Ranchi-2024 के महासमर की औपचारिक शुरुआत हो चुकी है. जंग-ए-एलान हो चुका है. चुनाव आयोग की अधिसूचना के अनुसार रांची संसदीय सीट पर 25 मई को मतगणना होगी, जबकि चार जून को इसका परिणाम सामने आयेगा. इस बीच भाजपा ने एक बार फिर से वर्तमान सांसद संजय सेठ पर अपना दांव लगाया है और यदि संजय सेठ इस बार भी कमल खिलाने में कामयाब रहते हैं, तो यह उनकी दूसरी पारी होगी. लेकिन इस जंगे-ए- एलान के बावजूद रांची में इंडिया गठबंधन कौन होगा? अब तक उलझा हुआ है, हालांकि इस बात के दावे किये जा रहे हैं कि इस बार भी कांग्रेस इस संसदीय सीट पर भाजपा के मुकाबले मैदान में उतरने जा रही है, लेकिन चेहरे को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है. और इस असमंजस के साथ ही यह सवाल भी खड़ा हो रहा है कि क्या एक बार फिर से रांची में संजय सेठ और सुबोधकांत की भिड़त देखने को मिलने वाली है और यदि मिलेगी, तो उसका सियासी परिणाम क्या होगा? क्या एक बार फिर से संजय सेठ इस चुनावी अखाड़े में सुबोधकांत को पटकनी देने में कामयाब होंगे, या फिर सुबोधकांत एक बार रिंग में वापसी का दम खम दिखलाने का साहस बटोर पायेंगे.
वर्ष 2019 में तीन लाख मतों से सुबोधकांत को खानी पड़ी थी शिकस्त
रिंग में वापसी का सवाल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है. क्योंकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में, जब इन दोनों सियासी पहलवानों के बीच भिंड़त हुई थी. तब सुबोधकांत को करीबन तीन लाख मतों के साथ शिकस्त खानी पड़ी थी. यानि कुल मिलाकर संजय सेठ की वह जीत एकतरफा थी. सुबोधकांत कहीं से भी मुकाबले में नजर नहीं आ रह थें. इस हालत में यह सवाल खड़ा होता है कि क्या सुबोधकांत इस बार बाजी पलटने का दम खम दिखलाने की तैयारी में हैं, और क्या यह संभव भी है? क्योंकि इसके पहले भी जब 2014 में सुबोघकांत की भिंड़त रामटहल चौधरी के साथ हुई थी, तब भी सुबोधकांत को करीबन दो लाख मतों से शिकस्त का सामना करना पड़ा था. हालांकि वर्ष 2009 में सुबोधकांत ने रामटहल चौधरी को चुनावी अखाड़े में मात जरुर दिया था, लेकिन तब उनकी जीत महज 13 हजार मत से हुई थी. इन आकड़ों से यह साफ है कि रांची में सुबोधकांत सहाय की पकड़ लगातार कमजोर पड़ती जा रही है, इस हालत में सुबोधकांत किस दम खम के साथ संजय सेठ को पटकनी देंगे एक बड़ा सवाल हैं.
सुबोधकांत नहीं, तो कांग्रेस का पास चेहरा कौन?
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि फिर कांग्रेस के पास दूसरा चेहरा कौन है? और इस सवाल के साथ ही कांग्रेस के सामने एक सन्नाटा सा पसरता नजर आता है. मुश्किल यह है कि पिछले दो दशक में कांग्रेस ने रांची में कोई दूसरा चेहरा खड़ा करने की कोशिश नहीं की, हर बार सुबोधकांत के सहारे ही बाजी पलटने की नाकाम कोशिश की जाती रही, शायद इस बार भी कांग्रेस अपनी उसी पंरपरा को दुहराने की तैयारी में हैं, हालांकि चेहरे में बदलाव की खबर भी सामने आ रही है, लेकिन सवाल सिर्फ चेहरा बदलने का नहीं है, सवाल उस चेहरे की मजबूती का है, और यह जमीनी साख और पकड़ सिर्फ चुनाव के वक्त सियासी बैटिंग करने से नहीं आती है, इसके लिए तो पूरे पांच वर्ष जमीन पर उतर कर पसीना बहाना होता है, इस हालत में देखना होगा कि सुबोधकांत सहाय की रिंग में वापसी होती है, या कांग्रेस के अंदर किसी दूसरे सियासी पहलवान की खोज पूरी हो गयी है.
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