Ranchi-20 मई को पांचवें चरण में चतरा, हजारीबाग और कोडरमा में मतदान होना है. चौथे चरण की समाप्ति के बाद अब झारखंड का पूरा सियासी संग्राम लोकसभा की इसी तीन सीटों पर है. एक तरफ भाजपा का कमल खिलाने के लिए चतरा की सरजमीन पर खड़ा होकर पीएम मोदी विपक्ष पर हमलों की बौछार कर रहे हैं. पिछड़ा-दलित बहुल चतरा में इस बात का उद्धोष कर रहे है कि यदि भूल से भी कांग्रेस की सत्ता में आयी तो दलित-पिछड़ी जातियों का आरक्षण समाप्त कर मुसलमानों को दे दिया जायेगा. आपका मंगल सूत्र भी छीना जायेगा. यह सिर्फ भाजपा है जो दलित-पिछड़ों की हकमारी पर विराम लगा सकता है, वहीं दूसरी ओर इंडिया गठबंधन के तमाम नेता इस बात की हुंकार लगा रहे हैं कि यदि इस बार भाजपा सत्ता में आयी तो बाबा साहेब अम्बेडकर का वह संविधान ही बदल दिया जायेगा, जिसके तहत दलित-पिछड़ी जातियों को सियासी सामाजिक भागीदारी के साथ ही आरक्षण मिलता है.
चुनावी शोर में गायब स्थानीय मुद्दें
लेकिन इन तमाम मुद्दों में चतरा स्थानीय समस्यायों की कोई चर्चा नहीं है. बेरोजगारी, विस्थापन कोई मुद्दा नहीं है. भले ही चतरा में कोयला का खनन होता हो, मगध और आम्रपाली जैसी परियोजनाएं संचालित हो, लेकिन इसी चतरा के कई गांव आज भी विद्युतीकरण से दूर हैं, आज भी उन गांवों में सूरज डूबते ही अंधेरे के साम्राज्य होता है. कोल ट्रांसपोर्टिंग के कारण लोगों की जिंदगी दुभर है, और इस औद्योगीकरण के बावजूद स्थानीय युवाओं में बेरोजगारी चरम पर है, भले ही चतरा के कोयले से महानगरों में रोशनी का साम्राज्य हो, लेकिन चतरा के युवाओं के सामने पसरा चिरपरिचित अंधेरा है, आज भी ये युवा काम की तलाश में महानगरों की खाक छानते हैं. औद्योगिक क्षेत्र होने के बावजूद बेरोजगारी का यह आलम अपने आप में एक बड़ा सवाल है.
क्या है सियासी सामाजिक समीकरण?
यहां ध्यान रहे कि चतरा के पांच विधान सभा में से चतरा, सिमरिया, मनीका चतरा जिले का हिस्सा है, लातेहार विधान सभा लातेहार जिला और पांकी पलामू जिले में आता है. जहां सिमरिया से भाजपा के किशुन कुमार दास, चतरा से राजद के सत्यानंद भोक्ता, मनीका से कांग्रेस के रामचन्द्र सिंह, लातेहार से झामुमो के बैधनाथ राम और पांकी से भाजपा के शशिभूषण मेहता विधायक है. यानि पांच में से दो पर भाजपा और तीन पर महागठबंधन का कब्जा है. यदि बात हम सामाजिक समीकरण की करें तो चतरा में अनुसूचित जाति-28.32 फीसदी, अनुसूचित जनजाति-19.39 फीसदी, मुस्लिम-13 फीसदी. इसके साथ ही कुशवाहा और यादव जाति की भी एक बड़ी आबादी है. इसका महज पांच फीसदी हिस्सा ही शहरी है. यानि विकास के सारे तराजू पर यह एक अति पिछड़ा इलाका है.
चतरा से पिछड़े चेहरे की मांग
इसी सामाजिक तस्वीर को सामने रख राजद के स्थानीय नेताओं के द्वारा महागठबंधन से किसी पिछड़े चेहरे को सामने लाने की मांग की जा रही थी. हालांकि खुद राजद सुप्रीमो लालू यादव की कोशिश झारखंड राजद का पुराना चेहरा गिरिनाथ सिंह पर दांव लगाने की थी. बावजूद इसके उलगुलान रैली मे केएन त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाये जाने का पूरजोर विरोध हुआ. मामला थाना पुलिस तक पहुंचा. साफ है कि पिछड़े चेहरा की मांग जमीन पर मौजूद है. हालांकि तेजस्वी यादव की कोशिश अपने आधार मतदाताओं को कांग्रेस के साथ खड़ा करने की है, लेकिन जिस तरीके से तल्खी जमीन पर पसरी दिखलायी दे रही है, देखना होगा कि यह कोशिश कितना रंग लाता है. या इस नाराजगी के बीच खुद राजद का आधार वर्ग भी भाजपा के साथ खड़ा नजर आता है. उधर नागमणि की गैरमौजूदगी में उनकी पत्नी भी प्रचार-प्रसार में जुटी है. इस सियासी संग्राम के बीच कांग्रेस की कोशिश 19 फीसदी आदिवासी, 13 फीसदी मुस्लिम के साथ ही यादव कुशवाहा मतों को साधते हुए पंजा लहराने की है, लेकिन सवाल फिर से उसी सामाजिक भागीदारी का खड़ा नजर आता है, और इधर पीएम मोदी दलित पिछड़ी जातियों के बीच आरक्षण छीने जाने का खौफ भी पसार रहे हैं, कुल मिलाकर कांग्रेस की जीत आदिवासी- पिछड़ी जातियों की एकजूटता के साथ मुस्लिमों की सहभागिता पर टिकी है. लेकिन सवाल उसी सहभागिता पर खड़ा है.
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