Patna- जैसे जैसे 2024 का चुनाव नजदीक आता जा रहा है, भाजपा की ओर से अपने राजनीतिक सहयोगियों का पर कतरने की कवायद भी उतनी ही तेज होती नजर आ रही है, और इसके साथ ही एनडीए में शामिल दल मांझी, चिराग और कुशवाहा की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही है. बीच मंझधार के बीच अब उनके सामने भाजपा की शर्तों को मानने से सिवा कोई विकल्प नजर नहीं आ रहा, आज ये दल राजनीति के उस मोड़ पर खड़े नजर आ रहे हैं, जहां भाजपा से बाहर होते ही उनके अस्तित्व पर सवाल खड़ा हो जायेगा, इसमें भी कोई भी दल अपने बुते एक भी प्रत्याशी को जिताने की राजनीतिक हैसियत में नहीं है.
ध्यान रहे कि भाजपा ने पहले ही यह साफ कर दिया है कि वह बिहार की कम से कम 31 सीटों पर खुद चुनावी जंग में उतरने जा रही है, जबकि बाकि कि 09 सीटों में 6 लोजपा के चाचा-भतीजा गुट, दो सीटे जदयू छोड़ एनडीए में आये उपेन्द्र कुशवाहा और एक सीट जीतन राम मांझी के नाम होगा.
अब इस फार्मूले से मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा को क्या हासिल हुआ, यह बिल्कुल समझ से परे हैं, जीतन राम मांझी के लिए जदयू के साथ रहते भी गया की सीट सुरक्षित माना जा रही थी, उपेन्द्र कुशवाहा की सीट पर भी कोई सवाल नहीं था, वह जिस सीट पर चाहते अपनी मर्जी से फैसला लेने को स्वतंत्र थे, इसके साथ ही वह अपने निकटतम लोगों को भी सीट दिलवाने की स्थिति में थें. वह चाहते तो कम से कम तीन सीट अपने समर्थकों दिलवा सकते थें. इसके साथ ही उपेन्द्र कुशवाहा को जदयू में नीतीश के बाद एक बड़ा कद था, और इसी रुप में उनको स्थापित करने की कोशिश भी हो रही थी, लेकिन राजनीतिक में तेजी से बढ़ने की ललक में वह भूला गयें कि भाजपा वह समुन्द्र है, जहां मिलते ही उनका अस्तित्व खत्म हो जायेगा और वही हुआ, जो कुशवाहा जदयू में टिकट बांटने की स्थिति में थें, आज खुद की सीट के लिए चिरौरी करते नजर आ रहे हैं.
सहयोगियों के चुनाव चिह्न पर अपना उम्मीवार उतारेगी भाजपा
लेकिन उससे भी बूरी खबर यह है कि जो सीटें इनके हिस्से आयेगी, जरुरी नहीं है कि वहां उम्मीदवार भी इनका ही होगा, भाजपा इनके चुनाव चिह्न पर अपना उम्मीदवार भी उतारने की तैयारी में है. मतलब साफ है कि बिहार की राजनीति में अपने चहेरे को सबसे बड़ा चेहरा मानने की भूल कर बैठे मांझी और कुशवाहा की स्थिति आज यह है कि उनकी पार्टी से चुनाव कौन लड़ेगा, इसका फैसला भाजपा हाईकमान करेगा.
240-250 सीट आने की स्थिति में बढ़ सकता है राजनीतिक सौदेवादी का दौर
दरअसल खबर यह है कि इंडिया गठबंधन के अवतरण के बाद भाजपा के अन्दर खलबली है, मोदी -अमित शाह की जोड़ी कोई भी खतरा लेने को तैयार नहीं है. इस जोड़ी को इस बात का डर सत्ता रहा है कि यदि खुद भाजपा का सीट 240-250 तक लटका तो आज के कमजोर नजर आ रहे राजनीतिक सहयोगी कल काफी मजूबत होकर सामने आ सकतें है, तब बार्गेनिंग का दौर शुरु होगा और बदली हुई राजनीतिक परिस्थितियों में यह पाला बदल कर भाजपा को अलविदा कर दें तो भी कोई आश्चर्य नहीं होगा, या फिर एनडीए के साथ रहकर भी मोदी के सिवा किसी दूसरे चेहरे की वकालत करने का खतरा भी मौजूद है, वैसे भी भाजपा और आरएसएस में अब यह सवाल उठने लगा है कि मोदी के बाद कौन, और खास कर उस स्थिति में जब कांटा 230-250 के आसपास सिमट जाता है. क्योंकि यह राजनीति है, यहां कोई किसी का दोस्त नहीं होता, सारी दोस्ती राजनीतिक मजबूरियों की होती है, और बड़ी बात यह है कि यदि भाजपा 250 के आसपास सिमटता है तो खुद विपक्ष की ओर से गडकरी और या किसी दूसरे नाम पर सशर्त समर्थन का एलान किया जा सकता है, और यही मोदी-अमित शाह की बैचैनी की असली वजह है.
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