चाईबासा (CHAIBASA) : कोल्हान यूनिवर्सिटी में हिंदी विभागाध्यक्ष रह चुके हो साहित्यकार डॉ जानुम सिंह सोय को हो भाषा साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिये देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा जाएगा. इसके लिये केंद्र सरकार ने घोषणा कर दी है. इसी महीने के अंत में उनको इस सम्मान से अलंकृत किया जाएगा. पद्मश्री के लिये चुने जाने के बाद उनके पैतृक गांव में जश्न का माहौल है. उनके घरवालों को बधाई देनेवालों का तांता लगा हुआ है. इसी क्रम में गुरूवार को सांसद प्रतिनिधि विश्वनाथ तामसोय, हो साहित्यकार डोबरो बुड़ीउली, हो भाषा शिक्षक चंद्रमोहन हेंब्रम, पूर्व शिक्षक सनातन बिरुवा और ओएनजीसी के रिटायर्ड अधिकारी कैरा बिरुवा आदि ने गितिललोंगोर जाकर उनके घरवालों से मुलाकात की. जानुम सिंह के भाई रामनाथ और उनके घरवालों को बधाई भी दी.
कौन हैं डॉ जानुम सिंह सोय?
डॉ जानुम सिंह सोय तांतनगर प्रखंड के कोकचो गांव के गितिल लोंगोर टोले के मूल निवासी हैं. लेकिन लंबे समय से घाटशिला में रह रहे हैं। गांव की तरह वहां भी उनका अपना घर है और उनका छोटा सा परिवार भी साथ में रहता है. साथ ही वहां धान की खेतीबाड़ी भी करते हैं. वहां उनके कई खेत भी हैं. छोटे भाई रामनाथ सोय के अनुसार कुवांरे थे तभी से जानुम सिंह वहीं रह रहे हैं. फिलहाल उनकी उम्र 72 वर्ष है.
मुसाबनी की हीरा बानरा से शादी की है
डॉ जानुम सिंह सोय ने सोसोगोड़ा, मुसाबनी की रहनेवाली हीरा बानरा नामक महिला से शादी की है. पत्नी भी नौकरी करती थी. वह स्कूल टीचर थी. अब रिटायर्ड हैं.
एक बेटा और दो बेटियां हैं, सभी नौकरीशुदा
जानुम सिंह सोय के एक बेटा और दो बेटियां हैं. सारे नौकरीशुदा है. बेटा जयसिंह सोय वहीं मझगांव में उत्क्रमित मध्य विद्यालय में हेडमास्टर हैं. जबकि बेटी मनीषा सोय एफसीआई में असिस्टेंट मैनेजर है तो एक और बेटी मधुरिमा सोय हैदराबाद के एक प्रतिष्ठित प्राईवेट कंपनी में बड़ी ओहदेदार रह चुकी हैं.
स्कूली पढ़ाई गांव में की, फिर टाटा कॉलेज से ग्रेजुएशन तथा रांची से पीजी, बीएड तथा पीएचडी की
डॉ जानुम सिंह सोय अपने पंचायत के सबसे पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं. साथ ही उनकी पूरी फैमिली भी उच्चशिक्षित है. उन्होंने प्राथमिक शिक्षा गांव कोकचो और तोरलो गांव स्थित स्कूलों से पूरी की. हाईस्कूल की शिक्षा चाईबासा स्थित मांगीलाल रुंगटा हाईस्कूल से ली. चाईबासा स्थित टाटा कॉलेज से हिंदी ऑनर्स में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री ली. फिर रांची यूनिवर्सिटी से एमए फिर यहीं से बीएड की डिग्री भी हासिल की. जबकि पीएचडी की शिक्षा उन्होंने हो लोकगीत साहित्य और हो संस्कृति विषय में इसी रांची यूनिवर्सिटी से की.
दस भाई-बहन में हरकोई शिक्षित, कोई इंजीनियर तो कोई टीचर
डॉ जानुम सिंह सोय के पांच भाई और चार बहनें थीं. दो भाईयों की मृत्यु हो चुकी है. अब केवल चार बचे हैं. जबकि सभी चार बहनों की मृत्यु हो चुकी है. दो भाई कैलाश चंद्र सोय और मनोज कुमार सोय शिक्षक की नौकरी से रिटायर्ड हैं और फिलहाल चाईबासा में रहते हैं. एक और भाई गुरूचरण सोय इंडियन ऑयल में इंजीनियर थे. कोरोनाकाल में इनकी भी मृत्यु हो चुकी है. जानुम सिंह सोय की चारों में से एक बहन पालो सोय भी टीचर थी. अब उसकी भी मृत्यु हो चुकी है. एक और भाई रामनाथ सोय हैं जो गांव में रहते हैं और खेतीबाड़ी का काम वही देखते हैं. इनकी चार साल की एक बेटी है. इनकी बीवी का नाम रिसे सोय है. सारे भाई बहन पढ़े लिखे हैं.
हिंदी और वारंग क्षिति लिपि के अच्छे जानकार हैं जानुम सिंह सोय
हो साहित्यकार डोबरो बुड़ीउली के अनुसार, वे जानुम सिंह सोय के काफी करीबी रहे हैं. वे कहते हैं, जानुम सिंह सोय को हिंदी के अलावे हो भाषा और इनकी लिपि वारंग क्षिति से बेहद लगाव है. इस कारण वे इसके अच्छे ज्ञाता भी हैं. हो समाज के रीति-रिवाजों और पर्व-त्योहारों से भी खासा लगाव है. इस कारण जब भी गांव में पर्व-त्योहार होता है तो वे घाटशिला छोड़कर चले आते हैं. लोगों से मिलते हैं और नाचगान में भी शामिल होते हैं. आमतौर पर वे अंतर्मुखी स्वाभाव के शांत व्यक्ति हैं. गांव के लोग साहेब कहकर पुकारते हैं. सादगीपूर्ण जीवन और शालीनता उनकी पहचान है.
हो कुड़ि उपन्यास में विस्थापन का दर्द, आदिवासी अस्मिता तथा गंगाराम कालुंडिया के संघर्ष को रेखांकित किया है
हो साहित्यकार डॉ जानुम सिंह सोय ने हो भाषा में चार कविता संग्रह तथा एक उपन्यास समेत छह पुस्तकें लिखीं हैं जो प्रकाशित हो चुकी हैं. हो कुड़ि नामक उपन्यास में उन्होंने क्षेत्रीय समस्या यथा ईचा-खरकई विस्थापन, आदिवासी अस्मिता और डैम विरोधी आंदोलन के प्रणेता शहीद गंगाराम कालुंडिया के संघर्ष को रेखांकित किया है. साथ ही खुदके परिवार की ज्वलंत सामाजिक और पारिवारिक संघर्षों के ताने-बाने को भी बखूबी उकेरा है. यह उपन्यास हो समाज में कालजयी तुल्य है. इसके अलावे उनका प्रथम काव्य संग्रह बाहा सागेन भी प्रकाशित हुआ है जिसमें हो संस्कृति, लोकगीत, पर्व-त्योहार,परंपरा आदि समाहित हैं.
रिपोर्ट : संतोष वर्मा, चाईबासा
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