TNPDESK-पांच राज्यों के चुनावी परिणाम के बाद ही 2024 के लोकसभा का आगाज होता दिखने लगा है. एक तरफ काग्रेंस जो जीत के आत्मविश्वास के लबरेज इंडिया गठबंधन से भी एक सीमा तक दूरी बनाती दिख रही थी, या इन पांच राज्यों में अपने बूत सरकार बनाने के बाद अपनी शर्तों के आधार पर इंडिया गठंबधन हांकने की तैयारी करती दिख रही थी, हार का रसास्वाद कर एक बार फिर लालू- नीतीश शरणागत होती नजर आ रही है, और तीन दिसम्बर को ही अपने गिरते विकेट के बीच ही 6 दिसम्बर को इंडिया गठबंधन की बैठक बुलाने का एलान कर दिया, हालांकि उस बैठक को फिलहाल टाल दिया गया है, माना जा रहा है कि इंडिया गठबंधन अब उसे बिहार, यूपी और झारखंड में उतनी सीटें नहीं देने जा रही है, जिसकी आशा इसके पहले कांग्रेस कर सकता था.
धनबाद से अपने सियासी पारी का आगाज करने की तैयारी में जयराम
लेकिन कांग्रेस भाजपा के इन रणनीतियों से दूर झारखंडी भाषा-खतियानी संघर्ष समिति के बनैर तले टाईगर जयराम इस बार धनबाद संसदीय सीट से दिल्ली का सफर करने की योजना बना रहे हैं. हालांकि धनबाद के साथ ही उनकी नजर गिरिडीह संसदीय सीट पर भी लगी हुई है. सूत्रों का दावा है कि इस बार झारखंडी भाषा खतियानी समिति गिरिडीह, धनबाद के साथ ही हजारीबाग में भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच के मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की तैयारी में है. हजारीबाग से लगभग संजय मेहता के नाम को अंतिम रुप दिया जा चुका है, तो गिरिडीह और धनबाद संसदीय सीट पर जयराम की नजर लगी हुई है.
गैर झारखंडी भीड़ में बदल चुका है धनबाद का सामाजिक संरचना
यहां याद रहे कि टाईगर जयराम मूल रुप से धनबाद जिले के मानटांड़ तोंपचांची के रहने वाले हैं, और यही कारण है कि समर्थकों के द्वारा जयराम का धनबाद से चुनावी जंग में उतरने के दावे किया जा रहे हैं. हालांकि अभी तक इसकी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है. लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या टाईगर जयराम के लिए भाजपा के इस किले को भेदना आसान होगा! खुद जयराम यह बात को स्वीकार करते रहे हैं कि गैर झारखंडियों की उमड़ी भीड़ में कोयला नगरी का सामाजिक संरचना पूरी तरह से बदल चुका है. आज आदिवासी-मूलवासी अपनी ही जमीन पर हाशिये पर खड़े रहने को अभिशप्त हो चुके हैं. सियासत हो या सामाजिक जीवन, खनन कंपनियों के कामगार हों या रोजगार के दूसरे साधन, सब पर बाहरी आबादी का कब्जा है, और गैर झारखंडियों की यही भीड़ भाजपा की सबसे बड़ी ताकत भी है.
इसके साथ ही एक तरफ जहां धनबाद झारखंड की आर्थिक राजधानी के रुप में सामने आया है, जिसकी आर्थिक सत्ता से झारखंड की सियासात की धार तय होती है. और यही कारण है कि पर्दे के पीछे हर सियासी दल आर्थिक राजधानी में मची लूट का हिस्सेदार बनना चाहता है. और आर्थिक राजधानी में कुख्यात गैंगस्टरों की मौजूदगी के पीछे की मुख्य वजह भी यही मानी जाती है. ये गैंगस्टर बहुत हद तक झारखंडी सियासत को प्रभावित करते रहे हैं.
क्या इस चुनौती का सामना करने की स्थिति में हैं जयराम
लेकिन, क्या जयराम क्या इन तमाम चुनौतियों का सामना करने की स्थिति में है. क्या वह बाहरी-भीतरी के इस संघर्ष को आवाज देकर अपना सियासी आगाज करने का सामार्थ्य रखते हैं. उनका दावा है कि धनबाद शहर के बाहर निकलते ही आदिवासी मूलवासियों की बहुलता है, तो क्या यह माना जाय की पूरा आदिवासी मूलवासी समाज टाईगर जयराम के साथ खड़ा नजर आयेगा, क्या यही आदिवासी मूलवासी समाज भाजपा और कांग्रेस-जेएमएम के साथ नहीं जायेगा. और यदि यह खड़ा भी हो गया तो चुनाव के ठीक बीच जब धनबल की बारिश होगी, और जो गैंगस्टर अपना जलबा दिखलायेंगे, उसकी काट जयराम के पास क्या होगी? क्योंकि यह धनबाद है, यदि यहां की सत्ता पर काबिज वर्ग को इस बात का एहसास हो गया कि जयराम उनकी सत्ता के लिए अब सबसे बड़ा खतरा है, तो जयराम और उनके समर्थकों के सामने सुरक्षा का भी एक बड़ा सवाल होगा. तब क्या यह माना जाय कि जयराम इस बार महज अपनी सियासी इंट्री कर जमीनी ताकत को आंकने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, और उसी आधार पर वह विधान सभा चुनाव के दौरान अपनी रणनीति को अंतिम रुप देंगे.
आप इसे भी पढ़ सकते हैं
भाजपा की जीत या कांग्रेस के अहंकार की हार! चुनाव परिणाम सामने आती ही आयी इंडिया गठबंधन की याद