Ranchi- “‘ख़ालिस क़यास है. जल्द होने की संभावना है. झारखंड में सत्ता बदलेगी तो नवागन्तुक के लिए गिरीडीह ज़िला की गाण्डे विधानसभा सीट ख़ाली होगी. गाण्डे वाले सज्जन मित्र राज्य सभा को सुशोभित करेंगे. ईश्वर से प्रार्थना कि नव वर्ष में जो भी हो राज्य, जनता, राजनीति के लिए शुभ हो. सभी को शुभकामनाएँ.” 31 दिसम्बर की खुमारी के साथ ही जब सुबह सुबह सोशल मीडिया पर नजर पड़ी तो उलझने बढ़ती नजर आयी, समझ में नहीं आया कि सरयू राय किस ओर इशारा कर रहें हैं, और किस बदलाव का संकेत दे रहे हैं. और इसके साथ ही कई सवाल उमड़ने-घुमड़ने लगें. पहला सवाल तो यही था कि क्या गाडेंय विधायक और पुराने कांग्रेसी झामुमो को गच्चा देने की तैयारी में हैं और यदि हैं तो वह कौन सी पार्टी है जो उनके लिए फूल माला लेकर तैयार बैठी है. लेकिन कुछ देर बाद ही तमाम मीडिया चैनलों में झामुमो विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे की खबर तैरने लगी.
किसके लिए सरफराज अहमद ने खाली की सीट
लेकिन सवाल अभी भी खड़ा था कि वह नवागन्तुक कौन है, जिसके लिए सरफराज अहमद के द्वारा सीट खाली करने लिए इस्तीफे के दावे किये जा रहे हैं. और क्या यह सब कुछ झामुमो की सहमति से किया जा रहा है, क्या इसकी रणनीति कांग्रेस झामुमो और महागठबंध के तमाम घटक दलों के साथ मिल बैठ कर किया जा रहा है.
अभी इस प्रश्न का जवाब की तलाश जारी ही थी कि उसी सोशल मीडिया पर हर बार की तरह निशिकांत दुबे का अवतरण हुआ, और इसके साथ ही उन्होंने दावा पेश कर दिया कि “मुम्बई हाईकोर्ट के काटोल विधानसभा के निर्णय के अनुसार अब गांडेय में चुनाव नहीं हो सकता. काटोल विधानसभा जब महाराष्ट्र में ख़ाली हुआ तब विधानसभा का कार्यकाल 1 साल 50 दिन ख़ाली था.
लेकिन अभी भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल रहा था कि वह नवागन्तुक कौन है, जिसके लिए सरयू राय सीट खाली करवाने की भविष्यवाणी कर रहे हैं, और इधर निशिकांत दूबे इस बात का दावा पेश कर रहे हैं कि कोर्ट के फैसले के अनुसार इस सीट पर चुनाव नहीं करवाया जा सकता, लेकिन इसका जवाब निशिकांत दूबे के दूसरे ही पोस्ट से मिल गया, जब उन्होंने लिखा कि “राज्यपाल महोदय यदि कल्पना सोरेन जी कहीं से विधायक नहीं बन सकती हैं तो मुख्यमंत्री कैसे बनेंगी? कांग्रेस झारखंड को चारागाह बनाने की कोशिश कर रही है. राज्यपाल महोदय को को क़ानूनी सलाह लेना चाहिए, झारखंड विधानसभा का गठन 27 दिसंबर 2019 को हुआ. सरफराज अहमद का इस्तीफ़ा 31 दिसंबर को हुआ. एक साल से कम समय में चुनाव नहीं हो सकता”
सरफराज अहमद के इस्तीफे को सीएम हेमंत के इस्तीफे से जोड़कर देखने की कोशिश
इस पोस्ट से इतना तो साफ हो गया कि सरफराज अहमद के इस्तीफे को हेमंत सोरेन के इस्तीफे से जोड़ कर देखने-समझने की कोशिश की जा रही है, हालांकि इसमें कितनी सच्चाई और कितनी चासनी, अभी इसका खुलासा नहीं हुआ है, लेकिन जिस तरीके से ईडी समन दर समन भेज कर हेमंत सोरेन को घेरने की कवायद कर रही है, और अपने सातवें समन में तो इस बात को भी रेखांकित कर दिया गया कि यह अंतिम समन है, और इसी के आधार पर सीएम हेमंत की गिरफ्तारी के दावे किये जा रहे हैं. हालांकि जब लोकसभा का मैदान सज चुका है, सियासी पहलवानों की मैदान में उतारने की सूची तैयार की जा चुकी है, उस हालत में सीएम हेमंत की गिरफ्तारी भाजपा के लिए सियासी रुप से कितना मुफीद होगा, एक बड़ा सवाल है,
खतरे को भांप रही है झामुमो
लेकिन इतना तय है कि झामुमो इस खतरे को भांप रही है, और उसी के अनुरुप अपनी सियासी चाल बिछा रही है, ताकि यदि गिरफ्तारी की नौबत आये भी तो झारखंड के पास के चेहरा हो, जिस चेहरे पर दांव लगाकर झामुमो मैदान में उतर भाजपा को सियासी शिकस्त देने की कवायद करे. जहां तक निशिकांत दूबे के इस दावे का प्रश्न है कि मुम्बई हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार तत्काल गांडेय विधान सभा में चुनाव नहीं करवाया जा सकता, तो इसका फैसला तो कानूनविद करेंगे और निश्चित रुप से झामुमो इस सवाल पर भी विचार कर रही होगी, और इसका काट भी खोजा भी जा रहा होगा.
नव वर्ष की खुमारियों के बीच झारखंड की सियासत के बदलते रंग
लेकिन इतना साफ है कि जब पूरा देश नव वर्ष की खुमारियों में डूबा है, झारखंड की सियासत अपना रंग दिखला रही है, सियासी चाल बिछाये जा रहे हैं, और काट का प्रतिकाट ढूढ़ा जा रहा है, और यदि झामुमो कल्पना सोरेन को अपना चेहरा बनाती है, तो आदिवासी-मूलवासी मतों के साथ ही राज्य की आधी आबादी में भी एक बड़ा सकारात्मक संदेश जायेगा. और इसका नुकसान भाजपा को झेलना पड़ सकता है.
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