टीएनपी डेस्क(TNP DESK): अब तक बिहार में जारी जातीय जनगणना को जाति आधारित राजनीति की घृणित साजिश बताने वाली भाजपा में ही अब बगावत के स्वर तेज होते दिख रहे हैं. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने जातीय जनगणना की मांग का समर्थन कर यूपी की राजनीति में एक नया पासा फेंका है.
अखिलेश के प्रयोग से भाजपा के कान खड़े
यहां बता दें कि हाल के दिनों में अखिलेश यादव जातीय जनगणना की मांग को लेकर काफी मुखर हुए हैं, उनके द्वारा स्वामी प्रसाद मौर्या को आगे कर दलित-पिछड़ों के बीच एकता की रणनीति बनायी जा रही है, भाजपा के हिन्दुत्व के खिलाफ दलित, वंचित और दूसरे कमजोर जातियों की व्यापक एकता बनाने की व्यूह रचना तैयार की जा रही है. कहा जा सकता है कि इससे भाजपा के कान खड़े हो गये हैं. नहीं तो क्या कारण है कि कल तक जातीय जनगणना की मांग को ‘जातिवादी’ और ‘पिछड़ा सोच’ बताने वाली भाजपा के नेताओं के सुर अचानक क्यों बदल रहे हैं?
क्या काम करने लगा है यूपी में नीतीश का मंडलवादी प्रयोग
इसे इस रुप में भी लिया जा सकता है कि नीतीश कुमार जिस प्रकार जातीय जनगणना के बहाने मंडलवादी राजनीति का विस्तार कर भाजपा के पैरों तले जमीन खिसकाना चाहते थें, वह रणनीति कम से कम यूपी में सफल होती दिख रही है. आखिर इसका कारण क्या है कि कल तक जिस जातीय जनगणना की मांग को लेकर गैर भाजपाई दलों के तमाम पिछड़े नेता अलख जगा रहे थें, आज उनके सुर में सुर मिलाते हुए यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने जातीय जनगणना की मांग का समर्थन कर दिया.
अपनी जमीन नहीं गंवाना चाहते केशव, कहा मैं पूरी तरह जातीय जनगणना के साथ
केशव प्रसाद मोर्या ने कहा है कि मैं पूरी तरह से इस मांग के साथ खड़ा हूं, और मेरी पार्टी भी इसके विरोध में नहीं है. लेकिन केशव प्रसाद यह भूल गयें कि केन्द्र में भाजपा की सरकार है, और पूरे देश में जातीय जनगणना करवाना उसकी ही जिम्मेवारी है. तब वह जातीय जनगणना की मांग किससे कर रहे हैं?
बहुत संभव है कि जिस प्रकार पूरे यूपी में इसको लेकर मांग तेज हुई है, पिछड़ी जातियों की ओर से जातीय जनगणना की मांग जोर पकड़ रही है, उस हालत में खुद ही पिछड़ी जाति से आने वाले केशव प्रसाद मौर्या के सामने अपने सामाजिक आधार को अपने साथ जोड़े रखना मुश्किल होता दिख रहा है, वैसे भी उनकी छवि बेहद कमजोर नेता की रही है, पिछले चुनाव के दौरान उन्हे अपनी ही सीट से हार का सामना करना पड़ा था, साफ है कि उनकी जमीन पहले से कमजोर है, और अब वह जातीय जनगणना के सवाल पर अपनी चुप्पी साध कर अपनी बची हुई सामाजिक जमीन को गंवाना नहीं चाहते.
बिहार की तर्ज पर जातीय जनगणना करवाने की स्थिति में नहीं है केशव
लेकिन वह भाजपा में इस स्थिति में भी नहीं है कि वह बिहार की तर्ज पर जातीय जनगणना की शुरुआत करवा सकें. साफ है कि जातीय जनगणना की मांग कर उनके द्वारा अपनी जमीन बचाने की कोशिश की गई है. बहुत संभव है कि 2024 के पहले वह कोई नया पैंतरा अपना सकते हैं. भाजपा में रहते हुए उन्हे उप मुख्यमंत्री की कुर्सी ही तो मिली है, वह तो किसी भी गठबंधन के साथ उनको मिल सकता है, शायद वह बदलता जमीनी आधार को देख रहे हों, या एक पैंतरा फेंक कर इस सियासी हलचल में कुछ आकलन करना चाह रहे हों.
केशव प्रसाद मौर्या के बाद एक्टिव हुआ सपा का ट्विटर हैंडल
जो भी लेकिन केशव प्रसाद मौर्या के बयान के बाद अचानक से समाजवादी पार्टी का ट्विटर हैंडल सक्रिय हो गया. सवाल दागा गया कि अब क्या योगीजी बताएंगे कि बिहार की तरह यूपी में भी जाति जनगणना कब होगी. कुछ ही देर बाद फिर से एक ट्विट आया कि "राम मंदिर ट्रस्ट में सिर्फ एक दलित है और कोई ओबीसी नहीं है," और पूछा कि क्या मंदिर ट्रस्ट भी उच्च जातियों की पकड़ में है. साफ है कि सपा इस बहाने पिछड़ा कार्ड खेलकर भाजपा को पैदल करना चाहती है.
यह महज एक शुरुआत है, दूसरे पिछड़े नेताओं के द्वारा भी तेज हो सकती है मांग
यहां बता दें कि केशव प्रसाद मौर्या का बयान महज शुरुआत हो सकती है, बहुत संभव है कि भाजपा गठबंधन में शामिल दूसरे दलों के द्वारा भी यह मांग की जा सकती है, क्योंकि जैसे-जैसे जातीय जनगणना की मांग तेज होती जायेगी, इन ओबीसी जनाधार वाली पार्टियों के लिए अपने समर्थकों के बीच जवाब देना मुश्किल होगा और कोई भी राजनीतिक दल या नेता अपना जमीनी आधार खोना नहीं चाहता.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार
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