Ranchi-चंपाई सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद पिछले चार दिनों से कांग्रेस के नौ विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए है, उनका आरोप है कि मंत्रिमंडल विस्तार में पुराने मंत्रियों को एक बार फिर से ताजपोशी कर उनकी भावनाओं को आहत किया गया है और इसी आहत भावना का इलाज खोजने के लिए उनके द्वारा दिल्ली में बैठकर आलाकमान से हस्तक्षेप की गुहार लगायी जा रही है. उनका दावा है कि जब तक मांगे नहीं मानी जाती, वे ना तो राजधानी रांची लौटेंगे और ना ही 23 फरवरी से शुरु हो रहे बजट सत्र का हिस्सा बनेंगे. और यदि वाकई ऐसा होता है तो बजट सत्र के साथ चंपाई सरकार पर संकट का बादल मंडरा सकता है. लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? क्या वास्तव में चंपाई सराकर संकट में फंसने जा रही है? और यदि यह संकट इतना गहरा है, तो अब तक इसका समाधान ढूंढ़ने की कोशिश कोई गंभीर पहल होती नजर क्यों नहीं आयी या फिर असंतोष कोई गंभीर मसला है ही नहीं. और यही कारण है कि सीएम चंपाई सोरेन से लेकर कांग्रेस आलाकमान तक इस कथित संकट के प्रति कोई गंभीर रुख दिखलाता नहीं दिख रहा. क्योंकि यदि यह वाकई गंभीर मुद्दा होता तो अब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे से लेकर सोनिया गांधी की इंट्री हो गयी होती. तो फिर इस नाराजगी की असली वजह क्या है? सवाल तो यह भी खड़ा होता है कि क्या इन नाराज विधायक इस स्थिति में हैं कि वह अपनी ओर से चार नाम को मंत्री बनाने की लिए आगे करें.
नाराज विधायकों में किसी भी चार नाम पर सहमति का अभाव
क्योंकि यह तो इन विधायकों को भी पता है कि मंत्री को किन्ही चार को ही बनना है, और यही आकर इनका मामला फंसता नजर आता है.
दावा किया जाता है कि ये सारे विधायक पुराने चेहरे को हटाने की मांग तो जरुर रख रहे हैं, लेकिन जब इनसे वैकल्पिक चेहरे की मांग की जाती है, तो हर विधायक अपना सिर उंचा करता नजर आता है, यानि ये विधायक अपने बीच के विधायकों का नाम भी काटता नजर आते हैं, कोई भी किसी और के नाम पर सहमत होने को तैयार नहीं है, यहां याद रहे कि मंत्रिमंडल विस्तार के पहले ही बरही विधायक अकेला यादव ने मीडिया को बयान दिया था कि चुंकी वह यादव हैं, इसलिए उनका मंत्री बनना बेहद जरुरी है, और यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह किस मुंह के अपने कार्यकर्ताओं के बीच जायेंगे, ठीक यही दावा जामताड़ा विधायक इरफान अंसारी की ओर से भी आया था, इरफान का दावा था कि वह झारखंड में सबसे मजबूत अल्पसंख्यक चेहरा है, डॉक्टर की डिग्री भी उनके पास है, बावजूद उनके हाशिये पर रखा जा रहा है, रही बात दीपिका पांडेय सिंह की उनकी लड़ाई मंत्री बनने से ज्यादा गोड़्डा संसदीय सीट से इस बार टिकट की जुगाड़ की है, ठीक यही हालत पूर्णिमा निरज सिंह की भी है, दावा किया जाता है कि उनकी चाहत मंत्री बनने से ज्यादा धनबाद लोकसभा सीट से टिकट की जुगाड़ की है, इधर खुद इरफान भी गोड़्डा लोकसभा क्षेत्र से अपने पिता फुरकान अंसारी के लिए टिकट की जुगाड़ में है, और यहीं से इनका सारा प्रेशर पॉलिटिक्स फुस्स होता नजर आता है. और इनके बीच का यही मतभेद आलाकमान को राहत प्रदान किये हुए है. साथ ही सीएम चंपाई सोरेन भी इनकी कमजोर नस को समझ चुके हैं, कि इनमें हर चेहरा मंत्री बनने को बेचैन है, और कोई भी दूसरे के अपनी कुर्बानी देने को तैयार नहीं है.
बजट सत्र में क्या होने वाला है
इस हालत में सवाल खड़ा होता है कि आखिर बजट सत्र के पहले क्या होने वाला है? तो जो खबर आ रही है कि उसके अनुसार जल्द इन विधायकों का कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जून खड़गे और सोनिया गांधी से एक औपचारिक मुलाकात होगी, चाय-पानी-नास्ते का दौर होगा, लेकिन बातचीत का फूरा फोकस आने वाले संसदीय चुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर होगा, बहुत हुआ तो किसी एक मंत्री को बदला जा सकता है, बाकि सभी पुरानी ही चलते रहेंगे. क्योंकि आलकमान इन्ही नाराज विधायको से चार नाम की मांग कर इनकी पूरी सियासत की हवा निकाल दी है, ना तो ये नाराज विधायक किन्ही चार नाम पर सहमत होंगे और ना ही कोई बड़ा सियासी उलटफेर होगा, लेकिन इतना जरुर होगा कि दूसरे मुद्दों पर जो इनकी नाराजगी है, उसको कम करने की कोशिश की जायेगी, लेकिन जहां तक विधायक इरफान अपने पिता के लिए गोड़्डा सीट की बैटिंग है, वह पूरी तरह से फंसता नजर आ रहा है.
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