अधिकांश विधायकों को यह पत्ता है कि सियासी महत्वाकांक्षा रखना तो ठीक है, लेकिन यदि झारखंड की सियासत में उन्हे लम्बी पारी खेलनी है, उन्हे अपने भविष्य की सियासत के लिए हेमंत का नाम और साथ चाहिए, जो उन्हे वोट मिलता है, जिन मतदाताओं का वह वोट प्राप्त करते हैं, उसका एक बड़ा हिस्सा हेमंत के नाम पर उन्हे अपना वोट करता है, नहीं तो आज झारखंड में कांग्रेस की वह हैसियत नहीं है कि अपने बूते इतनी बड़ी संख्या में अपने विधायकों को सदन तक पहुंचा सके और यहीं से चंपाई सोरेन आश्वस्त होते नजर आ सकते हैं. इस हालत में तत्काल विधान सभा के अंदर कोई बड़ा खेल होता तो नजर नहीं आता.
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