TNP DESK- दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष के रुप में नीतीश कुमार की तीसरी बार ताजपोशी के साथ ही इस बात के दावे भी किये गयें कि जातीय जनगणना और पिछडों के सामाजिक-राजनीतिक हिस्सेदारी के सवाल पर जल्द ही नीतीश कुमार देशव्यापी दौरे की शुरुआत करने वाले हैं. और इस दौरे की शुरुआत झारखंड से होगी, इधर नीतीश कुमार की इस इंट्री के पहले ही झारखंड की सियासत में बदलाव के संकेत मिलने की शुरुआत हो चुकी है.जिस जातीय जनगणना और पिछड़ों के सामाजिक-सियासी हिस्सेदारी हिस्सेदारी के सवाल को नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव का मुख्य एजेंडा बनाने का ख्वाहिश पाल रहे हैं. उनकी झारखंड इंट्री के पहले ही आजसू सुप्रीमो की भाषा बदलती नजर आ रही है. सुदेश महतो ने जातीय जनगणना के सवाल पर सीएम हेमंत को निशाने पर लेते हुए नीतीश कुमार के समर्थन में प्रशंसा के पूल बांध कर इस बात के संकेत दिया है कि 2024 के महासंग्राम के पहले झारखंड की सियासत एक नयी धूरी पर खड़ी हो सकती है. और इसके केन्द्र बिन्दू में होंगे सीएम नीतीश.
जातीय जनगणना के सवाल पर सीएम नीतीश के पक्ष में सुदेश महतो का स्तूति गान
दरअसल सुदेश महतो ने जातीय जनगणना के सवाल पर हेमंत सोरेन की नियत पर तंज कसते हुए कहा है कि हेमंत सोरेन पिछले चार वर्षों से सिर्फ जातीय जनगणना का गीत ही गा रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना को जमीन पर उतार कर पिछडों का सामाजिक सियासी हिस्सेदारी का रास्ता साफ कर दिया. आरक्षण में भी विस्तार कर दिया. और यहीं से झारखंड में बदलते सियासी सूर की तलाश करने की होड़ लग गयी. इस बदलते सूर के सियासी मायने निकाले जाने लगें, इस बयान को सीएम नीतीश के झारखंड दौर से जोड़ कर देखने-समझने की कोशिश की जाने लगी, और यह दावा जोर पकड़ने लगा कि 2024 के महासंग्राम का मंच अभी पूरी तरह से सजना बाकी है, अभी झारखंड की सियासत में कई उलटफेर होने की संभावना शेष हैं.
झारखंड की सियासत में सुदेश तो राष्ट्रीय राजनीति में नीतीश कुर्मी राजनीति का सबसे कद्दावर चेहरा
यहां ध्यान रहे कि इंडिया गठबंधन सीएम नीतीश के सपनों का महल है, हालांकि बैठक दर बैठक उनके संयोजक बनने की अटकलों पर विराम लगता रहा है. बावजूद इसके समर्थकों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है, दावा किया जाता है कि उनका संयोजक बनना तय है और इसके साथ ही इंडिया गठबंधन का पीएम फेस भी वही होंगे, इधर झारखंड में जदयू का पूरा फोकस कुर्मी महतो मतदाताओं को इंडिया गठबंधन के पाले में लाने की है, और सुदेश महतो निर्विवादित रुप से आज झारखंड की सियासत में कुर्मी जाति का सबसे बड़ा चेहरा है. लेकिन यदि राष्ट्रीय स्तर पर सियासी पहचान की बात करें तो सीएम नीतीश कुमार कुर्मी राजनीति का सबसे मजबूत चेहरा है.
क्या एक साथ खड़े होने की तैयारी में हैं दोनों चेहरे
तब क्या इस बयान के यह मायने निकाले जा सकते हैं कि ये दोनों चेहरे आने वाले दिनों में एक साथ खड़े हो सकते हैं, और यह सवाल तब कुछ ज्यादा ही प्रासंगिक हो जाता है, जब जदयू का पूरा फोकस कुर्मी मतदातों को एक साथ खड़ा कर झारखंड की सियासत में बड़ा उलटफेर करने पर है. हालांकि सुदेश महतो अभी वर्तमान में वह एनडीए का हिस्सा है, लेकिन सीएम नीतीश के लिए उनका यह आह्लादित बयान के कई मायने और संकेत हैं. और राजनीति में संभावनाओं के दरवाजे हर वक्त खुले रहते हैं, वैसे ही भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में आजसू के लिए दो सीट से ज्यादा देने को तैयार नहीं दिखती, दूसरी ओर जदयू अपने लिए झारखंड में हिस्सेदारी की मांग कर रही है. तो क्या जदयू अपने हिस्से की कुछ सीटों की बलि चढ़ाकर आजसू को भी इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनाने की तैयारी में है. और यदि ऐसा है कि तो यह झारखंड का सबसे बड़ा गेम प्लान हो सकता है, आजसू के हिस्से तीन सीट देकर झारखंड के 25 फीसदी आबादी कुर्मी मतदाताओं को नीतीश और सुदेश के चेहरे के साथ एक साथ खड़ा किया जा सकता है.
नीतीश के इस ट्रंप कार्ड का हवा निकाल चुकी है भाजपा
लेकिन इस राय से इतर एक सोच यह भी है कि पिछड़ों की जिस हिस्सेदारी भागीदारी के सवाल को नीतीश कुमार अपने देशव्यापी दौरे से राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में खड़ा करना चाहते हैं, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में अपने प्रयोगों से भाजपा ने पहले ही उसकी हवा निकाल दी है, छत्तीसगढ़ में आदिवासी चेहरा तो मध्यप्रदेश में पिछड़ा कार्ड खेल भाजपा ने पूरी बाजी बदल दी है, भले ही इस फसल को बोया नीतीश ने हो, लेकिन उसकी फसल को भाजपा काट रही है. लेकिन यही तो दावा नीतीश और पिछड़ों की राजनीति करने वाले तमाम झंडाबरदारों का है, उनका दावा है कि यदि पिछड़े अपने हिस्सेदारी भागीदारी के संघर्ष करने की स्थिति में नहीं होंगे, इस सवाल को लेकर आगे नहीं आयेंगे, भाजपा और दूसरी सियासी पार्टी उनकी हिस्सेदारी देने वाली नहीं है, अभी तो सीएम नीतीश ने सिर्फ जातीय जनगणना की रिपोर्ट को पेश ही किया, और बिहार में पिछड़ों के आरक्षण में विस्तार का सामाजिक हिस्सेदारी का रास्ता ही साफ किया कि पूरे देश की सियासत में पिछड़ा राजनीति की चर्चा होने लगी, अब तक पिछड़े चेहरों से परहेज करती रही भाजपा को भी आखिरकार उस रास्ते की ओर चलने लिए मजबूर होना पड़ा, लेकिन भाजपा के ये तमाम पिछड़े चेहरे महज सांकेतिक हैं, ये चेहरे पिछड़ा होकर भी पिछडों की राजनीति नहीं करतें, पिछड़ों की हिस्सेदारी भागीदारी उनके सियासी विमर्श का हिस्सा नहीं होता, इन चेहरों को महज पिछड़ावाद की सियासत पर मट्ठा डालने के लिए एक कुचक्र के बतौर किया जा रहा है, और यदि ऐसा नहीं होता तो भाजपा पूरे देश में जातीय जनगणना के पक्ष में खड़ी होती, लेकिन वह तो जातीय जनगणना से साफ इंकार कर रही है, और यही से नीतीश कुमार की आगे रणनीति चालू होती है.
तब क्या पलटी मार जायेंगे सुदेश महतो
हालांकि राजनीति संभावनाओं का खेल हैं, अभी 2024 के महाजंग में करीबन चार महीने का समय बाकी है, लेकिन आजसू से जुड़े सूत्रों का दावा है कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी पिछड़े चेहरे को आगे कर भाजपा ने साफ कर दिया है कि वह भी इस बदलते वक्त के साथ करवट लेने को तैयार है, यदि हम भाजपा के साथ मिलकर विधान सभा का चुनाव में अपना परचम लहराते हैं, और ठीक ठाक सीटों पर कामयाब होकर आते हैं, तो इस बदलाव से झारखंड में भी इंकार नहीं किया जा सकता, वैसे हकीकत यह है कि आजसू झारखंड की सियासत में भाजपा के मुकाबले कहीं खड़ी नजर नहीं आती, और इस बात की संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आती कि वह सीटों के मामले में भाजपा से आगे निकल जाये, यदि 2025 के विधान सभा चुनाव में जीत की ओर आगे बढ़ती भी है तो निश्चित रुप से उसके सीटों संख्या आजसू के मुकाबले कहीं बड़ी होगी. इस प्रकार एनडीए खेमा में सुदेश महतो को सीएम बनने का सपना तो दूर दूर तक पूरा होता नजर नहीं आता, और दस वर्षों के शासन काल में भाजपा ने उन्हे केन्द्र में मौका नहीं दिया. इस हालत में आजसू का 2024 के पहले पलटी मारना कोई सियासी भूचाल नहीं होगा.
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