Ranchi-एक तरफ 15 नवम्बर को बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर पीएम मोदी के खूंटी आगवन को लेकर राज्य का हर महकमा स्वागत की तैयारियों में जुटा है, वहीं दूसरी ओर इस आगवन के पहले सरना धर्म कोड का मुद्दा भी गर्माने लगा है. इसके साथ ही कई आदिवासी समूहों के द्वारा मणिपुर में आदिवासी महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार और निवस्त्र करने के विरोध में पीएम मोदी की यात्रा का विरोध करने की तैयारी की जा रही है. और दावा किया जा रहा है कि पीएम मोदी को इस यात्रा के दौरान आदिवासी समाज के द्वारा भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता है.
राजधानी रांची में सरना धर्म कोड को लेकर आदिवासी समाज का महाजुटान
इस बीच आज राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में सरना धर्म कोड को लेकर आदिवासियों का महाजुटान किया जा रहा है. पूर्व भाजपा सांसद सालखन मुर्मू के नेतृत्व में आयोजित इस महाजुटान में ना सिर्फ झारखंड के आदिवासी समाज का जुटान हो रहा है, बल्कि आसाम, अरुणाचल प्रदेश, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ से लेकर मध्यप्रदेश तक से आदिवासी समाज का जुटान रहा है. आदिवासी सेंगेल अभियान के संयोजक और पूर्व भाजपा सांसद सालखन मुर्मू का दावा है कि सरना धर्म कोड आदिवासियों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल है, आजादी के 75 वर्षों के बाद भी आदिवासी समुदाय को उसकी धार्मिक स्वंतत्रता के वंचित रखा जा रहा है, हमें एक साजिश के तहत हिन्दू खांचे में फिट करने की कोशिश की जा रही है. जबकि आदिवासी कहीं से भी हिन्दू नहीं है. उनकी अपनी सभ्यता, संस्कृति और स्वतंत्र पहचान है, और इसका प्रतीक है सरना. यही कारण है कि आदिवासी समुदाय आज एक स्वर से सरना धर्म कोड की मांग कर रहा है, लेकिन हमारे ही बीच के कुछ सत्ता के दलालों के द्वारा आदिवासी समुदाय को दिगभ्रमित करने की कोशिश की जा रही है, कभी उन्हे सनातनी तो कभी कुछ और बताया जा रहा है.
हिन्दू राष्ट्र की मांग जायज तो आदिवासी राष्ट्र की मांग गलत कैसे
उन्होंने कहा कि एक तरफ कुछ लोगों के द्वारा हिन्दू राष्ट्र के दावे किये जा रहे हैं, तो दूसरी कुछ लोगों के द्वारा इस्लामी और ईसाई राष्ट्र का मामला उठाया जा रहा है, इस हालत मेंहमारा आदिवासी राष्ट्र की बात गुनाह कैसे हो गया. हम इस महाजुटान के साथ ही देश के छह करोड़ आदिवासी समाज के धार्मिक सामाजिक मुक्ति के लिए एक रोड मैप तैयार करेंगे.
सांत्वाना और आश्वासनों का दौर समाप्त
सरना धर्म कोड का विरोध करने वालों को चेतावनी देते हुए सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि अब सांत्वाना और आश्वासनों का दौर समाप्त हो चुका है, यदि हमारी बात नहीं मानी गयी, हमें सरना धर्मकोड प्रदान नहीं किया गया, जनगणना में हमारी संख्या को अलग से नहीं लिखा गया तो अब भीषण युद्ध की शुरुआत होगी.
यहां हम बता दें कि राज्य की हेमंत सरकार ने 11 नवंबर 2020 को ही सरना धर्म कोड बिल को विधान सभा से पारित कर केन्द्र को भेज चुकी है. इसके साथ ही सीएम हेमंत ने पीएम मोदी को विशेष रुप से पत्र लिख कर भी आदिवासी समाज की इस मांग को स्वीकार करने का आग्रह किया है, बताया जाता है कि 2011 के जनगणना में झारखंड में 40.75 लाख और देशभर में कुल छह करोड़ लोगों ने सरना धर्म को अपना धर्म बताया है.
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