Ranchi- आज राजधानी रांची का सियासी पारा हाई रहने वाला है. दोपहर एक बजे से सीएम आवास पर हेमंत सोरेन से पूछताछ से पूछताछ की शुरुआत होनी है, और इसके पहले ही सीएम आवास में विधायकों और महागठबंधन के नेताओं का पहुंचने की शुरुआत हो चुकी है, उनकी हर कोशिश और रणनीति इस संकट के समय में सीएम हेमंत के पक्ष में अपनी एकजुटता दिखलाने और किसी भी सियासी संकट की खड़ी में मजबूती के साथ खड़ा रहने की संकेत देने की है. उधर जैसे ही उनके समर्थकों को इस बात की भनक लगी है कि एक बार फिर से ईडी सीएम हेमंत से पूछताछ करने जा रही है, समर्थकों का हुजूम एक बार फिर से राजधानी की ओर बढ़ता नजर आ रहा है, हालांकि ईडी को इसके कारण किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़े, इसके मद्देनजर प्रशासन के द्वारा शहर के कई इलाकों में धारा 144 की घोषणा कर किसी भी तरह के धरना प्रर्दशन पर रोक लगा दी गयी है.
किसी वैकल्पिक चेहरे की तलाश में महागठबंधन
इधर इस बात की भी सूचना है कि सत्ता पक्ष के विधायक ना सिर्फ सीएम आवास में अपनी मौजदूगी को दर्ज करा रहे हैं, बल्कि इसके साथ ही कई विकल्पों पर विचार किया जा रहा है, उनके अंदर वर्तमान सियासी हालत को देखते हुए सीएम हेमंत की गिरफ्तारी की आशंका भी बनी हुई है, और यही कारण है कि महागठबंधन के पास आज के दिन एक साथ की प्लान है. जिसे वह वक्त और हालात को देखते हुए आजमा सकता है.
महागठबंधन की पहली पसंद कल्पना सोरेन
दरअसल खबर यह है कि महागठबंधन ने सीएम हेमंत की गिरफ्तारी की हालत में एक वैकल्पिक चेहरे को सामने लाने का फैसला किया है, ताकि एक तरफ सियासी लड़ाई भी चलता रहे तो दूसरी ओर सामान्य प्रशासनिक दायित्व का भी सुचारु रुप निर्वाह हो. राज्य में किसी भी प्रकार का कोई संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा नहीं हो. इसी संकट का समाधान उन्हे सीएम हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन के चेहरे में नजर आता है. दावा किया जाता है कि कल महागठबंधन की बैठक में कल्पना सोरेन के नाम पर गहन मंथन भी किया गया था, और जब उनके नाम पर यह मंत्रणा जारी था, तो खुद कल्पना सोरेन भी वहां उपस्थित थी, लेकिन जब दोपहर बाद महागठंबधन की औपचारिक बैठक की शुरुआत हुई तो कल्पना सोरेन उस बैठक से गायब थी.
बैठक से कल्पना सोरेन की अनुपस्थिति से उभरे सवाल
इस हालत में यह सवाल खड़ा होने लगा कि क्या कल्पना सोरेन के नाम पर कहीं से किसी विरोध के स्वर भी उठ रहे हैं, इस बीच खबर आयी कि कल्पना के नाम पर सीएम हेमंत की भाभी और स्व. दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन को आपत्ति है, उनका तर्क है कि परिवार में हर बार कुर्बानी उनकी ओर से ही क्यों दिया जाय, उनकी भी बेटियां इस कुर्सी पर बैठने का अधिकार रखती है, दूसरा नाम बंसत सोरेन का है, उनकी ओर से भी अपनी दावेदारी तेज करने की खबर सामने आ रही है.
क्या है आंकड़ा
दरअसल अभी महागठबंधन के पास कुल 47 विधायक हैं, झामुमो-29, कांग्रेस-16, राजद-01,माले-01,कुल- 47, यह आंकड़ा बहुमत के लिए जरुरी 42 विधायकों से पांच ज्यादा है, साफ है कि यदि पार्टी में सर्वसम्मति बन जाती है तो कल्पना सोरेन की राह मुश्किल नजर नहीं आती. लेकिन मुख्य सवाल यह है कि यदि कल्पना सोरेन के नाम पर सर्वसम्मत राय नहीं बनती है, तो उस हालत में क्या संभावना बन सकती है. हालांकि सत्ता पक्ष से खबर यह है कि कल्पना सोरेन के नाम पर कहीं से कोई विरोध नहीं है, और पूरी पार्टी उनके नाम पर एकजुट है, लेकिन अंदरखाने चर्चा यह भी है कि हेमंत सोरेन की भाभी और स्व. दुर्गा सोरेन की पत्नी सीता सोरेन कल्पना के नाम पर सहमत नहीं है, उनका दावा है कि हर बार कुर्बानी हमारी तरफ से ही क्यों दिया जाय?
सीता सोरेन के पक्ष में चार से पांच विधायकों के समर्थन का दावा
दूसरी चर्चा इस बात की भी है कि सीता सोरेन के पास चार पांच विधायकों का समर्थन भी है, इसमें लोबिन हेम्ब्रम, रामदास सोरेन, चमरा लिंडा, और दो विधायक हैं. लेकिन सीता सोरेन की मुश्किल यह है कि उनका गठबंधन के दूसरे दलों में कोई पकड़ नहीं है, दूसरा नाम सीएम हेमंत के छोटे भाई बसंत सोरेन का है. जो फिलहाल दुमका से विधायक है. और अपनी भाभी सीता सोरेन की तुलना में इनके अंदर राजनीतिक महत्वकांक्षा भी कुछ अधिक ही हिलोरों मारता रहता है, दावा तो यह भी किया जाता है कि बसंत सोरेन का भाजपा के साथ बहुत हद तक मधुर संबंध भी रहता है, इस हालत में बसंत सोरेन की एक यह राजनीतिक महत्वाकांक्षा कल्पना की डगर को मुश्किल बना सकती है. इस हालत में बड़ा सवाल यह होता है कि आखिरी वक्त में गुरु जी का आशीर्वाद किसको मिलता है, क्योंकि जिसके सिर पर भी गुरुजी का आशीर्वाद का हाथ उठा, पूरा झामुमो उसके साथ खड़ा नजर आ सकता है, लेकिन इस हालत में गुरुजी को कांग्रेस की भावनाओं का भी ख्याल रखना होगा, क्योंकि झामुमो के साथ ही कांग्रेस में भी हेमंत सोरेन को चाहने वालों की एक मजबूत जमात है, जो हर कीमत पर हेमंत के साथ बना रहना चाहता है. गुरु जी को इनकी भावनाओं को भी सम्मान देना होगा. और अपने फैसले से पहले उन्हे कांग्रेस को विश्वास में लेना होगा.
कल्पना के सिवा और कोई विकल्प नहीं
और यही आकर पूरा खेल कल्पना सोरेन के पक्ष में बनता नजर आने लगता है, क्योंकि सीता सोरेन के प्रति सहानुभूति रखने वाले विधायकों की संख्या चाहे जितनी हो, लेकिन सीता सोरेन से लेकर बसंत सोरेन तक में वह कुब्बत नजर नहीं आती कि वह अपने बुते इन विधायकों को चुनाव दंगल में सियासी फतह दिलवा सकें. और राजनीति की असली अग्नि परीक्षा इसी अखाड़े में होती है,आज हर विधायक को यह पता है कि यदि उसे विधान सभा की दहलीज तक दूबारा पहुंचना है, तो उसके सिर पर सीएम हेमंत का हाथ रहना एक अनिवार्य शर्त है, फिर भला वह सीता सोरेन और बसंत सोरेन के पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद कर अपने सियासी भविष्य को दांव पर लगाने का जोखिम क्यों लेंगे.