Ranchi-हजारीबाग सांसद जयंत सिन्हा की टिकट क्या कटी, अचानक से वह अपने सियासी विरोधियों के निशाने पर आ गये. एक तरफ अम्बा प्रसाद जयंत के पिता यशवंत सिन्हा के साथ मुलाकात कर सियासी गलियारे में कयासबाजियों का बाजार गर्म कर रही है, वहीं दूसरी ओर अम्बा के पिता और पूर्व कृषि मंत्री योगेन्द्र साव इस बात की हुंकार लगा रहे हैं कि दो दशकों से सिन्हा परिवारा का सियासी बाजार दलित-आदिवासी और पिछड़ी जातियों के मतदाताओं के बल पर सजता रहा था. सियासी-सामाजिक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के बजाय ये जातियां थोक भाव में अपना वोट भाजपा को वोट देती रही, और पिछड़ी जातियों की इसी सियासी नादानी में सिन्हा परिवार की दुकानदारी चलती रही. दो दशकों की सियासत में किसी भी सामाजिक समूह के बीच इस परिवार की कोई पकड़ नहीं बनी. नहीं तो इतनी बेआबरु होने के बाद आज सिन्हा परिवार निर्दलीय मैदान में ताल ठोक रहा होता.
2009 से बड़कागांव पर कायम है योगेन्द्र साव की बादशाहत
यहां ध्यान रहे कि योगेन्द्र साव ने वर्ष 2009 में बड़कागांव विधान सभा से भाजपा के लोकनाथ महतो को मात देकर अपने सियासी सफर की शुरुआत की थी. जिसके बाद योगेन्द्र साव ने कभी भी इस सीट को अपने हाथ से फिसलने नहीं दिया. योगेन्द्र साव के बाद उनकी पत्नी निर्मला देवी और अब उनकी बेटी अम्बा प्रसाद बड़कागांव में साव परिवार का झंडा बुलंद किये हुए है. दावा किया जाता है कि बड़कागांव में योगेन्द्र साव की इस बादशाहत को चुनौती पेश करने का दम खम आज किसी भी सियासी दल में नहीं है. यहां पार्टी से अधिक योगेन्द्र साव के नाम का सिक्का चलता है. पूरे विधान सभा पर योगेन्द्र साव का एकछत्र राज्य है. और इसका कारण बड़कागांव का सामाजिक समीकरण है. बड़कागांव में पिछड़ी जातियों की बहुलता है, और करीबन सभी दलित पिछड़ी जातियों के बीच योगेन्द्र साव की मजबूत पकड़ है, इसके साथ ही जिस तेली जाति से योगेन्द्र साव आते हैं, उसकी भी एक बड़ी आबादी यहां निवास करती है.
अम्बा प्रसाद का हजारीबाग से चुनाव लड़ने की चर्चा तेज है
यहां बता दें कि बड़कागांव विधान सभा भी हजारीबाग संसदीय सीट का हिस्सा है. सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि इस बार कांग्रेस योगेन्द्र साव की बेटी और वर्तमान विधायक अम्बा प्रसाद को मनीष जायसवाल के विरुद्ध मैदान में उतारने की तैयारी में है. चूंकि मनीष जायसवाल को जयंत सिन्हा को बेटिकट कर मैदान में उतारा गया है, इस जख्म पर मरहम लगाने के लिए अम्बा प्रसाद यशवंत सिन्हा से मुलाकात करने पहुंची थी. और उसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर अपलोड़ भी किया. जिसके बाद माना जा रहा था कि अम्बा की कोशिश जंग की औपचारिक शुरुआत के पहले हजारीबाग की सियासत के इस दिग्गज से आशीर्वाद लेने की थी. लेकिन अम्बा की मुलाकात की चर्चा अभी खत्म भी नहीं हुई थी कि योगेन्द्र साव सिन्हा परिवार को निशाने पर लेकर एक नया सवाल खड़ा कर दिया, योगेन्द्र् साव के इस हमले के बाद यह सवाल ख़ड़ा होने लगा कि क्या अम्बा य़शवंत मुलाकात में बात नहीं बनी? और यदि नहीं बनी तो इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर अपलोड क्यों किया गया?
क्या है इस हमले की रणनीति
वैसे कुछ सियासी जानकारी इसे योगेन्द्र साव का सधा अंदाज बता रहे हैं, उनका दावा है कि योगेन्द्र साव की कोशिश सिन्हा परिवार को मैदान में उतारने की है, ताकि भाजपा के वैसे समर्थक, जिन्हे जयंत सिन्हा की विदाई से आघात लगा हो, उनके पास भाजपा के पास वापस जाने के सिवा भी एक विकल्प मौजूद हो, नहीं तो कुछ दिनों के उदासी के बाद यही समर्थक एक बार फिर से भाजपा का झंडा उठाने को मजबूर हो सकते हैं. इसी रणनीति को साधने की कोशिश में योगेन्द्र साव सिन्हा परिवार को मैदान में बनाये रखना चाहते हैं. हालांकि देखना होगा कि यह योगेन्द्र साव की यह रणनीति कितनी कामयाब होती है, क्योंकि धनबाद के साथ ही हजारीबाग की गिनती भी भाजपा के मजबूत किले में होती है, जहां चेहरे का कोई महत्व नहीं होता. हालांकि अम्बा के मैदान में उतरने के बाद भाजपा का यह किला कितना सुरक्षित रहेगा, यह भी एक बड़ा सवाल है. क्योंकि एक तो अम्बा प्रसाद पिछड़ी जाति से आती है, दूसरी बात उनका महिला होना भी है. निश्चित रुप से महिला मतदाताओं के साथ ही युवा मतदाताओं के बीच भी अम्बा का जादू काम आ सकता है. और सबसे बड़ी बात बड़कागांव भी हजारीबाग लोकसभा का हिस्सा है, जहां पिछले दो दशक से योगेन्द्र साव की बादशाहत है. कुल मिलाकर योगेन्द्र साव की कोशिश अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़ी जातियों के गठजोड़ के सहारे इस संघर्ष को रोचक बनाने की है, जबकि युवा और महिला मतदाताओं के बीच अम्बा प्रसाद का चेहरा काम आ सकता है.
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