TNPDESK-एक तरफ जहां पूर्व सीएम हेमंत की गिरफ्तारी के बाद झारखंड सियासत में इसके संभावित परिणामों पर आकलनों का दौर जारी है, अपने-अपने सियासी बिसात के हिसाब से नफा-नुकसान के दावे किये जा रहे हैं. जहां भाजपा इस बात की ताल ठोक रही है कि हेमंत की गिरफ्तारी के बाद झामुमो का पतन की शुरुआत होने वाली है, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे तो बाजप्ता अपने सोशल मीडिया पर इस बात की भविष्यवाणी कर रहे हैं कि 2024 का साल झामुमो कांग्रेस के लिए टुकड़े-टुकड़े में विखरने का साल है, जबकि दूसरी ओर झामुमो को हेमंत की गिरफ्तारी के बाद पूरे झारखंड में आदिवासी-मूलवासियों के बीच एक तूफान खड़ा होता नजर आता है. उसे इस बात का यकीन है कि आदिवासियों-मूलवासियों में पनप रहे इस गुस्से और आग में अब भाजपा के हिस्से कुछ भी आने वाला नहीं है. इस बीच इन परस्पर विरोधी दावों से आगे निकल सियासी दलों के द्वारा 2024 के चुनावी समीकरण को साधने की तैयारी भी की जा रही है. बेहद सधे अंदाज में अपने-अपने महारथियों की जमीनी ताकत का आकलन और बदले सियासी हालात में अपने-अपने सामाजिक समीकरणों को धारदार बनाने की कवायद भी की जा रही है.
घूरन राम की पलटी के सियासी मायने
कुछ यही कहानी पलामू संसदीय सीट की है. वर्ष 2006 में पलामू से लालटेन जलाने वाले घूरन राम ने बदले सियासी हालात में कमल थामने का एलान कर दिया है. और इसके साथ ही कमल की सवारी कर दो दो बार लोकसभा पहुंच चुके पूर्व सांसद बीडी राम के सामने सियासी संकट खड़ा होता भी दिखने लगा है. क्योंकि एन लोकसभा चुनाव के पहले जिस अंदाज में घूरन राम का भाजपा में इंट्री हुई है, उसके बाद बीडी राम को इस बात की आशंका सताने लगी है कि इस बार उनके लिए कमल की सवारी आसान नहीं है. और यह निराशा सिर्फ बीडी राम की नहीं है, निराश तो वर्ष 1996,1998 और 1999 में लगातार इस सीट से भाजपा का कमल खिलाने वाले वृजमोहन राम भी हैं.
बृजमोहन राम को बड़ा झटका
दरअसल खबर यह है कि इस बार वृजमोहन राम को इस बात का विश्वास दिलाया गया था कि बीडी राम को लेकर पलामू में जो एंटी इनकम्बेंसी देखा जा रहा है, उसकी काट में इस बार पार्टी उनके चेहरे पर विचार कर रही है. और इस आश्वासन के बाद बृजमोहन राम अपनी गतिविधियों को तेज भी कर चुके थें, एक बार फिर से क्षेत्र भ्रमण की शुरुआत हो चुकी थी, लेकिन एन वक्त पर घूरन राम की पलटी ने पूरा खेल बिगाड़ दिया, इस हालत में उनके सामने चुनाती इस बात की है, अपनी डूबती कश्ती को किनारा देने के लिए किसका सहारा लिया जाय.
कामेश्वर बैठा के हाथों में आ सकता है लालटेन
क्योंकि मजबूत सियासी पहलवान की खोज में सिर्फ भाजपा ही नहीं है, अंदरखाने राजद भी इस खोज में लगा है और दावा तो यह किया जाता है कि 2009, 2014 और 2019 में लगातार अवसर देने के बावजूद भी घुरन राम पलामू में लालटेन जलाने में जब नाकामयाब रहें तो राजद ने घुरन राम से किनारा करने का मन बना लिया था और शायद इसी मंशा के साथ कामेश्वर बैठा का झामुमो से राजद में इंट्री करवायी गयी थी. स्वाभाविक है कि उनकी नजर पलामू संसदीय सीट के लिए राजद के टिकट पर होगी. ध्यान रहे कि पलामू संसदीय सीट पर विशेष नजर रखने वाले सियासी जानकारों का मानना है कि इंडिया गठबंधन में यह सीट सबसे अधिक मुफीद राजद के लिए ही रहेगी. 2004 में मनोज कुमार तो 2006 में घूरन राम को मैदान में उतार कर राजद भाजपा के इस किले को पहले भी ध्वस्त कर चुकी है.
कामेश्वर की इंट्री से राधा कृष्ण किशोर को भी लग सकता है झटका
ऐसा भी नहीं है कि घुरन राम की इंट्री से भाजपा के अंदर ही बेचैनी बढ़ेगी, यदि इस बार राजद कामेश्वर बैठा पर दांव लगाने का फैसला करती है तो यह छतरपुर विधान सभा से पांच पांच विधान सभा पहुंच चुके राधा कृष्ण किशोर के लिए भी बड़ा सियासी सदमा होगा. यहां यह जानना भी दिलचस्प होगा कि राधा कृष्ण किशोर के लिए राजद उनके सियासी कैरियर की पांचवीं पार्टी है. राजद कोटे से मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने उन्हे पलामू संसदीय सीट का ऑफर देकर ही लालटेन थमाया था,जबकि खुद सत्यानंद भोक्ता की नजर चतरा सीट पर लगी हुई है. जहां तक कांग्रेस की बात है तो अब तक छह बार वह इस संसदीय सीट पर अपना कमाल दिखा चुकी है. लेकिन जानकारों का आकलन है कि आज के दिन कांग्रेस के पास वह हैसियत बची नहीं है, पलामू के किले को ध्वस्त करने के लिए उसके पास आज अनुसूचित जाति से आने वाला कोई दमदार चेहरा नहीं है, हालांकि कांग्रेस के पास के.एन त्रिपाठी जैसे जुझारु नेता आज भी मौजूद हैं, लेकिन यहां तो सवाल अनुसूचित जाति के चेहरे का है, और वह भी स्थानीय और यहीं से बाजी कांग्रेस के हाथ से बाहर जाती दिखने लगती है. इस हालत में यह दावा किया जा रहा है कि भाजपा के इस किले में बैटिंग के लिए इंडिया गठबंधन की ओर से राजद को मौका दिया जा सकता है और यदि राजद के लालटेन को कांग्रेस के के.एन त्रिपाठी, झामुमो के दूसरे नेताओं के द्वारा केरोसीन भरा जाता है तो मुकाबला बेहद दिलचस्प हो सकता है, और बहुत संभव है कि यह सीट एक फिर से इंडिया गठबंधन के खाते में चला भी जाये.
जातीय जनगणना के आंकड़ों का पड़ सकता है पलामू पर असर
इसके पक्ष में तर्क यह दिया जा रहा है कि जिस प्रकार से बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किये गयें हैं, उसका असर पलामू की राजनीति में पड़ना तय है. वैसे ही पलामू में राजद का मजबूत जनाधार रहा हैं, यदि उसी जनाधार को कांग्रेस और झामुमो के द्वारा मजबूती प्रदान कर दी जाती है तो भाजपा के इस किले को ध्वस्त किया जा सकता है, खासकर तब जब खुद भाजपा के अन्दर भी कई गुट बताये जा रहे हैं. और दावा किया जा रहा है कि 2014 और 2019 में लगातार जीत के बाद भाजपा के खिलाफ यहां एक मजबूत एंटी इनकम्बेंसी की झलक देखने को मिल रही है, हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि यह एंटी इनकम्बेंसी भाजपा से ज्यादा वर्तमान सांसद बीडी राम के खिलाफ है और इसी एंटी इनकम्बेंसी की काट घुरन राम के चेहरे में ढूंढने की कोशिश की जा रही है. लेकिन कुल मिलाकर स्थिति यही है कि राजद में भी इस बार घुरन राम के हाथ लालटेन नहीं आने वाला था, और इसी सियासी विवशता में घुरन राम ने कमल की सवारी करने का फैसला लिया.
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