Ranchi- संकल्प यात्रा के साथ झारखंड से हेमंत सरकार का विदाई गान लिखने चले बाबूलाल के लिए डुमरी की हार एक करारा झटका है, डुमरी का किला का ध्वस्त करना बाबूलाल की पहली बड़ी चुनौती थी, और इस टास्क को पूरा करने में बाबूलाल पूरी तरह से असफल साबित हुए, संकल्प यात्रा की जिस भीड़ को वह अपना शक्ति प्रर्दशन मान रहे थें, वह भीड़ उनके साथ खड़ी नहीं रह सकी और अंत समय में पलटी मार वह हेमंत के साथ खड़ी हो गयी.
पहली अग्नि परीक्षा में असफल रहे बाबूलाल
ध्यान रहे कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रुप में ताजपोशी के बाद उनकी यह पहली अग्नि परीक्षा थी, और इस परीक्षा में वह बूरी तरह से असफल रहें, जब उन्हे डुमरी के किले में अपना ताकत और एकजूटता दिखलाना चाहिए था, वह अपने संकल्प यात्रा को सफल बनाने में जुटे थें. बड़ी बात यह रही कि भाजपा की ओर से डुमरी जीत की कोई व्यापक तैयारी नहीं की गयी, और यह माना गया कि जीत और हार सब कुछ आजसू के कंधे पर है. जबकि आजसू की ओर से मुकाबला को दिलचस्प बनाने की भरपूर कोशिश की गयी और उसी का नतीजा है कि यह मुकाबला इतना कांटे का हुआ. और कम से कम 14 राउंड की गिनती तक आजसू उम्मीदवार अपनी बढ़त को बरकरार रखने मे सफल रहा. साफ है कि यदि आजसू को भाजपा को सहयोग मिला होता, तो यह मुकाबला और भी दिलचस्प हो सकता था, कम से कम जीत का यह अंतर 17 हजार मतों का नहीं होता.
हार की समीक्षा के साथ खड़ी हो सकती है मुसीबत
अब जबकि डुमरी के किले से आजसू की विदाई हो चुकी है, और टाईगर के उस किले को ध्वस्त करने में आजसू की मदद करने के बजाय बाबूलाल अपनी संकल्प यात्रा में मस्त रहें, जमीन पर सक्रियता दिखलाने के बजाय ट्विटर पर हेमंत सरकार को उखाड़ फेंकने का दावा करते रहें, जब इस हार की समीक्षा होगी, तब बाबूलाल की मुश्किलें बढ़ेगी, वैसे ही आज भी झारखंड भाजपा में बाबूलाल को अपनी स्वीकार्यता का इंतजार है, टुकड़ों-टुकड़ों में विभाजित भाजपा का कोई धड़ा उन्हे नेता मानने की स्थिति में नहीं है. भले ही केन्द्रीय नेतृत्व का वरदहस्त प्राप्त होने के कारण कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं हो.
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