संकट में हेमंत तो कल्पना ने संभाला मोर्चा! विधायकों की एकजुटता के साथ ही कानूनी प्रक्रिया पर भी बनी है नजर

Ranchi-कल ईडी के द्वारा हिरासत में लेने के साथ ही पूर्व सीएम हेमंत सियासी बंबडर में फंसते नजर आने लगे हैं. एक तरफ उनकी चिंता अपनी अनुपस्थिति में सभी विधायकों को एकजुट रखने की है, तो दूसरी ओर जिस कानूनी शिंकजे में उन्हे घेरने की कोशिश की जा रही है, उस जाल का कानूनी काट ढूंढ़ने की भी है, और इन सारी परेशानियों के बीच 2024 का महासंग्राम उनका इंतजार कर रहा है. बड़ा सवाल तो यही कि यदि पार्टी का सबसे चमकदार चेहरा ही कालकोठरी में बंद होगा तो चार वर्षों की उनकी सरकार की जो उपलब्धियां रही, उसे जनता की अदालत में लेकर कौन जायेगा, निश्चित रुप से उन्होंने दिशोम गुरु के सबसे भरोसेमंद चेहरे और अपना सबसा विश्वासपात्र चंपई सोरेन के सिर पर ताजपोशी कर दी है, लेकिन सवाल यह है कि क्या चंपई उस कमी को पूरा कर सकेंगे, जो एक जलबे की शक्ल में हेमंत के रुप में देखने को मिलता था, क्या चंपई के नेतृत्व में पूरा पार्टी और संगठन 2024 के मुकाबले में वह तेवर और वह जोर दिखला पायेगा, जिसकी आशा हेमंत से की जा रही थी. ऐसे अनकों सवाल आज ना सिर्फ उस कालकोठरी में कैद हेमंत सोरेन को खाये जा रहा होगा, बल्कि यही सवाल उनके समर्थकों के बीच से भी उठती दिख रही है.
कल्पना का यह तेवर झामुमो के लिए सबसे बड़ी राहत
लेकिन इस बीच जो खबर सामने आयी है, वह पूर्व सीएम हेमंत के साथ ही उनकी पूरी पार्टी के लिए एक बड़ी उत्साह की खबर हो सकती है, दरअसल कल्पना सोरेन इस संकट की घड़ी में जिस हिम्मत और हौसले के साथ परिस्थितियां का मुकाबला करती नजर आ रही है, इसकी अपेक्षा बहुत की कम लोगों को थी. और यह खबर उन लोगों को बेचैन कर सकती है जिनके द्वारा कल्पना को सियासत का नौसिखुआ समझने की भूल की जा रही थी. दरअसल खबर यह है कि कल्पना सोरेन इस वक्त अपना व्यक्तिगत दर्द और व्यथा को भूल कर अपना पूरा समय विधायकों को एकजुट करने में लगा रही है, वैसे कई चेहरे जिन्हे आज के पहले तक कल्पना का विरोधी होने का दावा किया जा रहा था, इस बात की ताल ठोकी जा रही थी कि उन्ही चेहरों की आपत्ति के बाद हेमंत सोरेन को कल्पना पर दांव लगाने के बजाय चंपई सोरेन पर दांव लगाने को मजबूर होना पड़ा. महज एक दिन के अंदर अंदर वह सारे कथित विरोधी चेहरे उस सीएम हाउस में मौजूद है, और यह कमाल किसी और का नहीं, उसी कल्पना की है, जिस कल्पना को लेकर यह दावा ठोका जा रहा था कि पार्टी में इतने विधायक कल्पना की ताजपोशी को तैयार नहीं है.
पार्टी को एकजूट रखने के साथ ही कानूनी लड़ाई भी लड़ने को तैयार
आज कल्पना सिर्फ पार्टी को एकजुट रखन में ही अपनी उर्जा नहीं लगा रही है, बल्कि हेमंत सोरेन के उपर जो कानूनी संकट मंडरा रहा है, चुन चुन कर उसका काट भी खोज रही है. राज्य महाधिवक्ता से साथ ही दूसरे कानूनी जानकारों के गहन मंथन भी कर रही है. किस दिशा में जाने से क्या समस्या आ सकती है, और इसका समाधान क्या हो सकता है, उसका एक एक काट खोज रही है.
2024 के महासंग्राम में कल्पना का यह तेवर भाजपा पड़ भारी पड़ सकता है
और कल्पना का यह तेवर सिर्फ उनके पार्टी के लिए ही ताकत नहीं है, बल्कि भाजपा के लिए परेशानी का सबब साबित हो सकता है, क्योंकि आज भाजपा जिस बात का जश्न मना रही है कि हेमंत की गिरफ्तारी के बाद झामुमो के पास कोई मजबूत चेहरा नहीं है, कल यही कल्पना उस पर हेमंत से भी ज्यादा भारी पड़ सकता है, क्योंकि कल्पना की आवाज आदिवासी मूलवासियों के साथ ही राज्य की आधी आबादी तक कहर ढा सकती है. निश्चित रुप से चंपई सरकार का चेहरा होंगे, लेकिन पार्टी का चेहरा कल्पना साबित हो सकती है. यहां नहीं भूलना चाहिए कि पिछले दो दशक से कल्पना जिस सियासी परिवार के बीच रह रही है, वह सियासत की इन पेचदीगियों से दूर खड़ी थी, उसकी नजर हर उस खबर पर बनी हुई थी, जो उनके परिवार के बीच रची जा रही थी. हालांकि वह पार्टी में कोई पदधारी नहीं थी, लेकिन इसका कतई मतलब यह भी नहीं है कि पार्टी से लेकर सरकार में क्या हो रहा है, इसकी कल्पना को कोई खबर नहीं थी. दावा तो यह भी किया जाता कि कई मौकों पर वह सीएम हेमंत को अपनी राय देकर उनके सियासी संकट का राह खोजती थी, अब वही कल्पना जब अपनी हवेली से बाहर निकल सड़कों पर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलेगी तो कल्पना की जा सकती है कि झारखंड की सियासत का रंग क्या हो सकता है.
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