Ranchi-सियासत की दुनिया में कोई किसी का सगा या फिर स्थायी दुश्मन नहीं होता, सवाल सिर्फ सियासी हालात और तात्कालीक परिस्थितियों की होती है. हालात बदलते ही दो जानी दुश्मन भी एक ही टीम में बैटिंग करते नजर आते हैं, इस बार कुछ यही कहानी गोड्डा में भी लिखी जा रही है. राजद नेता संजय यादव और प्रदीप यादव के बीच का सियासी संघर्ष कोई छुपा तथ्य नहीं है. दोनों का एक दूसरे से टकराने का पुराना इतिहास है, और इस खींचतान में कई बार बाजी इन दोनों के हाथ से निकलती रही है. अभी चंद दिन पहले तक संजय यादव गोड्डा सीट पर राजद की दावेदारी ठोकते नजर आ रहे थें, और इसके साथ ही कांग्रेस पर पिछड़ी जातियों की हकमारी का आरोप भी लगा रहे थें. दरअसल दीपिका पांडेय को उम्मीदवार बनाये जाने के बाद गोड्डा में एक विवाद छिड़ता नजर आ रहा था. एक तरफ संजय यादव राजद की दावेदारी नजर अंदाज किये जाने से नाराज चल रहे थें, दूसरी ओर प्रदीप यादव के समर्थक इस बात का आरोप लगा रहे थें कि कांग्रेस ने दीपिका पांडेय का नाम को आगे कर पिछड़ों की हकमारी की है,जबकि पूर्व सांसद फुरकान अंसारी और उनके बेटे इरफान अंसारी अल्पसंख्यक समाज की उपेक्षा का आरोप गढ़ रहे थें.
कील-कांटों को दूर करने की कवायद
इस असंतोष और बगावत के बीच कांग्रेस ने प्रत्याशी बदलने का एलान किया और प्रदीप यादव पर दांव लगाने का फैसला किया. इसके बाद माना जा रहा था कि प्रदीप यादव की गाड़ी फंसी मानी जा रही थी. दावा किया जा रहा था कि एक तरफ जहां प्रदीप यादव को संजय यादव के विरोध का सामने करना पड़ेगा, वहीं अल्पसंख्यक समाज को भी साधने की चुनौती होगी. दावा तो यह भी किया जा रहा था कि टिकट देकर बेटिकट किये जाने के बाद दीपिका पांडेय भी अंदरखाने खेल कर सकती है.
फुरकान अंसारी को बिहार का ऑब्जर्वर बना जख्म पर मरहम
लेकिन अब जो खबर आ रही है, उसके बाद एक-एक कर प्रदीप यादव के राह के कांटे साफ होते नजर आ रहे हैं. फुरकान अंसारी को बिहार में पार्टी का ऑब्जर्वर बनाकर जख्म पर मरहम लगाने की कोशिश हुई है, वहीं बदले सियासी हालात में संजय यादव अपने सियासी प्रतिद्वंद्वी प्रदीप यादव की जीत को सुनिश्चित करने के लिए खून-पसीना एक करते नजर आ रहे हैं. उनका दावा है कि उन दोनों के बीच कोई निजी दुश्मनी नहीं थी, लड़ाई विचारधारा की थी, अब प्रदीप यादव सही जगह पहुंच चुके हैं, इस हालत में पुरानी बातों का कोई मतलब नहीं है. इस चुनावी संघर्ष में उनका पूरा सहयोग प्रदीप यादव के साथ रहेगा.
क्या थी दोनों की बीच सियासी दुश्मनी की वजह
यहां याद रहे कि संजय यादव गोड्डा विधान सभा से वर्ष 2000 और 2009 में राजद के टिकट पर विधायक रहे हैं, यह वह दौर था, जब प्रदीप यादव भाजपा और झाविमो के साथ खड़े थें, दोनों की बीच की सियासी दुश्मनी उसी दौर की है. अब देखना होगा कि जब दो जानी दुश्मन एक साथ खड़े हैं, और दोनों के निशाने पर निशिकांत है, सियासी परिणाम क्या आता है, एक दूसरे का साथ निभाने की यह घोषणा महज दिखावा है या फिर अंदरखाने कोई दूसरा खेल भी है. क्योंकि कई बार सियासत में दावे कुछ और होते हैं और इरादा कुछ दूसरा होता है, यह बात सिर्फ संजय यादव पर लागू नहीं होती, फुरकान अंसारी की नाराजगी भी कितनी दूर हुई है, वह एक बड़ा सवाल है.
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