Ranchi-झारखंड के इतिहास में शायद यह पहला मौका है, जब राज्य के मुखिया को शपथ ग्रहण तो करवा दिया गया हो, राज्य की पूरी सत्ता अब चंपई सोरेन के पास है. अधिकारियों का फौज उनके पास है, गृह मंत्रालय और दूसरे महकमा भी उसके पास है, लेकिन जिन विधायकों के बूते उन्हे अपना बहुमत साबित करना है, वे राजधानी से दूर हैदराबाद में हैं. इस हालत में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या चंपई सोरेन को अपने विधायकों की एकनिष्ठा पर विश्वास नहीं है, या उन्हे अपने सहयोगियों दलों की निष्ठा पर संदेह है. तो यहां याद रखना चाहिए कि 45 विधायायकों के शक्ति प्रदर्शन के बावजूद भी चंपई सोरेन को शपथ ग्रहण करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा, स्थिति यहां तक पहुंच गयी थी कि सभी विधायकों को एक लाइन में खड़ा होकर भेड़-बकरियों की तरह अपनी गिनती करवाते हुए उसका वीडिया रीलीज करना पड़ा था. और तब जाकर काफी मशक्कत और उहापोह के बाद मनमाकर उन्हे शपथ ग्रहण का आमंत्रण मिला. क्योंकि विधायको यह वीडियो जैसे ही सोशल मीडिया पर अपलोड हुआ, भाजपा की किरकिरी शुरु हो गयी, उसकी नियत और मंशा पर सवाल खड़ा किया जाने लगा, आम जनता के बीच से ही यह सवाल खड़ा होने लगा कि आखिर इस अपार बहुमत के बाद भी शपथ ग्रहण के आमंत्रण में यह देरी क्यों?
हेमंत के इस्तीफे के साथ ही विधायकों में भगदड़ का किया गया था आकलन
इस बीच एक चर्चित अखबार ने यह दावा भी पेश किया कि दरअसल सीएम हेमंत के इस्तीफे के साथ ही राजभवन की ओर से गृह मंत्रालय को राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा भेज दी गयी थी, और इस आमंत्रण पत्र में देरी का कारण यही है, दरअसल भाजपा यह मान कर चल रही थी कि जैसे ही सीएम हेमंत का इस्तीफा होगा, विधायकों में भगदड़ की स्थिति मचेगी, खुद भाजपा यह दावा कर रही थी कि करीबन 10 विधायक उसके साथ आ सकते हैं, दावा यह भी किया गया था कि कल्पना सोरेन को सीएम बनाने पर सोरेन परिवार के अंदर सहमति नहीं थी, सीता सोरेन से लेकर बसंत सोरेन का नाम सीएम पद के लिए उछाला जा रहा था, और यह सारे दावे भाजपा नेताओं के द्वारा भी किये जा रहे थें, दावा तो यह भी किया गया था कि सारे विधायकों के मोबाइल जब्त कर लिये गये हैं, यानि इशारा साफ था कि भाजपा की ओर से इन विधायकों से सम्पर्क करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन मोबाईल स्वीच ऑफ रहने के कारण सम्पर्क नहीं हो पा रहा है, लेकिन जैसे ही अचानक से सीएम पद के लिए चंपई सोरेन का नाम सामने भाजपा के रणनीतिकारों को सपना टूटता नजर आने लगा. और आखिरकार काफी मन मारकर चंपई सोरेन को शपथ ग्रहण का आमंत्रण देना पड़ा.
हेमंत के इस्तीफे के बाद भी विधायकों ने दिखलायी अपनी एकजूटता
लेकिन यह सब कुछ ऑपेरशन लोटस का पार्ट वन था, सीएम हेमंत ने अपनी मौजूदगी में इस पार्ट वन को असफल कर दिया था, लेकिन हेमंत सोरेन को सीएम से पूर्व सीएम बनते ही ऑपरेशन टू को धार देने की कवायद शुरु हो गयी, सत्ता भले ही सीएम चंपई के पास थी, लेकिन अभी उन्हे सत्ता पर अपनी पकड़ बनानी थी, हालांकि पूर्व सीएम हेमंत जाते जाते काफी कुछ रणनीति बना गये थें, और इसी रणनीति के तहत सीएम के सचिव विनय कुमार चौबे ने अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था, इस इस्तीफे को कई चश्में से देखे जाने की कोशिश हुई, लेकिन जैसे ही चंपई सोरेन का शपथ ग्रहण पूरा हुआ, वही विनय कुमार चौबे को एक बार फिर से सीएम का प्रधान सचिव के रुप में ताजपोशी हो गयी, साफ है कि पार्टी के साथ ही सरकार का समीकरण कैसा होगा, इसका लगभग एक खांचा हेमंत सोरेन तैयार कर गये थें, लेकिन बावजूद इसके नवनियुक्त सीएम चंपई सोरेन को अभी कई चीजे अपने हाथ में लेनी थी, और यही कालखंड भाजपा के लिए ऑपेरशन लोटस पार्ट टू के लिए सबसे मुफीद था और है. सीएम चंपई को भी इस खतरे को भी भली-भांति इस खतरे का एहसास है कि किसी भी वक्त इस ऑपरेशन टू को अंजाम दिया जा सकता है, और यही कारण है कि जैसे ही उन्होनें शपथ ग्रहण की औपचाकिता पूरी, और उन्हे अपना बहुमत साबित करने के लिए दस दिनों का समय दिया गया, वह तीन दिन के अंदर अंदर अपना बहुमत साबित करना का मंशा जता दिया, क्योंकि उन्हे पता है कि यह समय जितना अधिक लम्बा होगा, भाजपा को इस ऑपेरशन को कामयाब बनाने का उतना ही समय मिलेगा. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने किसी भी प्रकार का खतरा लेने के बजाय अपने सारे विधायकों को हैदराबाद भेजने का हेमंत को फैसले को जारी रखा, अब खबर है कि सभी विधायक पांच फरवरी को हैदराबाद से सीधे रांची का उड़ान भरेंगे और एयरपोर्ट पर उतरते ही सीधे विधान सभा की ओर प्रस्थान करेंगे, जहां अपना बहुमत साबित करने बाद सत्र की शेष अवधि को पूरा कर अपने अपने इलाकों की ओर प्रस्थान करेंगे.
लोबिन की नाराजगी, साजिश या गुस्सा
लेकिन इस बीच खबर यह है कि लोबिन हेम्ब्रम ने पार्टी से अपनी नाराजगी को एक बार फिर से जाहिर किया है, लोबिन उन चंद विधायकों में से एक हैं, जो हैदराबाद के बजाय झारखंड में हैं, हालांकि पिछली बार भी जब हेमंत सरकार पर संकट मंडराया था, तब भी लोबिन राजधानी और अपने विधान सभा में ही मौजूद रहें, और दावा कर रहे थें, कि हेमंत सरकार पर कोई खतरा नहीं है, लेकिन इस बार उनकी भाषा कुछ बदली नजर आ रही है. लेकिन इसके साथ ही लोबिन जिन मुद्दों को उठाकर हेमंत को घेरने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं, या उठा कर पार्टी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने की कोशिश कर रहे हैं, क्या उन मुद्दों को भाजपा स्वीकार करने की स्थिति में होगी. क्या जिस जल जंगल और जमीन, पेसा एक्ट और सीएनटी के हवाले लोबिन पूर्व सीएम हेमंत को घेरने की कोशिश कर रहे हैं, उनके मुद्दे को भाजपा उसके अंजाम तक पहुंचायेगी, साफ है कि लोबिन जिस राजनीतिक सामाजिक लड़ाई को तेज करना चाहते हैं, उसकी दूर दूर कर कोई गुंजाईश भाजपा में नहीं है, इस हालत में सवाल खड़ा होता कि क्या लोबिन किसी के सम्पर्क में है, किसी और की लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, इसका कोई सीधा जवाब अभी नहीं है, लेकिन इतना साफ है कि लोबिन की यह भाषा कोई नहीं है, इसके पहले भी वह लगातार हेमंत सरकार को घेरते रहे हैं, और हर संकट में वह आखिरकार हेमंत के पक्ष में भी खड़े होते हैं, लेकिन इसका कतई मतलब नहीं है कि ऑपरेशन लोटस टू नहीं होने वाला है, हमें लोबिन के साथ ही कई दूसरे विधायकों पर भी नजर बनाई रखनी होगी, जो लोबिन की तूलना में कहीं ज्यादा शातिरना अंदाज में साजिशों को अंजाम देते है, हालांकि इसके सफल होने की संभावना अभी बेहद कम नजर आती है.