Ranchi-राहुल गांधी की किस्मत दगा पर दगा देती नजर आ रही है. पूर्वोत्तर के राज्यों से जिस जोर शोर के साथ भारत न्याय यात्रा की शुरुआत हुई थी, असम के सीएम और राहुल के बीच की जुबानी जंग, जिस प्रमुखता के साथ अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन रही थी, टेलीविजन चैनलों पर राहुल गांधी को जो कवरेज मिल रहा था, बंगाल पहुंचते -पहुंचते अचानक के उसका ग्राफ नीचे गिरता नजर आया. ना तो ममता बनर्जी इस न्याय यात्रा में शामिल हुई और ना ही राहुल गांधी के द्वारा दीदी पर कोई हमला बोला गया. यानि मीडिया के लिए मसाले गायब थें, बहुत हद तक पश्चिम बंगाल में यह एक प्रकार का फ्रेंडली मैच बनता नजर आया, हालांकि कई स्थानों पर तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प की खबर भी सामने आयी, लेकिन यात्रा का कवरेज कम होता गया और इसका सबसे बड़ा कारण राहुल गांधी का ममता बनर्जी पर हमले से परहेज की रणनीति थी, जो देश की भावी सियासत को सामने रख बेहद बेबसी में राहुल गांधी के द्वारा अपनायी गयी थी.
बिहार में प्रवेश करने से पहले ही नीतीश की पांचवी पलटी
लेकिन राहुल गांधी की किस्मत बिहार में भी दगा दे गयी. अभी वह बिहार की सीमा में प्रवेश भी नहीं किये थें कि बिहार की सियासत उल्टे पांव खड़ी हो गयी. अब तक इंडिया गठबंधन के सूत्रधार के रुप में स्थापित हो चुके और पीएम फेस के रुप में प्रचारित हो रहे नीतीश ने अपनी पांचवीं पलटी से देश की सियासत में भूचाल ला दिया था. और इसके बाद चाहे राष्ट्रीय मीडिया हो या स्थानीय चैनल सभी जगह सिर्फ नीतीश की पलटी मारने की खबर चल रही थी. इधर उनकी न्याय यात्रा का कारवां बढ़ता रहा और उधर राजद सहित इंडिया गठबंधन के शेष घटक दल सरकार बनाने और बचाने के खेल में मशगूल हो चुके थें. नीतीश की विदाई के बाद भी जिस तेजस्वी और लालू परिवार से इस यात्रा में कदम ताल मिलाकर चलने की आशा की जा रही थी, वह भी इस न्याय यात्रा से अलग बिहार में बड़े खेल की तैयारी में जुट चुके थें. राहुल गांधी की न्याय यात्रा से ज्यादा उनकी नजर जदयू विधायकों के साथ अपनी पींगे बढ़ाने की थी. पूरे बिहार में राहुल की न्याय यात्रा से ज्यादा कोहराम तेजस्वी के उस दावे ने मचा रखा था कि चाचा नीतीश ने पलटी तो जरुर मारी है, लेकिन अभी खेल होना बाकी है, और तो और जिन कांग्रेसी विधायकों को राहुल की इस न्याय यात्रा में समर्पित होना चाहिए था, कांग्रेस आलाकमान की नजर उन विधायकों की निष्ठा पर टिकी थी, पता नहीं कब कौन सा खेला हो जाये, खुद तेजस्वी यादव भी लगातार कांग्रेस आलाकमान को अपने विधायकों पर नजर रखने की गुहार लगा रहे थें. इस प्रकार जिस तेजस्वी और राहुल गांधी की जोड़ी के सहारे बिहार की सियासत में तूफान खड़ा किया जा सकता था, वह तूफान बिहार के बदले सियासी हालात का भेंट चढ़ गया.और इस सियासी कोलाहल में राहुल गांधी अकेला ही इस न्याय यात्रा का पतवार थामें नजर आयें.
झारखंड में प्रवेश से पहले हेमंत की विदाई
लेकिन जैसे ही उनका कारवां झारखंड की ओर बढ़ता नजर आया, झारखंड की सियासत में भूचाल आ चुका था. इंडिया गठबंधन के सबसे मजबूत और विश्वसनीय चेहरा सीएम हेमंत ईडी के फंदे में पहुंच चुके थें. उनकी सत्ता जा चुकी थी, हेमंत की विदाई के जश्न में देवघर में पंडे-पुजारियों के द्वारा राहुल की उपस्थिति में मोदी के जयकारे लगाये जा रहे थें. और इस एक वीडियो को राष्ट्रीय मीडिया में पूरे तव्वजों के साथ परोसा जा रहा था. इस दृश्य को सामने रख कर राहुल की अलोकप्रियता को सामने लाने की साजिश रची जा रही थी, लेकिन जैसे ही यह काफिला आज राजधानी रांची पहुंचा, पूरा राज्य चंपई सोरेन सरकार के बहुमत परीक्षण पर अपनी आंखे जमाये हुए था, टीवी और तमाम मीडिया में पूर्व सीएम हेमंत का विधान सभा में दिया गया भाषण और चंपई सोरेन का बहुमत साबित करने से भरा पड़ा था, और तो और जिन कांग्रेसी विधायकों को पाकुड़ से लेकर पूरे झारखंड में राहुल गांधी के साथ मार्च करना था, वह तमाम विधायक हैदराबाद भेजे जा चुके थें, यानी जनता तो दूर उनके विधायक भी उनके साथ खड़े नहीं थें, दुखद स्थिति तो यह थी कि जब राहुल गांधी राजधानी की सड़कों पर गर्जना कर रहे थें, ठीक उसी वक्त उनके तमाम विधायक विधान सभा के अंदर चंपई सरकार को बचाने का जंग लड़ रहे थें. यानि एक बार फिर से राहुल गांधी मीडिया से गायब हो चुके थें. अब यह राहुल गांधी की बदकिस्मती है या उनके जीवन में कुछ शुभ होने के पहले की परीक्षा, इसका फैसला भविष्य के गर्त में छुपा है, लेकिन बिहार के झारखंड तक राहुल गांधी के इस कारवें पर नजर डाले तो यही नजर आता है कि कारवां बढ़ता रहा, लेकिन राहुल की किस्मत डूबती रही.