Ranchi-झारखंड की लोकसभा की कुल 14 सीटों में 11 पर प्रत्याशियों का एलान, लेकिन धनबाद- कोडरमा सीट को होल्ड पर रखे जाने पर अब सियासत की शुरुआत होती दिख रही है. जयराम समर्थक का दावा है कि धनबाद गिरिडीह में टाईगर जयराम के खौफ के कारण ही भाजपा को यह सीट होल्ड पर रखने को मजबूर होना पड़ा, टाईगर जयराम के दहाड़ के सामने भाजपा को अपने सारे चेहरे में एक थकान नजर आ रही है. एक तरफ पीएन सिंह से महज एक वर्ष छोटा बीडी राम को टिकट थमा दिया जाता है, लेकिन पीएन सिंह को बूढ़ा-बुजूर्ग बता कर मैदान से हटाने की नौबत आ जाती है. लेकिन चेहरा चाहे जो हो, धनबाद गिरिडीह में भाजपा की हार तय है. धनबाद और गिरिडीह की जनता इस बार किसी भी बाहरी को टिकट नहीं देने जा रही. झारखंड का गठन और इसके निर्माण में जो अनिगिनत शहादतें दी गई है. निर्मल दा से लेकर दूसरे झारखंडियों ने जो कुर्बानी दी है. उसका मकसद गैरझारखंडियों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व देना नहीं था. किसी भी सूरत में किसी भी गैरझारखंडी को इस बार संसद पहुंचने नहीं दिया जायेगा. गिरिडीह तो फतह करेंगे ही, इसके साथ भाजपा के सबसे मजबूत किले में सुमार धनबाद में भी अपना परचम लहरायेंगे.
गिरिडीह के बजाय इस बार हजारीबाग सीट पर थी आजसू की नजर
यहां ध्यान रहे कि गिरिडीह सीट पर वर्तमान में आजसू के सांसद चन्द्र प्रकाश चौधरी सांसद है. लेकिन खबर है कि आजसू इस बार सीट बदलने का दवाब बना रही थी. उसकी कोशिश गिरिडीह के बजाय हजारीबाग को अपने पाले में लाने की थी, लेकिन भाजपा ने बदलाव से इंकार कर दिया. हालांकि एक खबर यह भी है कि इस बार भाजपा झारखंड की सभी 14 सीटों से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. इसके बदले में आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को राज्यसभा भेजा जा सकता है. हालांकि आजसू के द्वारा अभी इस खबर की पुष्टि नहीं की जा रही है. बावजूद इसके गिरिडीह को लेकर आजसू सशंय में जरुर दिख रही है. दावा किया जाता है कि आजसू जयराम के इस लहर का सामना करने को तैयार नहीं है. खुद चन्द्र प्रकाश चौधरी की कोशिश भी संसद जाने के बजाय इस बार अपना फोकस रामगढ़ विधान सभा पर करने की है. इस हालत में गिरिडीह से आजसू का उम्मीदवार कौन होगा? एक बड़ा सवाल है, दूसरी ओर धनबाद संसदीय सीट पर लगातार तीन पर जीत का परचम फहराते रहे और हर बार जीत का एक नया कीर्तिमान स्थापित करते रहे पीएन सिंह को भी भाजपा किनारा करने की तैयारी में है. उसकी रणनीति पीएन सिंह के बजाय किसी नये चेहरे को सामने लाने की है, ताकि जयराम की इस आंधी का मुकाबला किया जा सके.
टाइगर जयराम का होम टाउन है धनबाद
यहां याद रहे कि धनबाद टाईगर जयराम को होम टाउन है. हालांकि उनका लोकसभा क्षेत्र गिरिडीह है, फिलहाल धनबाद संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले बोकरो, चंदनक्यारी, सिंदरी, निरसा, धनबाद और झऱिया विधान सभा में से पांच पर भाजपा का कब्जा, जबकि छठी सीट कांग्रेस के पूर्णिमा नीरज सिंह के पास है. यदि सामाजिक समीकरणों को समझने की कोशिश करे तो धनबाद संसदीय सीट में मुस्लिम-15 फीसदी, अनुसूचित जाति-8.8 फीसदी, आदिवासी-14 फीसदी, कुर्मी महतो- 8 फीसदी के साथ ही एक बड़ी आबादी पिछड़ी जातियों की भी है. दलित-आदिवासी, पिछड़ा और अल्पसंख्यकों की इस आबादी के बावजूद भी यहां से लगातार अगड़ी जातियों के उम्मीदवार परचम लहराते रह हैं. अगड़ी जातियों में भी सबसे ज्यादा प्रभुत्व राजपूत जाति का रहा है. जिसकी आबादी महज 8 फीसदी की है और इसी सामाजिक तस्वीर के बूते टाईगर जयराम इस बार नयी सियासी इबारत लिखने की चुनौती पेश कर रहे हैं. साफ है कि टाईगर जयराम की नजर मुस्लिम मतदाताओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के साथ ही पिछड़ी जाति के मतदाताओं पर है और यदि टाईगर जयराम की यह कोशिश सफल होती है तो भाजपा को पहली बार धनबाद में मुश्किल हालात का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि भाजपा के लिए राहत की एक बात जरुर है कि इस लोकसभा में शहरी मतदाताओं की संख्या करीबन 59 फीसदी की है. जिस शहरी मतदाताओं के बीच भाजपा की मजबूत पकड़ मानी जाती है. धनबाद संसदीय सीट पर उसकी लगातार जीत का परचम फहराने का एक प्रमुख कारण भी यही है. लेकिन यदि यही शहरी मतदाता जयराम की आंधी के बीच भाजपा का साथ छोड़ दें तो मुश्किलें खड़ी हो सकती है और इसकी संभावना इसलिए भी बलवती होती दिख रही है कि क्योंकि जिस भाषा आन्दोलन की सवारी कर टाईगर जयराम यहां तक पहुंचे हैं, उसकी शुरुआत इसी धनबाद-बोकारो की सरजमीन से हुई थी.
भाषा आन्दोलन का गढ़ रहा है धनबाद
जब स्थानीय भाषाओं की उपेक्षा कर भोजपुरी, मगही और दूसरी बाहरी भाषाओं को पाठयक्रम का हिस्सा घोषित किया गया. पूरे झारखंड में एक आग सी फैलती दिखी, जगह जगह विरोध के स्वर तेज होने लगे. तब बोकारो के तेलमच्चो से चंदनकियारी तक लाखों की भीड़ के साथ 50 किमी की लंबी मानव श्रृंखला का निर्माम कर टाईगर जयराम ने एक इतिहास रचा था. "बहारी भासा नेई चलतो", की घूम में सारी सियासी पार्टियां अपनी जमीन खोती नजर आयी थी. इसी भाषा आन्दोलन की पीठ पर सवार होकर टाईगर जयराम झारखंडी की सियासत में ध्रुवतारा की तरह सामने आये थें. उनकी लोकप्रियता की आंधी में सारे सियासी चेहरे अपना दम खम खोते नजर आते थें. जैसे ही यह खबर धनबाद-गिरिडीह से निकल राजधानी तक पहुंची जयराम का नाम सुर्खियों में छा चुका था. अब वही जयराम इस बार सियासत के दंगल में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इस राजनीतिक पसमंजर में यह देखना दिलचस्प होगा कि जयराम की वह लोकप्रियता और साथ खड़ा वह जनसैलाब आज भी साथ देता है या फिर भाषा आन्दोलन से बाहर निकल सियासी मैदान में कूदते ही समर्थक अपनी-अपनी परंपरागत पार्टियों का रुख करते हैं. हालांकि परिणाम चाहे जो हो, लेकिन इतना तय है कि यदि जयराम एक मजबूत चुनौती देने में कामयाब रहता है, तो इसका साफ असर विधान सभा चुनाव में देखने को मिलेगा, और उस हालत में धनबाद-गिरिडीह की सियासी तस्वीर बदलने की भविष्यवाणी की जा सकती है, फिलहाल जयराम समर्थकों का उत्साह और उमंग सातवें आसमान है.
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