Ranchi-झारखंड की कुल 14 में से 11 सीटों के लिए भाजपा की ओर से प्रत्याशी की घोषणा कर दी गयी है, इसमें से एक लोहरदगा लोकसभा सीट भी है. भाजपा ने इस बार 2009 से लगातार परचम फहराते सुदर्शन भगत को आराम करने का फरमान सुनाया है और उनके बदले राज सभा सांसद समीर उरांव को मैदान पर उतारने का फैसला किया है. इसके पहले इस सीट से रांची की पूर्व मेयर आशा लकड़ा का नाम भी चल रहा था. लेकिन एन वक्त पर आशा को जनजातीय आयोग में बतौर सदस्य नियुक्ति कर एक प्रकार से एक्टिव पॉलिटिक्स से किनारा कर दिया गया. एक दूसरा नाम अरुण उरांव का नाम भी अंतिम वक्त तक चलता रहा, लेकिन आखिरकार बाजी समीर उरांव के हाथ लगी. लेकिन इंडिया गठबंधन की ओर से समीर उरांव के मुकाबले कौन होगा, अभी भी इस पर संशय के बादल तैरते नजर आ रहे हैं. हालांकि सुखदेव भगत की चर्चा जरुर है और सुखदेव भगत इस बीच लोहरदगा में एक बार फिर से सक्रिय भी हो चुके हैं, जिसके कारण भी उनका अखाड़े में उतरने की चर्चा तेज है. और वह भी अपने नाम को लेकर काफी मुतमईन नजर आ रहे हैं. लेकिन खबर है कि विसुनपुर विधायक चमरा लिंडा की दिलचस्पी अभी भी इस लोकसभा सीट को लेकर बनी हुई है. और कांग्रेस और झामुमो के बीच इस सीट पर तकरार की वजह भी यही है.
क्यों मजबूत नजर आती है चमरा लिंडा की दावेदारी
ध्यान रहे कि चमरा लिंडा पहले भी इस लोहरदगा से मैदान में उतर चुके हैं. लेकिन उन्हे सफलता हाथ नहीं लगी, वर्ष 2014 में तृणमूल कांग्रेस के बनैर तले चमरा लिंडा ने लड़ाई को दिलचस्प बना दिया था, और यदि उस वक्त पंजे की सवारी कर रामेश्वर उरांव मैदान में नहीं कूदे होते तो शायद चमरा लिंडा मैदान फतह कर चुके थें, तब सुदर्शन भगत को 2,26,666 वोट मिले थें और 2,20,177 वोट लाकर रामेश्वर उरांव दूसरे स्थान पर रहे थें, जबकि, झारखंड की सियासत में तृणमूल कांग्रेस जैसी अनजान पार्टी पर सवार होकर भी चमरा लिंडा ने अपने दम पर 1,18,355 वोट लोहरदगा में अपनी लोकप्रियता को साबित कर दिया था, इसके पहले 2009 में तो बतौर स्वंतत्र उम्मीदवार भी चमरा लिंडा ने दूसरे स्थान पर रहे थें और पंजे की सवारी कर रहे रामेश्वर उरांव को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था और जीत और हार का मार्जिन महज 8 हजार का रहा था. साफ है कि यदि दोनों ही बार रामेश्वर उरांव मैदान में नहीं होते सुदर्शन भगत की जीत मुश्किल थी. लेकिन बदले सियासी हालात में अब चमरा लिंडा झामुमो के टिकट पर विशुनपुर से विधायक है.
विधान सभा के हिसाब से किसकी पकड़ मजबूत
यहां यह भी याद रहे कि लोहरदगा लोकसभा में मांडर, गुमला, सिसई, लोहरदगा और विशुनपुर कुल पांच विधान सभा आता है. इसमें से मांडर से कांग्रेस की शिल्पी नेहा तिर्की, गुमला से झामुमो का भूषण तिर्की, सिसई से झामुमो सुरारन होरो, विशुनपुर से झामुमो से चमरा लिंडा और लोहरदगा से कांग्रेस के रामेश्वर उरांव विधायक है. यानि पांच में तीन पर झामुमो और दो पर कांग्रेस का कब्जा है. जबकि भाजपा के हाथों शून्य है. यदि सामाजिक समीकरण की बात करे तो इस लिहाज से भी महागठबंधन की पकड़ मजबूत नजर आती है. लेकिन सवाल चेहरा का है. और बहुत कुछ इसी पर निर्भर करेगा. यदि हम सुखदेव भगत की बात करें, जिनका नाम तेजी से सामने आ रहा है, तो कांग्रेस ने 2019 में उन्हे अपना उम्मीदवार बनाया था, चमरा लिंडा की अनुपस्थिति मे भी उन्हे सुदर्शन भगत के हाथों दस हजार मतों से मात खानी पड़ी थी. हालांकि सुखदेव भगत भी लोहरदगा विधान सभा से 2005 और 2015 के उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जीत चुके हैं. लेकिन 2019 में वह पंजे को गच्चा लेकर कमल की सवारी कर बैठे और विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के रामेश्वर उरांव के हाथों मात खानी पड़ी. जिसके बाद एक फिर वह कांग्रेस में वापस आ गये. इस प्रकार लोकसभा चुनाव में शिकस्त के बावजूद रामेश्वर उरांव में पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता दिखलायी पड़ती है. उसकी झलत सुखदेव उरांव में देखने को नहीं मिलती और ना ही वह सियासी जमीन दिखलायी पड़ती है, जिसकी झलक चमरा लिंडा में देखी जाती है. लेकिन गठबंधन की विवशता है कि यह सीट कांग्रेस के पास जानी है, और चमरा लिंडा को अपनी सियासी चाहत के लिए अभी इंतजार करना पड़ सकता है. हालांकि राजनीति संभावनाओं का खेल है, शायद चमरा लिंडा के लिए कोई संभावना इंतजार कर रही हो.