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हजारीबाग के किले से सिन्हा परिवार आउट! बाहरी-भीतरी की गूंज में मनीष जायसवाल खिलायेंगे कमल या अम्बा पर दांव लगा कांग्रेस करेगी रिंग में वापसी

हजारीबाग के किले से सिन्हा परिवार आउट! बाहरी-भीतरी की गूंज में मनीष जायसवाल खिलायेंगे कमल या अम्बा पर दांव लगा कांग्रेस करेगी रिंग में वापसी

Ranchi-हजारीबाग के अखाड़े में वर्ष 1998 से शुरु सिन्हा परिवार के सियासी सफर पर अब विराम लगता दिख रहा है. और इस विराम की शुरुआत भी उसी यशवंत सिन्हा की सियासी चाहत के साथ हुई, जिनके द्वारा वर्ष 1998 में इसकी शुरुआत की गयी थी. ध्यान रहे कि वर्ष बिहार में नब्बे का दौर अतिपिछड़ों के लिए एक टर्निग प्वाइंट था. यह वही दौर था जब नीतीश कुमार लालू यादव के सियासी वर्चस्व के काट में सियासत में अति पिछड़ी जातियों की हिस्सेदारी और भागीदारी को सियासी विमर्श का हिस्सा बना रहे थें. लेकिन नीतीश के इस अतिपिछड़ा कार्ड के बावजूद भी तात्कालीन भाजपा नेतृत्व में पिछड़ी जाति से आने वाले एकलौते सांसद एस.एल विश्वकर्मा को बेटिकट कर यशवंत सिन्हा पर दांव लगाया था. तब एस.एल विश्वकर्मा को बेटिकट करने पर सियासत भी खुब हुई थी, इसे अतिपिछड़ी राजनीति का पर कतरने की भाजपाई हथियार माना गया था. टिकट कटने से आहत खुद एस.एल विश्वकर्मा ने भी तब भाजपा पर अतिपिछ़ड़ा विरोधी होने का आरोप लगाया था. लेकिन अति पिछड़ी जातियों के बीच पसरती इस नाराजगी के बावजूद यशवंत सिन्हा की सियासी गाड़ी चल पड़ी. 1998 के बाद एक फिर से वह 1999 में भी वह कमल खिलाने में कामयाब रहें. हालांकि वर्ष 2004 में सीपीआई के भुवनेश्वर मेहता ने वापसी जरुर की, लेकिन 2009 के बाद इस संसदीय सीट पर कमल लगातार खिलता रहा. और इसके साथ ही सिन्हा परिवारी की सियासी गाड़ी भी चलती रहीPassenger . यशवंत सिन्हा के बाद वर्ष 2009 और 2014 में बेटे जयंत ने लगातार जीत का परचम फहरा कर हजारीबाग की सियासत में सिन्हा परिवार का सियासी वजूद कायम रखा.

मोदी की इंट्री के साथ ही आडवाणी कैम्प का बड़ा चेहरा यशवंत सिन्हा की सियासत पर ग्रहण

लेकिन इस सियासी सफर पर वर्ष 2014 के बाद से आशंकाओं के बादल मंडराने लगे. पीएम मोदी की सत्ता में वापसी के बाद यशवंत सिन्हा की सियासत को हाशिये पर घकेलने की सियासत भी रंग दिखाने लगा. लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के समान ही यशवंत सिन्हा को भी मार्ग दर्शक मंडल का हिस्सा बनाने की तैयारी शुरु हो गई. लेकिन यशवंत सिन्हा इस बदलती राजनीति के साथ कदमताल करने को तैयार नहीं थें, वह ना सिर्फ अपना वजूद को बचाने का उपक्रम करते दिख रहे थें, बल्कि लगातार मोदी सरकार को आईना दिखलाने की रणनीति पर भी काम कर रहे थें. जब इस देश में इस मोदी लहर के सामने दूसरे सभी सियासतदान हथियार डाल चुके थें, यशवंत सिन्हा हाथ में बगावत का झंडा लेकर घूम रहे थें, हालांकि जयंत सिन्हा ने पिता यशवंत की इस सियासत से दूरी बनाने की भरपूर कोशिश की, यशवंत सिन्हा ने जब मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को लेकर हमला किया, तो भाजपा की ओर से हमले की जिम्मेवारी पुत्र जयंत सिन्हा पर ही थोपी गयी, तब यशवंत सिन्हा का जवाब पेश करने के लिए तब जयंत सिन्हा ने दूसरे ही दिन देश के नामचीन अखबारों में लम्बा आलेख लिखा और पिता के तर्कों की धज्जियां उडाने की कोशिश की.

पिता के विपरीत मोदी की तरफदारी के बावजूद भी नहीं बची कुर्सी और अब बेटिकट किये गयें जयंत

बावजूद इसके जयंत सिन्हा की कुर्सी नहीं बची, और पीएम मोदी की दूसरी पारी में जयंत सिन्हा को मंत्रिमंडल से आउट कर दिया गया, और 2024 आते-आते हालत यह हो गयी कि अब जयंत सिन्हा को सियासत में बदलाव के बजाय जलवायू परिवर्तन पर अपना फोकस करना पड़ रहा है, और खुद ही अखाड़े से बाहर निकल अपनी इज्जत बचाने की जुगत लगानी पड़ रही है. लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या जयंत की विदाई के बावजूद हजारीबाग में कमल का काफिला जारी रहेगा. क्या जयंत की जगह अखाड़े में उतारे गये मनीष जायसवाल भाजपा को सियासी अखाड़े में बनाये रखने का सियासी सामर्थ्य रखते हैं. इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले हमें यह याद रखना चाहिए कि हजारीबाग संसदीय सीट में कुल पांच विधान सभा क्षेत्र आता है. जहां बरही से अभी कांग्रेस के उमाशंकर अकेला, बरकागांव से कांग्रेस की अम्बा प्रसाद, रामगढ़ से आजसू की सुनीता चौधरी, मांडू से भाजपा के जयप्रकाश पटेल और हजारीबाग से खुद मनीष जायसवाल भाजपा विधायक हैं. हजारीबाग में धार्मिक ध्रुवीकरण का इतिहास भी रहा है और इसी धार्मिक ध्रुवीकरण के सहारे वर्ष 1998 से अपनी पकड़ को मजबूत बनाये हुए है. इस प्रकार देखें तो हजारीबाग में उम्मीदवार कौन है? से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि कमल का निशान किसके पास है? लेकिन इस बार हजारीबाग की सियासी जमीन कुछ बदली बदली नजर आ रही है. और इस बदले सियासी हालात में भाजपा को  एक साथ कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

जयराम महतो का बाहरी भीतरी का राग भी बिगाड़ेगा भाजपा का खेल

पहली चुनौती तो खुद सिन्हा परिवार है. यह मानलेना कि अपनी सियासी विदाई से बाद भी सिन्हा परिवार भाजपा का वफादार रहेगा, एक सियासी खुशफहमी से ज्यादा कुछ नहीं होगा. निश्चित रुप से यशवंत सिन्हा की कोशिश इस बार हजारीबाग के किले में भाजपा का कमल का मुर्छाने की होगी, और दूसरी चुनौती झारखंड की सियासत में जयराम महतो की तूफानी इंट्री है. जयराम महतो ने झारखंड की सियासत में जिस प्रकार से बाहरी भीतरी का राग छेड़ा है. झारखंड़ी अस्मिता और बाहरी बिहारी चेहरे को सियासी विमर्श का हिस्सा बनाया है. युवाओं लेकर महिलाओं तक में इस बात को स्थापित किया है कि जिस झारखंड का सपना देखते हुए निर्मल महतो ने अपनी शहादत दी थी, वह झारखंड आज कहां खड़ा है? उस झारखंड का रंग ऐसा तो नहीं था? यह कौन सा झारखंड है जहां पीएन सिंह, यशवंत सिन्हा, जयंत सिन्हा, सुनील सिंह और बीडी राम जैसे गैरझारखंडी हमारे सांसद और मनीष जायसवाल हमारे विधायक है. युवाओं की उमड़ती भीड़ में जयराम का यह सवाल आज उतरी छोटानागपुर में कहर बरपा रहा है.

जयराम के सवालों में उलझ तो नहीं जायेगी भाजपा

अब सवाल यह है कि क्या मनीष जायसवाल अपने गैरझारखंडी चेहरे के साथ जमीन पर उमड़ते इस तूफान का सामना कर पाने की स्थिति में है? क्या जयराम के सिपहसलार के रुप में मोर्चाबंदी करने की तैयारी में जुटे संजय मेहता उनकी राह को इतना आसान रहने देंगे? और सवाल तो यह भी है कि क्या जयंत सिन्हा को भी इस सियासी बदलाव की खबर मिल चुकी थी? उनके सियासी सरेंडर का एक कारण यह भी है?  खैर, जयराम कितनी ताकत के साथ हजारीबाग के इस दंगल में संजय मेहत के साथ खड़ा नजर आयेंगे, और उनके सवालों का चुनावी समीकरणों पर क्या असर पड़ेगा, यह तो चुनाव का परिणाम तय करेगा.

अम्बा की होगी इंट्री या योगेन्द्र साव संभालेंगे मोर्चा

लेकिन हजारीबाग के अखाड़े के लिए कांग्रेस की तैयारी क्या है? यह भी एक बड़ा सवाल है. दावा किया जाता है कि इस बार बड़कागांव विधायक अम्बा प्रसाद भी हजारीबाग के इस दंगल में उतरने की बेताब दिख रही है, अम्बा की चाहत इस बार या तो  खुद मैदान में उतरने की या फिर अपने पिता और पूर्व मंत्री योगेन्द्र साव को अखाड़े में उतराने की है. यदि हजारीबाग संसदीय सीट का सामाजिक समीकरण और कांग्रेस का पूर्व का हार का सिलसिला को समझने की कोशिश करें तो अम्बा का यह ऑफर कांग्रेस के लिए बुरा भी नहीं है. हालांकि पांच में से दो विधान सभा में कांग्रेस के विधायक है. लेकिन आज भी आजसू और भाजपा के तीन विधायक है. इस हालत में यदि कांग्रेस पुराने थके हारे कांग्रेसियों को आराम का अवसर प्रदान कर इस अखाड़े से अम्बा जैसे युवा चेहरे को अवसर देती है, तो यह लड़ाई दिलचस्प हो सकता है. वैसे भी हजारीबाग में पिछड़ी जातियों की आबादी करीबन 55 फीसदी है, और उसमें भी जिस तेली जाति से अम्बा आती है, उसकी भी एक बड़ी आबादी है, इस हालत में इस संकट में कांग्रेस के लिए अम्बा एक ताकत साबित हो सकती है, हालांकि देखना होगा कि कांग्रेस आलाकमान की सोच किस दिशा में जाती है.

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Published at:06 Mar 2024 01:38 PM (IST)
Tags:Sinha family out of Hazaribagh fort after two decadesManish Jaiswal will play KamaCongress will return to the ringAmba Prasad's entry in HazaribaghYogendra Sao will be Congress candidate from Hazaribagh parliamentary seatJairam's commander Sanjay Mehta is also in the arenaCongress MLA Amba Prasad will challenge Manish Jaiswal2024 Lok Sabha elections on Hazaribagh parliamentary seatSanjay Mehta's challenge to BJP's Manish Jaiswalhazaribaghlok sabha election 2024hazaribagh newshazaribagh lok sabha seathazaribagh lok sabha election 2019hazaribagh lok sabha sehazaribagh lok sabha seat 2019lok sabha electionjayant sinha hazaribaghlok sabha electionslok sabhalok sabha elections 2024hazaribagh lok sabhahazaribagh loksabha seathazaribagh lok sabha chunavhazaribagh lok sabha candidatehazaribagh electionhazaribagh lok sabha constituencyYashwant Sinha preparing to enter Hazaribagh arena
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