Ranchi-गोड्डा जिले के गोड्डा, पोरयाहाट और महागामा, देवघर जिले का देवघर (आरक्षित), मधुपुर और दुमका जिले का जरमुण्डी विधान सभा को अपने आप में समेटे गोड्डा लोकसभा की पहचान सुंदर नदी और सुंदर पहाड़ी है. इसी लोकसभा में एशिया का प्रसिद्ध खुला कोयला खदान ललमटिया है. जिससे कहलगांव और फरक्का ताप बिजली घर को कोयले की आपूर्ति होती है. अडाणी का अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल प्रौद्योगिकी आधारित संयंत्र अदाणी पावर झारखंड लिमिटेड भी इसी गोड्डा में अवस्थित है. यह वही पावर प्लांट है, जिसे निशिकांत दुबे 15 वर्षों की अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हैं. गोड्डा को औद्योगीकरण का रफ्तार देने का दावा करते हैं. लेकिन इसके ठीक उलट विपक्ष इस बात का आरोप लगाता है कि इस पावर प्लांट के कारण गोड्डावासियों की जिंदगी दुभर हो गयी. उत्सर्जन के कारण गोड्डा में पारिस्थितिकी बदलाव का सामना करना पड़ रहा है. पहले की तुलना में तापमान करीबन चार डिग्री उपर चढ़ गया, जिसकी कीमत गोड्डावासियों को चुकानी पड़ रही है. उनका दावा है कि यह तो अभी शुरुआत है, अभी गोड्डावासियों को और भी कीमत चुकानी होगी. विपक्ष दावा इस बात का भी है कि भले ही गोड्डावासियो की जिंदगी इसके कारण दुभर हो रही हो, लेकिन इस पावर प्लांट से ना तो गोड्डा के युवकों को रोजगार मिला और ना ही घरों में बिजली पहुंची, यानि कोयला हमारा और बिजली बांग्लादेश को. पावर प्लांट से अपनी बेरोजगारी दूर होने का सपना पाल रहे बेरोजगार युवकों के हाथ कुछ भी नहीं आया. सारी नौकरी बाहरी लोगों के हाथ गयी. हालांकि निशिकांत इन सारे आरोपों को महज सियासी आरोप बताते हैं, लेकिन विपक्ष इसे तूल देने की कोशिश में है. हालांकि इन आरोपों में कितना दम है, यह एक अलग विषय है.
तीन-तीन बार का एंटी इंकम्बेंसी और प्रदीप यादव की मजबूत चुनौती
लेकिन इतना तय है कि गोड्डा के सियासी दंगल में चौथी पारी का ताल ठोंकते निशिकांत के सामने इस बार 2014 और 2019 की परिस्थितियां नहीं है. एक तो उनके सामने तीन-तीन बार की एंटी इंकम्बेंसी है. और दूसरी तरफ प्रदीप यादव की मजबूत चुनौती है. हालांकि इसके पहले भी निशिकांत और प्रदीप यादव का मुकाबला हो चुका है, और उस मुकाबले में प्रदीप यादव सियासी मात खा चुके हैं, लेकिन प्रदीप यादव तब बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो के बनैर तले मैदान थें. लेकिन इस बार कांग्रेसी की सवारी और महागठबंधन का उम्मीदवार होने के कारण परिस्थिति बदलती नजर आ रही है और यही कारण है कि इस बार प्रदीप यादव खेल बदलने का दावा ठोक रहे हैं
अपनों को साधने की चुनौती
लेकिन निशिकांत की मुश्किल सिर्फ प्रदीप यादव नहीं हैं, इस बार से चुनौती अपने घर से भी मिलती दिख रही है. चाहे वह देवघर के प्रथम मेयर रहे बबलू खबाड़े हो या संयुक्त बिहार के पूर्व सीएम विनोदानंद झा के परपोते और मधुपुर विधान सभा से 2000 में ताल ठोक चुके कृष्णनंदन झा के पोते अभिषेक झा, खुद अभिषेक झा भी 2009 में भाजपा के टिकट पर मधुपुर विधान सभा से चुनाव लड़ चुके हैं. और इस बार निशिकांत के खिलाफ पूरे दम-खम के साथ मोर्चा संभाले हुए है. अपने नामांकन के बाद हर दिन निशिकांत के खिलाफ एक नया खुलासा कर रहे हैं.
कौन है अभिषेक झा, गोड्डा में कोहराम
ताजा मामला निशिकांत दुबे के द्वारा हलफनामें दर्ज एक करोड़ बीस लाख रुपये का है, हलफनामें के अनुसार निशिकांत दुबे ने यही कर्ज अभिषक झा नाम के किसी व्यक्ति से लिया है. लेकिन यह अभिषेक झा कौन है, इस पर अलग अलग चर्चा है. और इस अभिषेक झा पर प्रदीप यादव के साथ ही अभिषेक झा भी पर मोर्चा खोले हुए हैं, अभिषेक झा का दावा है कि यदि यह पैसा हमने दिया है, तो निशिकांत दुबे को इसका प्रमाण पेश करना चाहिए, अभिषेक झा यही नहीं रुकते, वह तो यह सवाल भी खड़ा कर रहे हैं कि कहीं यह पैसा पूजा सिंघल वाले अभिषेक झा का तो नहीं है? अभिषेक झा का दावा तो यह भी है कि देवघर के हर रास्ते में जमीन की खरीद हुई है. इशारा सीधे-सीधे निशिकांत की ओर से है.
मधुपुर के पूर्व विधायक राज पालिवाल का साथ?
दूसरी मुसीबत संगठन से उठते दिख रही है, गोड्डा की सियासत में हर शख्स इस सच्चाई से वाकिफ है कि मधुपुर के पूर्व विधायक राज पालिवाल से निशिकांत का क्या रिश्ता रहा है. हालांकि फिलहाल राज पालिवाल दुमका में भाजपा की जीत के लिए पसीना बहाते नजर आ रहे हैं, लेकिन क्या राज पालिवाल गोड्डा में भी निशिकांत के लिए भी पसीना बहायेंगे, यह एक बड़ा सवाल है, ठीक यही स्थिति देवघर के प्रथम मेयर रहे बबलू खबाड़े और देवघर के वर्तमान मेयर और उनकी पत्नी रीता राज है. गोड्डा के सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि इस बार ये दोनों की राह अलग है. इसके साथ ही मधुपुर से लेकर पोरयाहाट तक निशिकांत के विरुद्ध बगावत की भी खबर है, हालांकि यह विरोध प्रदर्शन कितना स्वाभाविक और कितना प्रायोजित है, यह भी एक गंभीर सवाल है.
प्रदीप यादव के लिए भी राह इतनी आसान नहीं?
लेकिन इसके साथ ही प्रदीप यादव के लिए भी राह इतनी आसान नहीं है, उनके सामने बड़ी चुनौती उस अल्पसंख्यक समाज को अपने साथ मजबूती के साथ खड़ा करने की है, जिसके अंदर टिकट वितरण के बाद नाराजगी पसरती दिखी थी, इसके साथ ही टिकट देने और फिर बेटिकट करने का जो खेल हुआ, क्या उसके बाद सब कुछ सहज स्वाभाविक है? जैसा की इंडिया गठबंधन की ओर से दावा किया जा रहा है? और फिर सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या इस बार प्रदीप यादव को राजद के आधार मतों का साथ मिलने जा रहा है? क्या गोड्डा की सियासत में प्रदीप यादव और संजय यादव की जॉनी दुश्मनी पर विराम लग चुका है? क्या सब कुछ इतना सहज हो गया कि अब राजद खेमा पूरी ताकत के साथ प्रदीप यादव के साथ खडा नजर आयेगा? जिसका आज वह दावा कर रहा है, या फिर खेल अभी बाकी है.
भाजपा के अंदर का खेल
वैसे एक खेल तो भाजपा के अंदर भी होता दिख रहा है, वह खेल प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को लेकर भी है, यही वही बाबूलाल मरांडी है, जिसके टिकट पर प्रदीप यादव 2019 और 2014 में मैदान में थें, क्या बाबूलाल आज निशिकांत से साथ खड़े हैं? या फिर मन के किसी कोने में प्रदीप यादव के प्रति सहानुभूति है? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 1 मई को गोड्डा के महा मुकाबले पर अंतिम मुहर लगनी है. लेकिन अब तक प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के साथ ही पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा भी उस रुप में मोर्चा संभलाते नहीं दिख रहें, और वह भी तब जबकि गोड्डा की करीबन 10 फीसदी आदिवासी आबादी है. क्या इसका भी कोई सियासी संदेश है? खैर इसका फैसला तो 4 जून को होगा, लेकिन 18 फीसदी यादव, 18 फीसदी मुस्लिम, 10 फीसदी आदिवासी वाले गोड्डा के दंगल में इस बार निशिकांत दुबे के सामने वर्ष 2014 और 2019 की परिस्थितियां नहीं है, इतना तो कहा ही जा सकता है.
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