Ranchi-:कथित जमीन घोटाले में गिरफ्तारी के बाद आदिवासी-मूलवासी समाज के बीच पूर्व सीएम हेमंत की छवि एक महानायक के स्थापित होती दिखने लगी है. सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर उनके फॉलोअरों की बढ़ती संख्या इस बात की तस्दीक करता है. लेकिन लगता है कि अब हमदर्दी और सहानूभूति की यह लहर आदिवासी-मूलवासी समाज से बाहर निकल झारखंड कांग्रेस को भी अपने आगोश में लेने की कोशिश कर रही है. हालांकि, झारखंड कांग्रेस खुद भी हेमंत की गिरफ्तारी के सवाल को देश में “लोकतंत्र की हत्या” के साथ जोड़कर 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बड़ा सियासी मुद्दा बनाने की तैयारी में है, और यही कारण है कि अपनी भारत जोड़े यात्रा के भागम-भाग के बीच भी राहुल गांधी के पास कल्पना सोरेन से मुलाकात के लिए वक्त की कमी नहीं होती.
हेमंत की गिरफ्तारी को जनता की अदालत में कैश करने की प्लानिंग
ध्यान रहे कि यह वही राहुल गांधी हैं, जिनके पास कांग्रेस के बड़े से बड़े नेताओं के लिए भी समय नहीं होता, राहुल गांधी कभी भी इतना सर्वसुलभ नहीं रहे हैं कि जब जो चाहे और वह हाजिर हो गयें. इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण तो असम का मुख्यमंत्री और पूर्व कद्दावर कांग्रेसी नेता हेमंत विस्व सरमा है, दावा किया जाता है कि भाजपा में जाने के पहले हेमंता लगातार राहुल गांधी से वक्त देने की गुहार लगा रहे थें. लेकिन राहुल गांधी के पास हेमंता से मिलने लिए समय का भारी टोटा था. आज उसी राहुल गांधी के पास भारत जोड़े यात्रा की तमाम व्यस्ताओं के बीच भी कल्पना सोरेन के लिए समय की कोई कमी नहीं होती. इससे साफ है कि कांग्रेस में हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी को लेकर कितनी गंभीरता है. और इस गिरफ्तारी को जनता की अदालत में कैश करने की उसकी भावी योजना क्या है. लेकिन क्या इस सहानुभूति और आक्रोश की लहर में कांग्रेस खुद अपना संगठन विस्तार का त्याग कर देगी. क्या एक मजबूत कांग्रेस देश में लोकतंत्र की सुरक्षा की जरुरत नहीं है.और यदि है तो फिर झारखंड के कार्यकारी अध्यक्ष बंधू तिर्की कांग्रेस को किस दिशा में हांकने की कोशिश कर रहे हैं. झारखंड में कांग्रेस को लेकर उनका भावी प्लान क्या है?
कल्पना सोरेन की उपस्थिति में हजारों युवा थामेंगे झामुमो का दामन
दरअसल, यह सवाल आदिवासी सेना (बंधु तिर्की) के हजारों कार्यकर्तांओँ के द्वारा झामुमो का दामन थामने की घोषणा के बाद खड़ा हुआ है. कल कल्पना सोरेन की उपस्थिति में आदिवासी सेना के हजारों हजार कार्यकर्ता झामुमो का दामन थाम “हेमंत के सपनों का झारखंड” बनाने के लिए एक नई शुरुआत करेंगे. आदिवासी सेना के महासचिव अनबिन लकड़ा झामुमो का दामन थामने की वजह बताते हुए कहा है कि हेमंत सोरेन ने जेल जाना तो स्वीकार किया, लेकिन भाजपा की नीतियों के सामने घूटना नहीं टेका. हेमंत के हिम्मत के आगे भाजपा के सारे घोड़े फेल हो गये, लेकिन हेमंत ने हिम्मत नहीं हारी. आने वाला झारखंड का इतिहास उनकी इस कुर्बानी को याद रखेगा. और आदिवासी सेना इस कुर्बानी के वक्त में हेमंत को अकेला नहीं छोड़ सकती, अब हमारे हजार कार्यकर्ता झामुमो का दामन थाम कर “हेमंत के संघर्ष” को उसके मुकाम तक पहुंचाने का नये संग्राम की शुरुआत करेंगे. अनबिन लकड़ा का दावा है कि झारखंड गठन दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सपना था, इसके लिए दिशोम गुरु ने अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी, पूरी जवानी झार-जंगलों में संघर्ष करते हुए बिताया, लेकिन जब झारखंड का गठन हुआ, तो सत्ता की बागडोर भाजपा के हाथ में लग गयी. और इसी भाजपा राज्य में जल जंगल और जमीन की लूट को आदिवासी अस्मिता को समाप्त करने का हथियार बनाया गया. आज हमारा गांव, खेत, पहाड़, जल, जंगल और जमीन सब पर भाजपा की टेढ़ी नजर है, उसका मकसद सिर्फ हमारे संसाधनों की लूट करना है. और इस लूट से दिल्ली की सल्तनत को मजूबत करना है. जब उनके हाथ से झारखंड की सत्ता निकल कर हेमंत सोरेन के हाथों में पहुंची, उसके बाद भी भाजपा इस भ्रम में जीती रही कि सत्ता भले ही बदली हो, लेकिन जल जंगल और जमीन की उसकी लूट बरकरार रहेगी, लेकिन हेमंत ने भाजपा के इस मंसूबों पर पानी फेर दिया. जल जंगल और जमीन की लड़ाई का नया संग्राम खड़ा कर दिया. यही भाजपा की बेचैनी और हेमंत की गिरफ्तारी की मुख्य वजह है. ना कोई साक्ष्य और ना सबूत सिर्फ मीडिया के सहारे हेमंत को गुनाहगार साबित करने की होड़ लगी गयी. सूत्रों के हवाले से खबरों को परोस कर भाजपा का काम आसान किया जाने लगा.
बंधु तिर्की ने किया था आदिवासी सेना का गठन
यहां यह भी याद रहे कि आदिवासी सेना (बंधू तिर्की) का गठन पूर्व शिक्षा मंत्री और कांग्रेस के कार्यकारी अघ्यक्ष बंधू तिर्की के द्वारा करीबन 10 वर्ष पहले किया गया था. इस हालत में यह सवाल खड़ा लाजमी है कि एक तरफ बंधू तिर्की का कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष होना और दूसरी तरफ उनके समर्थकों के द्वारा झामुमो का दामन थामना सियासत का कौन सा रंग सामने ला रहा है. आखिर इसके पीछे बंधू तिर्की की सियासत क्या है. हेमंत के प्रति सहानूभूति तो ठीक है. संघर्षों में कंधा से कंधा मिलाकर झारखंड की जल जंगल और जमीन की लड़ाई लड़ना भी उचित है, लेकिन यह कैसी राजनीति कि सिपाही एक टीम का हिस्सा हो और कप्तान किसी दूसरे टीम की कमान संभाल रहा हो. क्या महाभारत के कृष्ण की तरफ बंधू के सामने भी झारखंड की सियासत में कोई सियासी दुविधा सामने खड़ी है, या फिर उनकी चाहत कुछ और है, जिसकी पूर्ति फिलहाल कांग्रेस की ओर से होती दिख नहीं रही.
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