Ranchi- बिहार के अंदर महागठबंधन की उलझनों को अपने हिसाब से साधने के बाद राजद सुप्रीमो लालू की नजर झारखंड पर है और जिस तरीके कांग्रेस की उफान लेती हसरतों के बीच ना सिर्फ राजद की सियासी जमीन को बचाने में सफलता हासिल की, बल्कि 15 की रट लगा रही कांग्रेस को 9 पर लाकर खड़ा कर दिया. दावा किया जाता है कि लालू अब वही दांव झारखंड में खेलने वाले हैं. आज दिन भर झारखंड के सियासी गलियारों में इस बात पर चर्चा गरम रही कि बिहार से फुर्सत पाने के बाद अब लालू झारखंड में अपने उम्मीदवारों एलान करेंगे और इसके पीछे तर्क दिया गया कि जिस तरीके से कांग्रेस ने लोहरदगा, हजारीबाग और खूंटी सीटों पर मनमाने और एकतरफा तरीके से अपने प्रत्याशियों का एलान किया है, अब लालू भी कांग्रेस को उसी की भाषा में जवाब देने वाले हैं. दावा किया गया कि झामुमो के साथ ही लालू भी कांग्रेस को उसकी बढ़ती सियासी चाहत पर विराम लगाना चाहते हैं और इसी खुनस में आज पलामू और चतरा सीट से अपने प्रत्याशियों एकतरफा एलान किया जाना है, यानि लालू कांग्रेस को उसी के दांव पर पस्त करने की सियासत करने वाले हैं. लेकिन एन वक्त पर यह खबर आयी कि किसी बड़े एलान के बजाय राजद ने पलामू और चतरा सीट पर अपनी दावेदारी को पेश किया.
सुबह तक आक्रमक राजद शाम होते ही क्यों हुई नरम?
लेकिन सवाल खड़ा होता है कि आखिर एन वक्त पर राजद की यह आक्रमकता खत्म क्यों हुई, क्या सिर्फ दो सीटों पर अपनी दावेदारी को सामने लाने के लिए ही तमाम पत्रकारों को बुलाया गया था, जबकि यह खबर तो सरेआम है कि राजद इस बार पलामू के साथ ही चतरा सीट पर अपनी दावेदारी पेश कर रहा है, इस हालत में पत्रकारों को बुलाने की जरुरत क्या था, प्रेस कॉन्फ्रेंस का आचित्य क्या था. सियासी जनाकारों का दावा है कि दरअसल पर्दे के पीछे का खेल कुछ दूसरा था, जैसे ही कांग्रेस को इस बात की भनक लगी कि आज राजद एकतरफा तरीके से अपने प्रत्याशियों का एलान करने वाला है, यह सवाल खड़ा होने लगा कि आखिर इसके बाद झारखंड में महागठबंधन का भविष्य क्या होगा? और उसके बाद कांग्रेस के अंदर की सरगर्मी तेज हुई. झारखंड कांग्रेस के रणनीतिकारों के द्वारा मान मनोबल का दौर शुरु हुआ और जल्द ही सारे मामले के समाधान का आश्वासन देकर फिलहाल इस घोषणा को टालने का आग्रह किया गया. फिलहाल इस घोषणा को टालने आग्रह किया गया. अब देखना होगा कि कांग्रेस कितनी जल्दी राजद की मांग पर अपना फैसला लेती है, और यदि इसके बावजूद कांग्रेस एकतरफा तरीके से अपने उम्मीदवारों का एलान करना जारी रखती है, तो राजद इस बार भी फ्रेंडली फाईट में कूद सकती है.यहां याद रहे कि वर्ष 2019 में भी महागठबंधन के इसी रवैये से नाराज होकर राजद ने एन वक्त पर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था, जिसके बाद वहां महागठबंधन के बीच फ्रेंडली फाईट हो गयी थी. 83 हजार मत लाकर राजद के सुभाष यादव तीसरे स्थान और कांग्रेस के मनोज यादव करीबन डेढ़ लाख वोट के साथ दूसरे स्थान पर थें, लेकिन यदि इन दोनों के कुल मतों को भी मिला दिया जाय तो भी महागठबंधन भाजपा के सुनिल सिंह के पांच लाख से काफी पीछे थी.
माय समीकरण से आगे की रणनीति तैयार कर रही राजद
दावा किया जाता है कि पिछले चुनाव के नतीजों से राजद इस बदली सियासत पर काम कर रहा है, और किसी बाहरी उम्मीदवार के बजाय चतरा सुरक्षित सीट से विधान सभा पहुंचे और राजद कोटे से झारखंड में मंत्री सत्यानंद भोक्ता को मैदान में उतारना चाहती है. राजद की रणनीति अपने आधार मत यादव और मुस्लिम के साथ ही भोक्ता जनजाति को अपने साथ खड़ा करने की है. ध्यान रहे कि एक आकलन के अनुसार चतरा संसदीय सीट पर अल्पसंख्यक करीबन 10 फीसदी, अनुसूचित जाति-27 फीसदी और अनुसूचित जातियों की आबादी करीबन 21 फीसदी है, इसके साथ ही एक बड़ी आबादी यादव और दूसरी पिछड़ी जातियों की है. राजद की रणनीति अपना आधार वोट यादव और मुस्लिम के साथ अनुसूचित जनजाति के सात ही अनसुचित जाति के एक बड़े हिस्से को अपने साथ खड़ा करने की है. और राजद की इस रणनीति में सबसे ज्यदा फीट सत्यानंद भोक्ता नजर आते हैं. यानि राजद अपने पिछले अनुभवों के आधार पर झारखंड में माय समीकरण से आगे की सियासी जमीन की तलाश में है. ठीक यही हाल पलामू में ममता भुइंया की इंट्री है, दावा किया जाता है कि पलामू में भुइंया जाति की एक बड़ी आबादी है, राजद की कोशिश वहां भी अपना आधार वोट यादव मुस्लिम के साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को खड़ा करने की है.
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