Ranchi-पूर्व सीएम हेमंत की गिरफ्तारी झारखंडी इतिहास का वह अध्याय है, जो आने वाली पीढ़ियों को मोटे-मोटे अक्षरों में दर्ज होकर पढ़ने को मिलेगा. जहां एक तरफ वर्चस्ववादी सामाजिक- राजनीतिक समूहों के द्वारा इसे कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ एक एतिहासिक कार्रवाई के रुप में प्रस्तुत करने की कोशिश की जाएगी, तो दूसरी ओर वंचित और संघर्षशील समूहों के द्वारा इसे मोदी सत्ता का एक और दमनकारी कार्रवाई के रूप में चिन्हित किया जायेगा. यह बतलाने की कोशिश की जाएगी कि जब इस दमनकारी सत्ता के सामने सारे कथित रणबांकुरों ने पीठ दिखाते हुए मैदान छोड़ने का एलान कर दिया था, चाहे वह “पलटू चाचा” के रूप में तंज कसे जाते रहे नीतीश कुमार हो या फिर “चौधरी का खून” जयंत या फिर देश के दूसरे हिस्सों में ईडी और सीबीआई के डर से मैदान छोड़ते दूसरे सियासी सुरमा, तब एक बार फिर से इसी बिरसा और तिलका की धरती से एक और क्रांतिवीर सामने आया था, जिसने बगैर खिड़की-दरवाजे के एक 10 बाई 10 के सीलन भरे कमरे में कैद होना तो स्वीकार किया, लेकिन झारखंडियों के सपनों पर पहरेदारी से इंकार कर दिया. जिसने जल जंगल और जमीन की लड़ाई से पीछे हटना स्वीकार नहीं किया, लोकसभा की महज 14 सीटों के कारण जिस झारखंड को विपक्षी दलों के द्वारा भी कोई खास भाव नहीं दिया जाता था, लोकतंत्र बचाने की लडाई को उसी झारखंड से सबसे मजबूती के साथ लड़ा गया.
छोटे हेमंत की चुनौतियां
लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस कथित लोकतंत्र के योद्धा सिर्फ इकलौते हेमंत है, जरा इस घुटन-टूटन और खौफ के मंजर में हेमंत के उन छोटे-छोटे बेटों को भी याद कीजिए. जल जंगल और जमीन की लड़ाई के हुंकार लगाते जिसके पिता को, उस भूईंहरी जमीन को लेकर कैद कर रखा गया हो, जिस भूईहारी जमीन की खरीद बिक्री नहीं हो सकती, यानि आज भी वह जमीन अपने मूल रैयत के नाम है. जरा याद कीजिए, जम्मू काश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मालिक को, राज्यपाल पद से अपनी विदाई के बाद सत्यपाल मालिक ने यह दावा कर सियासी गलियारे में भूचाल खड़ा कर दिया था कि राज्यपाल रहते एक फाइल पर साइन करने के लिए उन्हे करोड़ों का ऑफर दिया जा रहा था. और ऑफर देने वालों में संघ परिवार के बड़े चेहरे थें. लेकिन ईडी और सीबीआई की रडार पर आज संघ परिवार के भ्रष्टाचारी नहीं, सत्यपाल मल्लिक है, सीबीआई की रेड उनके आवास पर चल रही है, और इसी पसमंजर में हेमंत पर लगे तमाम आरोपों को देखने समझने की एक कोशिश की जा सकती है. पूर्व हेमंत पर लगे सारे आरोपों को देखने समझने का, यह भी एक सियासी नजरिया हो सकता है. लेकिन हम यहां बात कर रहे हैं उस छोटे हेमंत की, उसके अंदर की घुटन और टूटन की और बावजूद इसके उसके हौसले की. उसके चेहरे पर दूर दूर तक कोई शिकन नहीं है. जैसे कि दिशोम गुरु का संघर्ष और उनका बगवती तेगर हेमंत के होते हुए उसकी नसों में आ उतरा हो, यही कारण है कि वह इन सब परेशानियों से बेफिक्र, पूरी ताकत के साथ अपने वार्षिक एग्जाम में हर सवाल पर चौका लगाने की कोशिश कर रहा है. जिस बेटे का बाप जेल के सींखचों में कैद हो, और बाप भी सामान्य नहीं कल तक जो किसी राज्य का मुखिया हो, जिसके एक इशारे पर सब कुछ बदल जाता हो, आज वह शक्तिशाली बाप एक भुंईहरी जमीन के टुड़के के लिए कैदखाने में कैद है और इस हालत में भी बेटा के चेहरे पर शिकन नहीं होकर, इन झंझवातों से जुझने का बहता जज्बा हो, तो इस क्या कहा जाय.
खत्म होने का नाम नहीं ले रही है सोरेन परिवारी की दुश्वारियां
लेकिन सोरेन परिवार की दुश्वारियां यहां ही खत्म नहीं हो रही. एक तरफ हेमंत तहखाने से निकल बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारा बंद होकर अपनी सियासी लड़ाई लड़ रह हैं, तो दूसरी ओर अस्सी पार वयोवृद्ध पिता और झारखंड के दिशोम गुरु के रुप में सम्मानित शिबू सोरेन एक और मुसीबत में फंसते दिख रहे हैं, दिल्ली हाईकोर्ट ने आय से अधिक मामले में उनके खिलाफ लोकपाल में चल रही एकल खंडपीठ की कार्यवाही पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है, इधर मां रुपी सोरेन का स्वास्थ्य भी ठीक ठाक नहीं है. कहा जा सकता है कि आज पूरे परिवार की एकमात्र सुरक्षित कड़ी कल्पना सोरेन है, जिनके कंधों पर आज इस पूरे परिवार को इस सियासी बंवडर से बाहर निकालने की ना सिर्फ जिम्मेवारी है, बल्कि झामुमो का चेहरा बन कर लोकसभा की 14 सीटों पर विजय पताका फहराने का दायित्व भी है.
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