Ranchi-पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की सियासी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही, कथित सहयोगी विनोद सिंह के द्वारा भेजे गयें व्हाटसप चैट के आधार पर झारखंड की सियासी फिजाओं में एक साथ कई कहानियां परोसी जा रही है, और हर कहानी का लब्बोलुबाब यही है कि हेमंत ईडी के शिकंजे में कस चुके हैं और जहां से उनकी रिहाई का रास्ता बेहद मुश्किल होने वाला है. पहले 539 पन्ना और उसके बाद 201 पन्नों का व्हाट्सएप चैट उनकी सियासी भविष्य के सामने एक बड़ा प्रश्न चिह्न खड़ा कर चुका है. कथित जमीन घोटाले से शुरु हुई जांच की दिशा अब नौकरी घोटाले की ओर बढ़ती नजर आ रही है, और इसके साथ ही यह आरोप भी चस्पा करने की कोशिश की जा रही है कि जिस सहजता के साथ हेमंत सोरेन की ओर से आदिवासी-मूलवासी राजनीति के दावे किये जा रहे थें.
हेमंत सरकार की कारगुजारियों को सामने लाने का दावा
दरअसल पर्दे की पीछे की कहानी कुछ और थी. हेमंत सरकार की कारगुजारियों को सामने लाने का दावा करते हुए पूर्व सीएम बाबूलाल अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखते हैं कि गरीब आदिवासियों की जमीन हड़प कर हेमंत सोरेन आलीशान बैंक्वेट हॉल बनाने की फिराक में थे. हॉल की डिजाइन और उसे बनाने की साजिश के सारे राज भी खुल चुके हैं. आदिवासी भाइयों को भावनात्मक रूप से धोखा देकर उनकी जल, जंगल, जमीनों पर कब्जा कर ऐशो ऐयाशी करने वाले हेमंत सोरेन का चाल, चरित्र और चेहरा बेनकाब हो चुका है. खुद को आंदोलनकारी वंशज बताने वाले ऐसे लूटरे व्यक्ति को जनता उचित जवाब देगी.
भाजपा का परसेप्शन बनाम झामुमो का परसेप्शन
खैर यह तो हुआ भाजपा का परसेप्शन, लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या भाजपा अपने परसेप्शन को जनता का परसेप्शन बनाने की दिशा में कामयाब होती नजर आ रही है, या फिर हेमंत की गिरफ्तारी के बाद आदिवासी मूलवासी समूहों के बीच एक दूसरा ही परसेप्शन तैयार हो रहा है, और भाजपा की चुनौती जनता के बीच पसरते इस परसेप्शन का काट ढूढ़ने की है. और आज के दिन उसकी यही सबसे बड़ी चुनौती है. जहां एक चुक के साथ ही भाजपा की पूरी सियासी रणनीति धूल धूसरित होने के कगार पर खड़ा हो जायेगा. यहां यह समझने की भी जरुरत है कि जिन तथ्यों के आधार पर हेमंत सोरेन के खिलाफ मुश्किलें बढ़ने के दावे किये जा रहे हैं, उसका आधार क्या है. उसका स्त्रोत क्या है, यदि ये सारे साक्ष्य वास्तव में ईडी की ओर से जमा किये गये हैं तो उसकी कानूनी वैद्धता कितनी है? क्या ईडी इन्हे साक्ष्यों के आधार पर हाईकोर्ट के सामने जायेगी? और यदि जायेगी तो उसका हस्श्र क्या होगा? क्या हाईकोर्ट इन्ही साक्ष्यों के आधार पर प्रथम दृष्टया हेमंत को दोषी मान लेगी और उसके बाद ईडी को अपनी जांच का दायरा बढ़ाने की स्वीकृति प्रदान कर दी जायेगी, या हाईकोर्ट को ईडी की ओर से पेश इन साक्ष्यों में कई पेच नजर आयेगा, इसका जवाब तलाशने के लिए हमें फिलहाल 27 फरवरी तक का इंतजार करना होगा, क्योंकि इसी दिन झारखंड हाईकोर्ट में हेमंत की याचिका पर सुनवाई होनी है, हाईकोर्ट के उस फैसले के बाद ही यह साफ हो सकेगा कि हेमंत की राह कितनी मुश्किल और कितनी आसान होने वाली है. क्योंकि कई बार जिन साक्ष्यों को हम जरुरत के ज्यादा अकाट्य मान लेते हैं, कोर्ट पहुंचते-पहुंचते उसकी हवा निकलने लगती है. वह दम तोड़ जाता है.
हेमंत का कालकोठरी में कैद रहना भाजपा के लिए सियासी मुसीबत तो नहीं?
लेकिन इतना साफ है कि आज झारखंड में परसेप्शन की लड़ाई चल रही है, एक परसेप्शन भाजपा का है, दूसरा झामुमो का, दोनों के अपने-अपने दावे हैं, और देखना दिलचस्प होगा कि इसमें किसका परसेप्शन जनता के बीच हावी होता है, इस हालत में एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि यदि वाकई कोर्ट से हेमंत को झटका लगता है, तो यह असली मुसीबत किसकी होगी. क्या कालकोठरी में कैद हेमंत भाजपा के सियासी सपने पर तुषारापात करने की खतरनाक स्थिति में आ नहीं खड़े होंगे. जेल से उनका जो सिंहनाद होगा, क्या उसके बाद भाजपा को आदिवासी मूलवासी समूहों के बीच अपने को खड़ा करना मुश्किल नहीं होगा, क्या जेल में कैद हेमंत सड़क पर दौड़ते हेमंत की तुलना में ज्यादा खतरनाक नहीं होगा?
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