Ranchi-झारखंड की 14 में 11 सीटों पर अपने प्रत्याशियों का एलान कर जहां भाजपा ने महागठबंधन पर एक बढ़त लेने की कोशिश की है, वहीं धनबाद, गिरिडीह और चतरा को होल्ड पर रख कर महागठबंधन की नींद भी उड़ा दी है. और जब तक भाजपा अपने सभी पत्ते खोल नहीं लेती, उसके सामने अपने नाराज विधायकों तो बांधे रखने की चुनौती गहराती जा रही है. खासकर कांग्रेस के लिए यह चुनौती कुछ ज्यादा ही है. चंपाई सोरेन की ताजपोशी के बाद जिस तरीके से कांग्रेसी विधायकों में मंत्री पद की चाहत तेज हुई. नाराज विधायकों ने दिल्ली का दौरा कर आलाकमान को खरी-खोटी सुनाई. किसी भी हालत में बजट सत्र में भाग लेने से इंकार किया, उसके बाद कांग्रेस आलकमान की सांसे फूलती नजर आयी. उसके बावजूद भी यह मान लेना कि झारखंड कांग्रेस के अंदर सब कुछ सामान्य है, सियासी नादानी के सिवा कुछ नहीं होगा. इस बीच खबर है कि धनबाद के अपने सबसे सुरक्षित किले में भाजपा बड़े खेल की तैयारी में हैं और खेल नाराज विधायकों की टोली से सबसे मुखर और धनबाद की सियासत का एक चमकदार चेहरे को कमल चुनाव चिह्न पर सियासी अखाड़े में उतारने की है.
पीएन सिंह को मार्ग दर्शक मंडल में भेजने की तैयारी
दरअसल सूत्रों का दावा है कि भाजपा इस बार धनबाद संसदीय सीट से लगातार तीन बार परचम फहराते रहे पीएन सिंह को मार्ग दर्शक मंडल में भेजने का मन बना चुकी है. और इसी आस में धनबाद विधायक राज सिन्हा अपनी किस्मत खुलने की पारी इंतजार कर रहे हैं. हजारीबाग से जयंत सिन्हा की छुट्टी होने के बाद उनका हौसला और भी बुंलद नजर आने लगा है, राज सिन्हा का मानना है कि जयंत सिन्हा का पत्ता साफ होने के बाद भाजपा में कायस्थों का कोटा खाली है. और यही कारण है कि उनका चांस अभी भी बरकरार है, जबकि दूसरी ओर धनबाद के पूर्व मेयर चन्द्रशेखर अग्रवाल को वैश्य जाति की सियासी भागीदारी में अपना सियासी भविष्य नजर आ रहा है. हालांकि भाजपा युवा मोर्चा के जुड़े अमरेश सिंह भी अपने को रेस से बाहर मानने से इंकार कर रहे हैं. लेकिन दावा है कि इन तमाम दावों से अलग भाजपा की कोशिश धनबाद के सामाजिक समीकरण के हिसाब से सियासी बिसात बिठाने की है और यही कारण है कि पिछड़ी जाति से आने वाले और धनबाद लोकसभा सीट के लिए ताल ठोक रहे बाधमारा से भाजपा विधायक ढुल्लू महतो की दावेदारी भी फंसती नजर आ रही है.
धनबाद के अखाड़े से राजपूत जाति को ही मैदान में उतारना चाहती है भाजपा
वैसे भी ये सारे नाम पहली सूची के जारी करते समय भी दिल्ली दरबार की नजर में था. लेकिन दिल्ली दरबार में इनमें से किसी भी नाम पर मुहर लगाने से इंकार कर यह साफ कर दिया कि दिल्ली में खेल दूसरा चल रहा है. दिल्ली दरबार की नजर किसी और चेहरे पर भी बनी हुई है, लेकिन उसके लिए जरुरी है कि चतरा का कांटा पहले निकल जाये. यानि चतरा और धनबाद के लिए प्रत्याशी की घोषणा एक साथ की जायेगी, खबर है कि दिल्ली दरबार इस बार झारखंड से किसी एक राजपूत जाति को ही संसद भेजना चाहती है, इस हालत में जब तक चतरा की तस्वीर साफ नहीं हो जाय, धनबाद की कांटा फंसा ही रहेगा. लेकिन इससे भी चौंकाने वाली खबर यह है कि इस बार भाजपा की कोशिश महागठंबधन के किसी मजबूत चेहरे को ही चतरा और धनबाद के सियासी अखाड़े से उतारने की है. जहां धनबाद में उसकी नजर राजद विधायक पर टिकी हुई है, वहीं धनबाद के लिए वह कांग्रेस विधायक के सम्पर्क में है, धनबाद में उसकी नजर कांग्रेस के नाराज विधायकों में एक अगड़ी जाति से आने वाले विधायक पर है. यानि पीएन सिंह के बदले में राजपूत जाति से ही किसी मजबूत चेहरा को सामने लाया जाय. ताकि सुनील सिंह की छुट्टी के बाद किसी राजपूत जाति के चेहरे को धनबाद में उतार कर राजपूत जाति का प्रतिनिधित्व को सुरक्षित किया जाय. और यहीं आकर कांग्रेस की नजर कांग्रेस के उस नाराज विधायक पर बनी हुई है.
पीएम मोदी की धनबाद रैली में दर्शक दीर्घा में खड़ी देखी है गयी हैं वह विधायक
यहां ध्यान रहे कि कांग्रेस की यह नाराज विधायक पीएम मोदी की धनबाद रैली में दर्शक दीर्धा में मौजूद देखी गयी है, इसके साथ ही उनके हालिया बयान से भी कांग्रेस आलाकमान के प्रति बगावत की बू आ रही है, उनका दावा है कि यदि पार्टी को अपना भविष्य सोचने का हक है को यह अधिकार कार्यकर्ताओं के पास भी है, कार्यकर्ता को भी इस बात की छुट्ट है कि वह अपने सियासी भविष्य के हिसाब से अपनी रणनीति और पार्टी का चयन करें, किसी पार्टी में उसका भविष्य उज्जवल होगा, यह तय करने का अधिकार एक सामान्य कार्यकर्ता को भी है, साफ है कि इस विधायक जी किसी भी हालत में संसद पहुंचना चाहते हैं, यदि कांग्रेस टिकट से इंकार करती है, तो उनके लिए भाजपा का दरवाजा भी खुला है, वैसे भी अगड़ी जातियों को स्पष्ट झुकाव भाजपा की ओर है, जिसकी बहुलता धनबाद में है, उस हालत में सियासत की यह नयी पारी विधायक जी के लिए ज्यादा मुफीद होगा. साफ है कि यदि कांग्रेस की रणनीति पहले भाजपा के सियासी पहलवान को अखाड़े में उतरने का इंतजार करने की है, ताकि उसके हिसाब से ही अपना सियासी घोड़ा सामने ला सके, तो उस हालत में इस विधायक का सब्र टूट सकता है, और विधायक साहिबा बगैर कांग्रेस के पत्ते का इंतजार किये ही कमल की सवारी कर सकती है, और यदि ऐसा होता है तो यह ढुल्लू महतो के लिए एक बड़ा झटका होगा, क्योंकि इसके बाद यह साफ हो जायेगा कि धनबाद के अखाड़े में भविष्य में भी भाजपा किसी दलित या पिछड़ा को चेहरा बनाने नहीं जा रही है, उस हालत में ढुल्लू महतो का भाजपा का झंडा ढोने का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा. क्योंकि विधायक को वह खुद अपने दम पर भी बन सकते हैं, उसके लिए उन्हे किसी भी पार्टी के बनैर की जरुरत नहीं है. इस हालत में यदि ढुल्लू महतो भी भाजपा के साथ कोई बड़ा खेल कर दें तो इसमें भी हैरानी नहीं होगी.
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