टीएनपी डेस्क (TNP DESK):-अगर किसी के चलते किसी के दिल में गहरी चोट पहुंची हो, और इस दर्द की तड़प से कोई अपनी जिंदगी का रास्ता ही अलग अख्तियार कर लें, उसका मकसद ही बदला और बगावत हो जाए तो लाजमी है. वो बागी बन जाएगा. पीएलएफआई के मुखिया दिनेश गोप की भी यही कहानी है. रांची से 45 किलोमीटर दूर खूंटी जिले के बकसपुर पंचायत के लापा मोरहाटोली में जन्मे दिनेश गोप की जिंदगी में कभी बदला,बगावत और बंदूक जैसी बात जेहन में नई उतरी थी. वो तो वक्त की करवट और हालात थे, जिसके चलते वह उस मोड़ पर आ गया था. जहां पीछे हटने के मतलब था. हार मान लेना और जीते जी मौत को गले लगना. आईए जानते हैं, आखिर दिनेश गोप ने कलम से अपनी तकीदर बनाने की बजाए हथियार क्यों उठा लिया.
भाई की मौत से टूट गया था दिनेश गोप
ग्रामीण बताते है कि दंबंगो से अक्सर दिनेश गोप के परिवार से लड़ाई-झगड़े होते रहते थे. बीए पास दिनेश गोप फौज में भर्ती होना चाहता था. उसकी ज्वाइनिंग लेटर भी आया था. लेकिन, गांव के ही दंबग उसके पास पहुंचने नहीं देते थे. यह हरकत भाई सुरेश गोप को नागवार गुजरती थी. इसका विरोध उसने खूब किया . बताया जाता है कि सुरेश गोप का नक्सली संगठन से भी रिश्ता रहा था. 2000 में पुलिस एनकाउंटर में उसकी मौत हो गयी. भाई की मौत के बाद ही बड़कू यानि दिनेश गोप को पूरी तरह से तोड़कर रख दिया. वह अपने गांव को छोड़कर ओड़िसा भाग गया. अब उसका जिंदगी का मकसद बदल चुका था . जहां आंखों में बगावत और बदले की आग दिल में धधक रही थी.
बड़कू ने थाम लिया बंदुक
ओड़िशा से वापस गांव लौटने के बाद, वह पूरी तरह बदल चुका था. उसके इरादे जुल्म के खिलाफ आवाज और इंसाफ दिलाने की हो गयी थी. वक्त का पहिया घूमा तो अहिस्ते-अहिस्ते उसकी पकड़ और साख लोगों के बीच मजबूत होती गई. उसने 2003 के जनवरी-फरवरी महीने में खूंटी के एक छोट से जंगल गरई में. करीब छह लोगों की मौजूदगी झारखंड लिपरेशन टाइगर का गठन किया . जिसका मकसद माओवादियों औऱ साहू गिरह से लोहा लेन था. वक्त बीतता गया तो खून भी दंबंगो, जमिदारों का खूब बहा. दिनेश गोप एक खौफ का नाम हो गया था. शाम होते ही इलाके में लोग महफूज हेने के लिए अपने घरों में चले जाता थे .ठेकेदार, राजनेता , निजी संस्थाओं के साथ-साथ आम लोगों के बीच उसकी पैठ बनती ही चली गई.
2006 में पीएलएफआई का गठन
जेएलटी यानि झारखंड लिबरेशन टाइगर्स का नाम 2006 में बदलकर पीएलएफआई हो गया. इस संगठन ने जेएलटी से ज्यादा लोकप्रिए औऱ ताकतवर हुआ. इससे दिनेश गोप की पहचान में चार चांद तो लगा ही , साथ ही दौलत भी बनीं . उसने संगठन को मजबूती औऱ विस्तार के लिए अपना नेटवर्क अन्य राज्यों मं फैलाया . उसने इसके लिए फ्रेंचाईजी बांटी, ताकि पैसा भी आ सके और ताकत का दायारा भी बढ़े. इस दौरान दिनेश गोप उर्फ बड़कू दहशत का पर्याय बन चुका था. हत्या,लूट और वसूली उसका शगल बन गया था . हथियार , पैसा और संपर्क के बूते. उसने अपनी पहचान और पहुंच भी बढ़ा ली थी . संगठन की फंडिंग के लिए, वह जबरन वसूली करता था, जो उसकी आमदनी का मुख्य जरिया था .
रॉबिनहुड जैसी छवि बनाई
गांव वाले बताते है कि उसकी छवि रॉबिनहुड की तरह थी. अमिरों को लूटकर गरीबों की मदद करने जैसा था. हालांकि, इसके पीछे भी दिनेश गोप की अलग मंशा थी. वह अपने साथ जोड़ने के लिए मनौवेज्ञानिक चाल चलता था . वह लोगों के झगड़े-लड़ाई को ताकत के बल पर शांत करवा देता था . उसके फरमान की अनदेखी का मतलब मौत को आमंत्रित करना था . उसने बच्चों के लिए निशुल्क स्कूल भी खोले, गरीब बच्चियों की शादी में आर्थिक मदद की. गांव के लोग बोलते है कि उनसे मदद मांगने नेता से लेकर पुलिसवालें तक आते हैं. उसके रूतबे औऱ खौफ का असर इतना था कि चुनाव को भी प्रभावित करता था .
बेरोजगारों को संगठन में जोड़ता था
पीएलएफआई में नौजवान यानि कम उम्र के लोगों की भी अच्छी खासी संख्या थी. दिनेश गोप कम उम्र के लड़कों को अपने संगठन में जोड़ता था . इनलोगों को बाइक, मोबाइल और पैसे का लालच दिया जाता था. इसके बाद ट्रेनिंग देकर आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जाता था, इनसे वसूली भी करायी जाती थी.
राजनीति में बनाई पकड़
सूत्रों की माने तो दिनेश गोप ने राजनीति में कभी सीधे तौर पर तो नहीं आय़ा, लेकिन पर्दे के पीछे उसकी पैठ काफी मजबूत थी. विधानसभा में अपने लोगों को खड़ा कर विधायक बनाया . इसके चलते उसकी पहुंच दिल्ली में बैठे कई राजनेताओं से हो गयी. सियासत में पकड़ के साथ-साथ दिनेश गोप की ताकत भी यहां बढ़ी. टिकट दिलवाना और विधायक बनवाना भी उसके पेशे में शामिल हो गया . उसके निशाने पर कई नेता रहें , कई मारे गये, तो किसी ने डर से उसके साथ सुलह भी कर ली.
फिलहाल नेपाल में पकड़ाया दिनेश गोप रिमांड पर हैं. लेकिन, एक गांव के लड़के की एक नक्सली संगठन खड़ा कर देने की कहानी बेहद ही दिलचस्प हैं. हालांकि, जिस मकसद औऱ मजबूरी के चलते दिनेश गोप ने हथियार उठाया था, उसे कामयाबी भी मिली . लेकिन, कुदरत के निजाम में एक वसूल हैं. गलत काम का अंजाम गलत ही होता है . दिनेश के साथ भी वही हुआ. उसे अब अहसास हो रहा है कि बंदुक से बड़ी कलम होती है . लोकत्तत्र में कानून से बड़ा कोई नहीं होता. अभी वह इसी की जद में है, जहां उसका इंसाफ होगा कि, उसका उठाया कदम सही था या गलत.
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