Ranchi-रांची लोकसभा सीट के लिए चेहरे की खोज में भटकती कांग्रेस की राह कुछ आसान सी होती दिखने लगी है. पूर्व भाजपा सांसद और अब तक पांच बार “कमल’ का परचम फहराने वाले रामटहल चौधरी ने अपने एक बयान से कांग्रेस की राह आसान करने की कोशिश की है. कुछ दिन पहले तक जदयू के टिकट से मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे चौधरी ने कहा है कि यदि उन्हे कांग्रेस की ओर से ऑफर प्रदान किया जाता है, तो एक बार फिर से अखाड़े में उतरने को तैयार है. इस हालत में अब गेंद कांग्रेस के पाले में है, फैसला कांग्रेस को करना है कि संजय सेठ के हाथों तीन लाख मतों से करारी शिकस्त खाने वाले सुबोधकांत पर दांव लगायेगी या फिर बदले सियासी समीकरण में इस “कुर्मी स्टालवार्ट” पर दांव आजमायेगी.
वर्ष 2019 में संजय सेठ के हाथों तीन लाख मतों से शिकस्त खा चुकें हैं सुबोधकांत
यहां ध्यान रहे कि 2019 में वर्तमान सांसद संजय सेठ और सुबोधकांत के बीच सियासी भिंड़त हुई थी और तब सुबोधकांत को करीबन तीन लाख मतों से शिकस्त खानी पड़ी थी. कहा जा सकता है कि यह संजय सेठ की एकतरफा जीत थी. इस मुकाबले में सुबोधकांत कहीं भी मुकाबले में खड़ा नजर नहीं आयें. इसके पहले 2014 में सुबोघकांत की भिंड़त रामटहल चौधरी के साथ हुई थी, तब भी सुबोधकांत को दो लाख मतों से मात खानी पड़ी थी. हालांकि वर्ष 1989, 2004 और 2009 में सुबोधकांत ने रांची में पंजा जरुर खिलाया था. लेकिन वर्ष 2019 में संजय सेठ से तीन लाख, 2014 में रामटहल चौधरी से करीबन 2 लाख 25 हजार और 2009 में भी रामटहल चौधरी के हाथों ही करीबन 13 लाख से शिकस्त खानी पड़ी थी. इस हालत में सुबोधकांत पर दांव लगा कांग्रेस कितना बड़ा उलटफेर करेगी, एक बड़ा सवाल है.
क्या है रांची लोकसभा का सामाजिक समीकरण
यहां ध्यान रहे कि रांची लोकसभा में कुल छह विधान सभा आता है. इसमें हटिया से भाजपा के नवीन जायसवाल, कांके से भाजपा के समरीलाल, रांची से भाजपा के सीपी सिंह, खिजरी से कांग्रेस का राजेश कच्छप, सिल्ली से आजसू के सुदेश महतो और इच्छागढ़ से झामुमो के सविता महतो विधायक हैं. यानि छह में से तीन पर भाजपा, दो पर झामुमो और एक पर आजसू का कब्जा है. यह तो हुई सियासी सूरत, लेकिन यदि सामाजिक समीकरण की बात करें तो सिल्ली, इच्छागढ़ कुर्मी जाति की बहुलता है.एक आंकड़े के अनुसार रांची लोकसभा में अनुसूचित जाति करीबन 5 फीसदी, अनुसूचित जाति की आबादी-28 फीसदी, मुस्लिम आबादी-15 फीसदी और कुर्मी 15 फीसदी है. इसी सामाजिक समीकरण के बूते ही रामटहल चौधरी पांच-पांच बार कामयाबी का झंडा गाड़ने में कामयाब रहें.
वर्ष 2019 में भाजपा ने रामटहल को किया था बेटिकट
पांच बार से कमल खिलाते रहे रामटहल चौधरी को संजय सेठ के हाथों बेटिकट होना पड़ा. बावजूद इसके रामटहल चौधरी ने चुनावी अखाड़े में उतरने का एलान कर दिया. हालांकि निर्दलीय उम्मीदवार के रुप में मैदान में कूदने के बाद राम टहल कोई बड़ा करिश्मा नहीं कर सकें. उस मोदी लहर में कुर्मी मतदाताओं ने कमल के साथ ही देना स्वीकार किया, लेकिन इस हार के बावजूद रामटहल चौधरी ने मैदान नहीं छोड़ा. इस बीच झारखंड की सियासत में भी बदलती नजर आने लगी है, और सबसे बड़ा बदलाव कुर्मी और आदिवासी मतदाताओं के बीच देखने को मिल रही है. आदिवासी समाज के बीच जहां पूर्व सीएम हेमंत की गिरफ्तारी एक बड़ा सियासी मुद्दा है, दूसरी ओर कुड़मी मतदाताओं की नाराजगी की वजह, जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा के द्वारा कुर्मी जाति के द्वारा जनजाति स्टेट्स की मांग को खारिज करना है. अर्जुन मुंडा के इस बयान के बाद पूरे झारखंड में कुर्मी मतदाताओं के बीच नाराजगी देखी जा रही है. हालांकि देखना होगा कि यह नाराजगी चुनावी अखाड़े में कितना रंग दिखलाता है, लेकिन विधान सभा में भाजपा का मुख्य सचेतक जेपी पटेल का इस्तीफा और कांग्रेस की सवारी का एलान और उधर कोल्हान में कुर्मी जाति का एक बड़ा चेहरा शैलेन्द्र महतो का पाला बदलने की खबर से भाजपा हलकान जरुर है. इस हालत में रांची लोकसभा में जहां 15 फीसदी आबादी कुर्मी जाति, 28 फीसदी आदिवासी और 15 फीसदी मुस्लिम आबादी है, रामटहल चौधरी पर दांव लगा कांग्रेस इस हारती हुई बाजी को पलट सकती है. दावा किया जाता है कि रामटहल चौधरी को सामने आने के बाद कुर्मी जाति का एक बड़ा हिस्सा एक बार फिर से कांग्रेस के साथ खड़ा हो सकता है. जबकि दूसरी ओर सुबोधकांत के साथ कोई बड़ा सामाजिक समूह साथ खड़ा नजर नहीं आता. कांग्रेस के लिए यह बेहतर होगा कि वह सुबोधकांत को राज्य सभा भेजने का आश्वासन देकर उनकी उर्जा और चेहरे का इस्तेमाल रामटहल चौधरी के ‘विजयश्री, के लिए करे. अब देखना होगा कि कांग्रेस रामटहल चौधरी के इस प्रस्ताव पर क्या फैसला लेती है? हालांकि दावा किया जाता है कि सही समय पर सही फैसला नहीं लेना ही कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या और कमजोरी है और उसकी वर्तमान सियासी पराभव का कारण भी.