Ranchi-शपथ ग्रहण के साथ ही सीएम चंपई की पहली चुनौती दूर हो गयी, लेकिन यह चुनौतियों का अंत नहीं होकर महज शुरुआत है. सबसे पहली चुनौती तो विधान सभा के प्लोर पर बहुमत साबित करने की है. 45 विधायकों का साथ रहते यह चुनौती जितनी आसान दिखती है, दरअसल यह चुनौती उतनी आसान भी नहीं है. और यदि चुनौती इतनी आसान होती तो अपने 39 विधायकों को हैदराबाद भेजने की नौबत नहीं आती, साफ है कि शपथ ग्रहण के बाद भी उनके अंदर एक खौफ पसरा है, एक आशंका बनी हुई है, इस बात का डर सता भी रहा है कि कहीं झारखंड की जमीन पर पैर रखते ही इन विधायकों के पैर डगमगाने नहीं लगे. उनका मन नहीं डोलने लगे, क्योंकि हर किसी की चाहत इस नई सरकार में अपने चेहरे को देखने की है, दूसरी ओर सीएम हेमंत के नेतृत्व में काम कर चुके पुराने चेहरे आज भी अपना रसूख बनाये रखने का जोर लगा रहे हैं. इसमें तो कई ऐसे भी चेहरे भी हैं, जिन्हे बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों और उनकी प्रतिबद्धता पर लगातार उठते सवालों के बीच हासिये पर डाले जाने की संभावना प्रबल होती दिख रही है.
उपमुख्यमंत्री के रुप में हो सकती है बंसत सोरेन की इंट्री
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि वैसे कौन कौन से चेहरे हैं, जिनकी इंट्री की संभावना बनती दिख रही है, तो इसमें सबसे पहला नाम बसंत सोरेन और सीता सोरेन का है. अंदरखाने से जो खबर आ रही है, उसके अनुसार सोरेन परिवार में इस बात की रणनीति बन रही है कि परिवार के किसी चेहरे को सरकार में शामिल करवा कर सरकार बैलेंस में रखा जाय. ताकि इस परिवार का अंकुश सरकार के एकबारगी गायब नहीं हो, इस हालत में जो सबसे पहला नाम आ रहा है वह है पूर्व सीएम हेमंत सोरेन के छोटे भाई बंसत सोरेन का, दावा किया जाता है कि उनकी इंट्री उपमुख्यमंत्री के रुप में हो सकती है, इसके साथ ही उनके हाथ में कार्मिक और दूसरे अहम विभागों की जिम्मेवारियां सौंपी जा सकती है, दूसरा नाम पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की भाभी और जामा विधायक सीता सोरेन का है. लेकिन बसंत सोरेन के पक्ष में चलती तमाम खबरों के बीच यहां याद रखने की जरुरत है कि बसंत सोरेन का नाम अवैध खनन के मामले में उछलता रहा है, इस हालत में बसंत सोरेन को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी के नवाजना एक मुश्किल फैसला हो सकता है, क्योंकि बसंत के साथ ही भाजपा के हाथ में एक सियासी मुद्दा मिल सकता है.
सीता सोरेन की नाराजगी भी की जा सकती है दूर
रही बात सीता सोरेन की तो, जिस तरीके से बार-बार सीता सोरेन के द्वारा सत्ता में भागीदारी को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की जाती रही है, यह नाराजगी ही उनकी मुश्किल बन सकती है. हालांकि मीडिया में चल रही तमाम खबरों को दरकिनार कर वह आज पूरी ताकत के साथ झामुमो के साथ खड़ी हैं. इस हालत में बहुत संभव है कि उनकी नाराजगी का सम्मान करते हुए मंत्रिमंडल में उनकी इंट्री हो जाय, लेकिन उप मुख्यमंत्री और दूसरे बड़े विभाग सौंपने से बचा जा सकता है.
दीपिका पांडेय सिंह की इंट्री
अब रहा सवाल परिवार से बाहर के चेहरों की, इसमें सबसे पहला नाम महागामा विधायक दीपिका पांडेय सिंह का आता है. जिस प्रकार मुखरता और प्रखरता के साथ हर संकट में दीपिका पांडेय हर संकट में हेमंत सोरेन के साथ खड़ी रही है, वह तो एक वजह है ही, दूसरी वजह है सरकार में शामिल एक चेहरे का पर कतरने की कवायद, दीपिका की इंट्री के साथ ही उस चेहरे का पर बेहद आसानी के कतरा जा सकता है. दीपिका के पक्ष में तीसरी और सबसे मजबूत तर्क है, गोड्डा की सियासत, झामुमो सहित कांग्रेस को आज गोड्डा में एक ऐसे चेहरे की तलाश है, जो निशिकांत को ठिकाना लगा सके, और यह तब ही संभव है कि उस इलाके में किसी चेहरे को सियासत के मेन फ्रेम में लाया जाय, और दीपिका इस हालत में एक बड़ा दांव हो सकती है, मंत्री बनते ही उस इलाके में दीपिका के सियासी कद में विस्तार होगा, उसकी उंचाईयां बढ़ेगी और इसका सीधा लाभ महागठबंधन को 2024 के जंग में देखने को मिलेगा.
मथुरा महतो पर दांव क्यों?
तीसरा नाम मथुरा महतो का है. इसमें कोई दो मत नहीं की मथुरा महतो झामुमो में एक मजबूत कुर्मी चेहरा है, उनके उपर कोई बड़ा दाग भी नहीं है, उनकी सियासी छवि उनकी काफी साफ सुधरी है. जमीन से जुड़े नेता माने जाते हैं. इस हालत में जब 2024 का संग्राम सामने खड़ा है, झामुमो मथुरा महतो को मंत्री पद से नवाज कर उन्हे एक मजबूत संदेश दे सकता है. मथुरा महतो की दावेदारी इसलिए भी बेहद मजबूत है क्योंकि गिरिडीह, धनबाद ,कोडरमा, हजारीबाग में जिस तेजी से जयराम का प्रभाव बढ़ रहा है, खास कर कुर्मी मतदाताओं का रुक्षान जयराम की ओर मुड़ता नजर आ रहा है, मथुरा महतो इसकी काट हो सकते हैं. इस कुर्मी चेहरे को आगे कुर्मी मतदाताओं को अपने पाले में लाने की रणनीति बनायी जा सकती है.
बेरमो विधायक अनुप सिंह की इंट्री की भी संभावना
एक चौथा नाम है बेरमो विधायक अनुप सिंह का, राजपूत जाति से आने वाले अनुप सिंह को आगे कर चंपई सोरेन सामान्य जाति के मतदाताओं को एक संकेत देने की कोशिश कर सकते हैं. हालांकि अनुप सिंह की इंट्री की हालत में पूर्व के चेहरे में किसकी बलि चढ़ायी जाती है, यह भी देखने वाली होगी, इसके साथ ही एक और नाम पर भी चर्चा हो सकती है, वह गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार सोनू का, हेमंत सोरेन के खासमखास रहे सुदिव्य कुमार सोनू की ईट्री की संभावना इसलिए बनती है, उनकी गिनती पूर्व सीएम हेमंत के सियासी रणनीतिकारों में होती रही है, अब जब कि हेमंत इस सरकार को अपना दिशा निर्देश देने के लिए मौजूद नहीं है, तो बहुत संभव है कि सुदिव्य कुमार सोनू का मंत्रिमंडल में इंट्री करवा कर सरकार पर चौकस नजर रखी जाय.
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